चूंकि निवेशक और बॉन्ड बाजार मुद्रास्फीति से मुकाबले के लिए केंद्रीय बैंकों द्वारा नीतिगत दरों में भारी वृद्धि के लिए तैयार हैं, लेकिन अमेरिका में प्रतिफल की राह बदली है। वहीं भारत में यह सपाट हो रही है, जिससे वैश्विक तौर पर आर्थिक वृद्धि और घरेलू अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट या मंदी की आशंका का संकेत मिलता है।
प्रतिफल चक्र में बदलाव ऐसे समय में दर्ज किया जा रहा है, जब अल्पावधि प्रतिफल दीर्घावधि के मुकाबले अधिक है। अमेरिका में अल्पावधि (जैसे तीन और पांच साल के सरकारी बॉन्डों) परिपक्वता वाले बॉन्डों पर प्रतिफल अब दीर्घावधि (जैसे 10 और 30 साल) के मुकाबले अधिक है।
तीन साल के अमेरिकी बॉन्ड पर प्रतिफल बुधवार को चढ़कर 3.45 प्रतिशत पर पहुंच गया तो दिसंबर 2021 के अंत के 0.96 प्रतिशत से ज्यादा है। समान अवधि में, 10 वर्ष के बॉन्डों पर प्रतिफल 1.51 प्रतिशत से बढ़कर 3.36 प्रतिशत हो गया।
इसके परिणामस्वरूप, दोनों के बीच प्रतिफल अंतर पिछले कैलेंडर वर्ष के 55 आधार अंक से घटकर 9 आधार अंक रह गया है। यह अंतर मार्च 2021 में 139 आधार अंक था।
देश में, भारत सरकार के 10 वर्षीय बॉन्ड और दो वर्षीय सरकारी बॉन्ड के बीच प्रतिफल अंतर घटकर 94 आधार अंक रह गया जो 28 महीने का निचला स्तर है। यह अंतर आरबीआई द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी शुरू किए जाने से पहले इस साल मार्च के अंत में 185 आधार अंक और पिछले साल जुलाई में करीब 200 आधार अंक था। इसी तरह, 30 साल और 10 साल के बॉन्डों के बीच प्रतिफल अंतर बुधवार को घटकर 27 आधार अंक रह गया, जो पिछले साल जून में 93 आधार अंक पर था।
इसकी वजह से जीरो-कूपन प्रतिफल सपाट होने लगा है, क्योंकि अल्पावधि के बॉन्डों पर प्रतिफल लंबी अवधि के मुकाबले तेजी से चढ़ा है।
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत का कहना है, ‘सामान्य स्थिति में, प्रतिफल की राह अवधि में तेजी के साथ ब्याज दर या प्रतिफल में तेजी के साथ गहरी होनी चाहिए। लेकिन ये अब सपाट हो गई है, क्योंकि आरबीआई ने मौद्रिक नीति को सख्त बनाना शुरू किया है, जिससे वित्तीय बाजारों में तरलता में कमी को बढ़ावा मिला है।’
उनका मानना है कि दीर्घावधि और अल्पावधि बॉन्डों के बीच प्रतिफल अंतर कमजोर बना रहेगा, क्योंकि आरबीआई ने सख्त मौद्रिक नीति को बरकरार रखा है, लेकिन भारत में विपरीत प्रतिफल राह से इनकार किया है।
भारत में प्रतिफल चक्र में पिछली बार सितंबर 2015 में बदलाव आया था और उस साल दूसरी छमाही में इक्विटी बाजारों में बिकवाली दर्ज की गई थी।
प्रतिफल चक्र मई-अगस्त 2013 में भी बदला था। दो वर्षीय बॉन्ड पर प्रतिफल 10 वर्षीय बॉन्ड के मुकाबले 80 आधार अंक ज्यादा था। यह रुपये में भारी गिरावट और दलाल पथ पर बड़ी बिकवाली के अनुरूप रहा।
अन्य अर्थशास्त्री भी आरबीआई द्वारा प्रतिफल चक्र प्रबंधन के लिए सपाट स्थिति को जिम्मेदार मान रहे हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का कहना है, ’10 वर्षीय बॉन्ड पर प्रतिफल काफी कम है।’
