सटोरिया इंडेक्स डेरिवेटिव में खुदरा निवेशकों की भागीदारी पर लगाम की बाजार नियामक सेबी की छह सूत्री योजना से वॉल्यूम में भारी गिरावट आ सकती है यानी उसमें 30 से 40 फीसदी तक की कमी संभव है। इन उपायों का मकसद वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) सेगमेंट में अत्याधिक सटोरिया गतिविधियों को कम करना है। इस सेगमेंट में रोजाना का कारोबार अक्सर 500 लाख करोड़ रुपये के पार चला जाता है और खुदरा निवेशकों को अक्सर नुकसान झेलना पड़ता है।
सेबी ने सौदों का आकार 5 लाख रुपये से बढ़ाकर 15 लाख रुपये करने, मार्जिन की जरूरत बढ़ाने और खरीदारों से ऑप्शन प्रीमियम का अग्रिम संग्रह अनिवार्य करने का फैसला लिया है। नए नियम के तहत साप्ताहिक एक्सपायरी प्रति एक्सचेंज एक बेंचमार्क तक सीमित की जाएगी। साथ ही, इंट्राडे पोजीशन लिमिट की भी निगरानी होगी। एक्सपायरी के दिनों में कैलेंडर स्प्रेड ट्रीटमेंट को हटाएगा।
ये कदम खुदरा निवेशकों के बाजार में प्रवेश पर अवरोध बढ़ाने के लिए हैं। बाजार नियामक के हालिया अध्ययन से पता चलता है कि खुदरा का नुकसान तेजी से बढ़ता जा रहा है। विश्लेषकों ने अनुमान लगाया था कि इस पाबंदी से नैशनल स्टॉक एक्सचेंज का वॉल्यूम करीब एक तिहाई घटेगा। सितंबर में रोजाना औसत कारोबार एनएसई में 394 लाख करोड़ रुपये रहा था जबकि बीएसई में करीब 144 लाख करोड़ रुपये।
डेरिवेटिव पर नई पाबंदी के अलावा फ्यूचर ट्रेडिंग के वॉल्यूम पर भी प्रतिभूति लेनदेन कर (एसटीटी) में बढ़ोतरी का असर पड़ सकता है। एसटीटी में वृद्धि मंगलवार से प्रभावी हो गई है। इसके अलावा कई विशेषज्ञों का अनुमान है कि अब वॉल्यूम गुजरात की गिफ्ट सिटी में शिफ्ट हो जाएगा, जहां गिफ्ट सिटी कॉन्ट्रैक्ट का कारोबार एनएसई के इंटरनैशनल एक्सचेंज पर होता है।
डोवटेल कैपिटल के मुख्य कार्याधिकारी (फंड बिजनेस) रोहित अग्रवाल ने कहा कि साप्ताहिक एक्सपायरी को एनएसई व बीएसई पर एक इंडेक्स तक सीमित करने से ट्रेडिंग वॉल्यूम गिफ्ट सिटी में शिफ्ट हो सकता है, जहां अभी भी साप्ताहिक ऑप्शन में कई रेंज हैं। एफपीआई के लिहाज से देखें तो जो ट्रेडिंग की रणनीति में लचीलापन चाहते हैं, उनके लिए यह आकर्षक मौका होगा ।
अग्रवाल ने कहा कि एनएसई का वर्चस्व बना हुआ है और वित्त वर्ष 2024 में हर महीने औसतन 10.8 अरब इक्विटी डेरिवेटिव सौदे होते रहे हैं। हालांकि गिफ्ट सिटी में कारोबार बढ़ रहा है लेकिन यह अभी भी एनएसई के वॉल्यूम का एक फीसदी से भी कम है और वहां हर महीने करीब 20 लाख सौदों की ट्रेडिंग होती है। हालांकि सौदों का उस ओर जाना काफी हद तक इस पर निर्भर करता है कि गिफ्ट सिटी इसे सहारा देने के लिए कैसे अपनी लिक्विडिटी और बाजार की पैठ बनाता है।
जहां तक देश में ट्रेडिंग का सवाल है, नए कदमों का बीएसई पर एनएसई के मुकाबले कम असर होगा क्योकि हफ्ते में एक्सपायर होने वाले इंडेक्स ऑप्शनों की संख्या पर उसकी निर्भरता तुनात्मक रूप से कम है। इसे अब एक तक सीमित कर दिया जाएगा।
ब्रोकरों और स्टॉक एक्सचेंजों के राजस्व में इंडेक्स डेरिवेटिव ट्रेडिंग की खासी हिस्सेदारी होती है। लाभ के लिहाज से सबसे बड़ी ब्रोकिंग फर्म जीरोधा ने इस बदलाव से राजस्व में 30 से 50 फीसदी तक की गिरावट की आशंका जताई है। स्टॉक ब्रोकर राजस्व पर पड़ने वाले असर की भरपाई के लिए अपने राजस्व के स्रोतों को डाइवर्सिफाई करने की योजना बना रहे हैं।
लेनदेन शुल्क से एनएसई की आय वित्त वर्ष 25 की पहली तिमाही में 3,623 करोड़ रुपये रही जबकि बीएसई के मामले में यह 366 करोड़ रुपये रही। इसमें बड़ी हिस्सेदारी एफऐंडओ सेगमेंट की है और बढ़ती गतिविधियों के कारण इसमें इजाफा हुआ है।
बाजार नियामक के प्रमुख कदमों में से तीन 20 नवंबर से लागू होंगे जबकि बाकी अगले साल फरवरी और अप्रैल में प्रभावी होंगे। आईआईएफएल सिक्योरिटीज की अगस्त में आई रिपोर्ट के मुताबिक नैशनल स्टॉक एक्सचेंज पर सेबी के फैसले से एक्सचेंज के राजस्व पर 20 से 25 फीसदी की चोट पड़ सकती है।
वैश्विक निकाय फ्यूचर्स इंडस्ट्री एसोसिएशन (एफआईए) का मानना है कि सेबी के कदमों के इरादे जायज हो सकते हैं लेकिन इनसे ट्रेडिंग की लागत में बढ़ोतरी हो सकती है। जुलाई में डेरिवेटिव पर लगाम के बारे में सेबी की तरफ से जारी परामर्श पत्र के जवाब में एफआईए ने कहा था कि नकदी प्रदान करने वालों को भी बढ़ी हुई मार्जिन लागत का सामना करना पड़ सकता है जिससे बिड-आस्क का अंतर ज्यादा बढ़ सकता है और बाजार गड़बड़ा सकता है। ऐसे बड़े या ऊंचे अंतर का आखिरकार खुदरा ट्रेडरों पर ही असर होगा और खुदरा व संस्थागत निवेशकों पर अतिरिक्त लागत का बोझ बढ़ेगा।
कुछ का मानना है कि प्रवेश पर ज्यादा पाबंदियों से कुछ खुदरा प्रतिभागी हैसियत से ज्यादा जोखिम ले सकते हैं। सेबी का विशेषज्ञ समूह प्रस्तावित बदलावों के असर की निगरानी कर सकता है और अगर जरूरी हुआ तो दोबारा विचार करके आगे कदम उठा सकता है।