1 अप्रैल 2023 से डेट फंड (debt mutual fund) के रिडेंप्शन (redemption) से होने वाले कैपिटल गेन (capital gain) पर न तो लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन (LTCG) टैक्स और न ही इंडेक्सेशन (indexation) के फायदे का प्रावधान है। यानी डेट म्युचुअल फंड को रिडीम करने के बाद जो भी कैपिटल गेन होगा वह शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन मानी जाएगी जिस पर टैक्स पेयर को अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होगा।
मोटे तौर पर देखें तो फिक्स्ड डिपॉजिट यानी एफडी (FD) के साथ भी यही है। एफडी पर भी जो ब्याज आपको मिलता है वह आपकी आय में जुड़ जाता है और आपको अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से उस पर टैक्स चुकाना होता है।
लेकिन ऐसा नहीं है। अभी भी बहुत सारे टैक्स के नियम एफडी और Debt Mutual Fund के लिए अलग-अलग हैं। इसलिए आज बात करते हैं उन नियमों की ताकि निवेशकों को निर्णय लेने में आसानी हो सके और वे दुविधा में न रहें।
एफडी पर मिलने वाले सालाना 40 हजार से ज्यादा (सीनियर सिटीजन के लिए यह लिमिट 50 हजार रुपये की है) के ब्याज की राशि पर 10 फीसदी टीडीएस (TDS) का प्रावधान है। बशर्ते आप 15G या 15H फॉर्म भरकर जमा नहीं करते हैं। जबकि ग्रोथ डेट म्युचुअल फंड के रिडेंप्शन के बाद होने वाले कैपिटल गेन पर टीडीएस का प्रावधान नहीं है।
लेकिन अगर आपने डेट म्युचुअल फंड ((debt mutual fund) के डिविडेंड प्लान में पैसा लगाया है और सालाना डिविडेंड 5 हजार रुपये से ज्यादा है तो ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी आपको जो डिविडेंड देगी उसमें से 10 फीसदी बतौर टीडीएस काट लेगी।
एफडी (FD) पर जो भी ब्याज मिलता है उस पर आपको सालाना टैक्स चुकाना होता है। चाहे क्यों ब्याज आपके सेविंग अकाउंट में क्रेडिट न हुआ हो। खासकर क्युमुलेटिव एफडी (cumulative FD) पर जहां ब्याज मैच्योरिटी की राशि के साथ मिलता है लेकिन आपको उस वित्त वर्ष के दौरान देय ब्याज पर टैक्स भी उसी वर्ष चुकाना होगा। जबकि डेट म्युचुअल फंड के साथ ऐसा नहीं है।
डेट म्युचुअल फंड को जिस वित्त वर्ष के दौरान आप रिडीम या ट्रांसफर करते हैं , शार्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स (STCG) आपको कैपिटल गेन पर उसी वर्ष अपने टैक्स स्लैब के हिसाब से चुकाना होता है। लेकिन डेट म्युचुअल फंड के डिविडेंड प्लान में आपको जो डिविडेंड मिलेगा वह आपकी इनकम में जुड़ जाएगा और आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से उस पर टैक्स देना होगा।
एफडी पर नुकसान की तो बात ही नहीं है। लेकिन किसी और एसेट की बिक्री से हुए कैपिटल लॉस को आप एफडी पर मिलने वाले ब्याज से सेट-ऑफ नहीं कर सकते।
दूसरी तरफ अगर किसी वित्त वर्ष के दौरान आपको डेट म्युचुअल फंड (debt mutual fund) में निवेश से लॉस (नुकसान) होता है तो आप उसी वित्त वर्ष के दौरान अन्य कैपिटल एसेट से होने वाले शॉर्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन दोनों से उसको सेट-ऑफ कर सकते हैं।
यदि किसी वित्त वर्ष में एडजस्टमेंट के बाद भी कैपिटल लॉस बच जाता है तो जिस वर्ष नुकसान हुआ है उसके अगले 8 वित्त वर्ष तक उस नुकसान को आप अन्य कैपिटल एसेट से होने वाले शार्ट-टर्म और लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन दोनों से सेट-ऑफ कर सकते हैं।
लेकिन अगर आपको डेट म्युचुअल फंड के रिडेंप्शन से कैपिटल गेन हुआ है और आप चाहते हैं कि दूसरे एसेट से होने वाले लॉस से इस कैपिटल गेन को सेट-ऑफ कर लें तो आपको यह ध्यान रखना चाहिए – किसी और एसेट की बिक्री से अगर आपको शार्ट-टर्म कैपिटल लॉस हुआ हो तभी आप उसको डेट म्युचुअल फंड से होने वाले कैपिटल गेन से सेट-ऑफ कर सकते हैं।
लेकिन अगर आपको किसी एसेट की बिक्री से लॉन्ग-टर्म कैपिटल लॉस हुआ है तब आप इसको डेट म्युचुअल फंड से होने वाले कैपिटल गेन से सेट-ऑफ नहीं कर सकते। मतलब लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन को लॉन्ग-टर्म कैपिटल लॉस से ही सेट-ऑफ किया जा सकता है।
एक बात और किसी एसेट की बिक्री से होने वाले नुकसान के सेट-ऑफ के लिए जरूरी है कि आपको जिस वित्त वर्ष में नुकसान हुआ है उस वर्ष के लिए आप समय सीमा के अंदर इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करें और उसमें नुकसान का उल्लेख करें।
बेसिक एग्जेंप्शन लिमिट (basic exemption limit) से आप एफडी के ऊपर मिलने वाले ब्याज को एडजस्ट कर सकते हैं। लेकिन डेट फंड के रिडेंप्शन से मिलने वाले शार्ट-टर्म कैपिटल गेन को आप बेसिक एग्जेंप्शन लिमिट से एडजस्ट नहीं कर सकते।
एफडी के ऊपर मिलने वाले ब्याज पर आप इनकम टैक्स एक्ट, 1961, की धारा 87A के तहत रिबेट का फायदा ले सकते हैं। लेकिन डेट फंड को रिडीम करने पर जो शार्ट-टर्म कैपिटल गेन होता है, उस पर आप 87A के तहत रिबेट का फायदा नहीं उठा सकते। उदाहरण के तौर पर मान लीजिये किसी व्यक्ति (उम्र 60 वर्ष से कम) का टैक्सेबल इनकम वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान 2 लाख रुपए है जबकि उसे डेट म्युचुअल फंड के रिडेंप्शन से 1.5 लाख रुपए का कैपिटल गेन हुआ।
इस मामले में क्योंकि कैपिटल गेन को मिलाने (2 लाख रुपए + 1.5 लाख रुपए = 3.5 लाख रुपए) के बाद भी टैक्सेबल इनकम 5 लाख/7 लाख रुपए से कम है, इसलिए कई लोगों को यह लग सकता है कि दोनों टैक्स रिजीम के तहत टैक्स देनदारी नहीं बनेगी।
लेकिन ऐसा नहीं है। नई और पुरानी दोनों टैक्स व्यवस्था के तहत टैक्सपेयर को 1.5 लाख रुपये के कैपिटल गेन पर 5 फीसदी टैक्स देना होगा। मतलब 1.5 लाख रुपये के कैपिटल गेन पर सेक्शन 87A के तहत रिबेट का फायदा नहीं मिलेगा।
1 अप्रैल 2023 से लागू नए नियम के अनुसार डेट फंड (वैसे म्युचुअल फंड जहां इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा नहीं है) को रिडीम करने के बाद जो भी कैपिटल गेन/लॉस होगा वह शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन/लॉस मानी जाएगी। शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन आपकी इनकम में जुड़ जाएगा और आपको टैक्स स्लैब के हिसाब से टैक्स देना होगा। जबकि 1 अप्रैल 2023 से पहले इस तरह के फंड से होने वाली कमाई पर टैक्स होल्डिंग पीरियड (खरीदने के दिन से लेकर बेचने के दिन तक की अवधि) के आधार पर लगता था।
मतलब 36 महीने से कम के होल्डिंग पीरियड पर शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन टैक्स जबकि 36 महीने के ऊपर के होल्डिंग पीरियड पर इंडेक्सेशन के फायदे के साथ 20 फीसदी (सेस मिलाकर 20.8 फीसदी) लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेन टैक्स का प्रावधान था। इस कैटेगरी के तहत डेट फंड के अलावा गोल्ड फंड, ईटीएफ, इंटरनैशनल फंड आते हैं। वैसे हाइब्रिड फंड जहां इक्विटी में एक्सपोजर 35 फीसदी से ज्यादा नहीं है वे टैक्स नियमों के मामले में इस कैटेगरी में आते हैं।