भारत में शेयर बाजार के निवेशकों के लिए पिछले पांच महीने चुनौतीपूर्ण रहे हैं। अक्टूबर 2024 से बाजार में गिरावट का दौर शुरू हुआ था और अभी तक बेंचमार्क निफ्टी अपने उच्चतम स्तर से 14 फीसदी और सेंसेक्स 13.2 फीसदी टूट चुका है। निफ्टी मिडकैप में इस दौरान 17.8 फीसदी और स्मॉलकैप सूचकांक में 21.3 फीसदी की गिरावट आई है।
विश्लेषकों के अनुसार इस गिरावट के पीछे विदेशी निवेशकों की भारी बिकवाली अहम रही है। विदेशी संस्थागत निवेशकों ने 2025 में अभी तक 1.05 लाख करोड़ रुपये की बिकवाली की है। विदेशी निवेशक ऐसे समय में भारत में बिकवाली कर रहे हैं जब चीन की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए वहां की सरकार ने प्रोत्साहन उपायों की घोषणा की है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज की रिपोर्ट के अनुसार एमएससीआई इंडिया सूचकांक में पिछले साल जनवरी से सितंबर तक खूब तेजी देखी गई। पिछले साल जून से सितंबर के बीच इसने कुछ समय के लिए एमएससीआई चीन सूचकांक से बेहतर प्रदर्शन किया। मगर उसके बाद से चीन के एमएससीआई सूचकांक ने एमएससीआई भारत सूचकांक को पीछे छोड़ दिया है।
वेल्थमिल्स सिक्योरिटीज में निदेशक (इक्विटी स्ट्रैटजी) क्रांति बतीनी ने कहा, ‘मध्यम से अल्पावधि के लिहाज से चीन के बाजार का मूल्यांकन (5 साल के औसत 15.3 गुना के मुकाबले 16.2 गुना पर कारोबार कर रहा है) कम बना हुआ है। ऐसे में कुछ हेज फंड और उच्च जोखिम वाला निवेश चीन जा रहा है। इसकी तुलना में निफ्टी अपने 5 साल के औसत 23.9 गुना और 10 साल के औसत 23.9 गुना के मुकाबले 21.3 गुना पर कारोबार कर रहा है।’
कोटक सिक्योरिटीज के आंकड़ों के अनुसार थाईलैंड को छोड़कर सभी प्रमुख उभरते बाजारों में फरवरी में विदेशी पोर्टफोलियो निवेश निकला है।
विदेशी निवेशकों ने फरवरी में भारत में 218.9 करोड़ डॉलर, ब्राजील में 2.1 करोड़ डॉलर, इंडोनेशिया में 38.1 करोड़ डॉलर , मलेशिया में 5.9 करोड़ डॉलर, फिलिपींस में 50 लाख डॉलर, दक्षिण कोरिया में 27.6 करोड़ डॉलर, ताइवान में 111.4 करोड़ डॉलर और वियतनाम में 23.5 करोड़ डॉलर की बिकवाली की है। थाईलैंड में 1.7 करोड़ डॉलर का शुद्ध निवेश हुआ है।
विश्लेषकों ने कहा कि अमेरिका में डॉनल्ड ट्रंप की संरक्षणवादी नीतियों के मद्देनजर डॉलर के मजबूत होने से उभरते बाजारों में बिकवाली बढ़ी है।
जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज में मुख्य निवेश रणनीतिकार वीके विजयकुमार ने कहा, ‘विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली की मुख्य वजह भारत के बाजार का मूल्यांकन ऊंचा रहना है। दिसंबर तिमाही के नतीजों से संकेत मिलता है कि उद्योग जगत की कमाई में 7 फीसदी बढ़ी है जो ऊंचे मूल्यांकन को वाजिब नहीं ठहराता है। डॉलर की मजबूती भी चुनौती बढ़ा रही है।’