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बीस खरब हुए स्वाहा, पर नहीं थम रही आग

Last Updated- December 07, 2022 | 10:44 PM IST


अमेरिका में हुए सब प्राइम संकट की आग काफी दूर तक फैल चुकी है और इस आग में इस साल निवेशकों का 20 खरब डॉलर फुंक जाने के बावजूद फिलहाल इसकी आंच में कोई कमी आने की संभावना नहीं दिख रही है। इस दशक में यह दूसरी बार हुआ है कि इक्विटी में निवेश करने वाले अमेरिका में आए वित्तीय संकट के कारण प्रभावित हुए हैं। इससे पहले अमेरिका में आई मंदी की वजह से वर्ष 2000-01 के बीच आईसीई यानी कि सूचना,संचार और मनोरंजन केक्षेत्र में उथलपुथल हुई मची थी।


पूरे विश्व में पूंजी बाजार पर मंदी का बुरा असर पड़ा है और सबसे ज्यादा असर डाऊ जोन्स शेयर बाजर में हुआ जब पिछले साल 9 अक्तूबर 2007 को बाजार 14,164.53 अंकों के स्तर से 25 प्रतिशत नीचे फिसल गया और 17 सितंबर 2008 को यह 10,609.66 केस्तर पर पहुंच गया। विकसित देशों क े पूंजी बाजारों में डिफॉल्टरों की संख्या में बढ़ोतरी होने से विदेशी संस्थागत निवेशक तेजी से उभरते बाजारों में बिकवाली करने लगे और वहां से अपने निवेश को तेजी से निकाल चलते बने। ताजा अमेरिकी वित्तीय संकट का सबसे ज्यादा असर चीन पर पड़ा है और इसके कारण शंघाई कंपोजिट में 8 जनवरी 2008 से 30 सितंबर 2008 के बीच 57.4 प्रतिशत अंकों की गिरावट दर्ज की गई है। भारतीय शेयर बाजार ने भी तेजी से गोता लगाया और 30 कंपनियों के शेयरों वाल बंबई शेयर बाजार का सूचकांक 38.4 प्रतिशत नीचे चला गया। तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से हमने 8 जनवरी 2008 और 30 सितंबर 2008 के बीच के विश्व केशेयर बाजार और भारतीय शेयर बाजार के सूचकांक का अध्ययन किया है।


इससे पहले वर्ष 2000 और 2001 में अमेरिकी मंदी के समय भारतीय शेयर बाजार को इन दोनों मौकों पर तीन प्रमुख खस्ता प्रदर्शन करनेवाले बाजारों की सूची में रखा गया और यह संकेत मिला कि भारतीय बाजार वैश्विक बाजार में हुई उठापटक से अपने आप को अलग नहीं रख सकता है। अमेरिका में जब आईसीई संकट आया था तो उस समय 14 फरवरी 2000 को भारतीय शेयर बाजार अपने 5924 अंकों के स्तर से फिसलकर 56 प्रतिशत नीचे आ गया था जबकि 21 सितंबर 2001 को 2600.12 के निचले स्तर तक पहुंच गया था। वैश्विक सूचकांकों में सिर्फ नेसडॅक और ताइवान शेयर बाजार का प्रदर्शन भारत से बुरा रहा था।


अमेरिका में आईसीई के आए तूफान जो कि 21 सितंबर 2001 को समाप्त हुआ, के बाद बंबई शेयर बाजार में सुधार का माहौल देखा गया और इसके चार साल बाद 14 फरवरी 2000 के दिनभर के कारोबार के बाद 8 जनवरी 2004 को बाजार 6150 अंक ों के स्तार पर पहुचं गया। उसके बाद वाजपेयी केनेतृत्व वाली एनडीए सरकार की आम चुनावों में हार का असर बाजार पर जरूर पड़ा लेकिन यह इससे तुरंत ही उबर गया और फिर कभी वापस मुड़कर पीछे नहीं देखा। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि अमेरिका में अक्तूबर 2007 में आए सब प्राइम संकट केबावजूद भारतीय शेयर बाजार का बेहतर प्रदर्शन करता रहा। जहां इस समय तक अमेरिका और यूरोपीय बाजार में उत्साह का वातावरण दम तोड़ता नजर आ रहा था वहीं भारतीय बाजार बेहतर प्रदर्शन करता रहा और साथ ही इस सिद्धांत को बल मिला कि भारतीय शेयर बाजार वैश्विक बाजारों में आए उठापटक से पड़े है। इसी साल 8 जनवरी को बाजार 21,000 के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंच गया लेकिन फिर उसके बाद से गिरावट का दौर शुरू हो गया। उल्लेखनीय है कि भारतीय बाजार के2004 से 2007 केबीच परवान चढ़ने में विदेशी संस्थागत निवेशकों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी लेकिन उसके बाद उन्होंने मध्य अक्तूबर 2007 से लगभग 100,000 करोड़ रुपये से ज्यादा केअपने के निवेश को खींचकर भारतीय बाजार के वैश्विक उथलपुथल से बेअसर रहने के असर को धता बता दिया। सब प्राइम संकट की चिंताओं केबीच बैंकिंग क्षेत्र में कारोबार में आई गिरावट के कारण के्रडिट घाटा बढ़ता गया पूरी दुनियां में परिसंपत्ति के आधार में जबरस्त गिरावट आई और परिणामस्वरूप विदेशी संस्थागत निवेशकों का मनोबल घटता गया और उन्होंने बाजारो में किए गए अपने निवेश को हटाना शुरू कर दिया। इस साल की शुरूआत से अब तक भारतीय कारोबारी अपने मार्केट कैपिटलाइजेशन का 35 प्रतिशत तक हिस्सा खो चुकी है। सबसे ज्यादा मार बैंकिंग, रियाल्टी, रिफायनरी और ऊर्जा क्षेत्र केशेयरों पर पड़ी और इनमें से प्रत्येक का मार्केट कैपिटलाइेशन में 2.25 खरब शेयरों की ज्यादा गिरावट आई है। दूरसंचार, ट्रेडिंग, तकनीकी, इंजीनियरिंग, खनन, और स्टील कंपनियों में से प्रत्येक के मार्केट कैपिटलाइजेशन में 1 खरब से 1.73 खरब तक की गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि कीमतों में इतनी जबरदस्त गिरावट होने केबावजूद इस गिरावट का अंत दिखाई नहीं पड़ रहा है।


तकनीकी रूप से बाजार में जो अंतिम मंदी आई थी वह 18 महीने तक चली थी और इसके बाद बाजार को अपने वास्तविक स्तर तक लौटने में अतिरिक्त 24 महीने लगे थे। तब तक सेंसेक्स में 56 प्रतिशत तक की गिरावट आ चुकी थी। अभी जो बाजार में मंदी आई है उसे सिर्फ 9 महीने हुए हैं। अगर मंदी के समाप्त होने को सूचकांक में प्रतिशत गिरावट के संदर्भ में देखे तो फिर संवेदी सूचकांक को अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर 9,328 अंकों पर रूकना चाहिए।


बाजार की स्थिति फिलहाल बहुत ही नाजूक है इसमें और जो मंदी छाई है उसके निकट भविष्य में दूर होने की गुंजाइश नहीं है। उल्लेखनीय है की आईसीई केबॉटम पर सेंसेक्स पी/ई अनुपात 10 गुना से ज्यादा गिर गया था। बाजार में फिलहाल कारोबार इसके लांग टर्म औसत के 17.4 गुना की तुलना में कारोबार आमदनी के 16 गुना पर हो रहा है। तेजी से उभरते बाजारों के सापेक्ष में पी॒/ई प्रीमीयम गिरकर 14 प्रतिशत तक के स्तर तक पहुंच गया है। भारत केसूचना तकनीक में तेजी से उभरने के बाद भारत के औद्योगिक क्षेत्र ने भी 2004 से 2007 के बीच 40 प्रतिशत के नेट प्रॉफिट ग्रोथ केसाथ बेहतर प्रदर्शन किया। औद्योगिक क्षेत्र ने वित्त 2007-08 के बीच बेहतर प्रदर्शन किया लेकिन वित्त वर्ष 2008-09 की पहली तिमाही में मुद्राओं में आई अस्थिरता और डेरिवेटिव घाटे के कारण हुए मार्कटूमार्केट घाटे के चलते इनका प्रदर्शन खस्ता रहा। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सेंसेक्स कंपनियों की आमदनी के पहली तिमाही में दर्ज किए गए 14-15 प्रतिशत मुनाफे से कम रहने की संभावना है। विश्लेषकों का मानना है कि पूंजीगत सामान, दूरसंचार, कंज्यूर, सूचनाप्रौद्योगिकी सेवाओं और फर्मास्युटिकल्स में विकास को बढ़ावा देगी वहीं ऊर्जा, धातुओं का प्रदर्शन नाकारात्मक रहेगा। एक अध्ययन के अनुसार इस साल जनवरी में अपने अधिकतर स्तर पर पहुचंने के बाद पिछले 25 सप्ताहों में बाजार में औसतन 1.3 प्रतिशत औसत की रफ्तार से गिरावट आई है। यह रफ्तार पिछले तीन बार आई मंदी के 25 सप्ताहों की 1.1प्रतिशत औसत गिरावट से अधिक है। अगर इसमें तेजी आती है तो यह बाजार में मंदी के जल्द समाप्त होने का संकेत दे सकता है। इस बाबत मॉर्गन स्टैनली में इंडिया एंड ईस्ट एशिया इकोनॉमिस्ट के मुख्य कार्यकारी निदेशक चेतन आह्या केअनुसार मैक्रो फंडामेंटल्स के समाप्त होने में 18 महीने लग सकते हैं और मंदी के और 25-50 सप्प्ताह तक जारी रहने के आसार हैं। अगर बाजार में छाई यह मंदी अगले 25 सप्प्ताहों में समाप्त हो जाती है तो यह पिछले बीस सालों की सबसे कम अवधि वाली होगी। आगे चलकर कीमतों में हो रही गिरावट के थमने की संभावना है। बाजार में छाई पिछली तीन मंदी केसमय में छह महीने केबाद औसतन साप्ताहिक गिरावट की दर 0.3 प्रतिशत थी। रिजर्व बैंक की नीतियों और आशा भरे कारोबारी समय के को देखते हुए बाजार के फिर से पटरी पर आ जाने की संभावना है। बाजार केलिए सबसे बेहतर परिणाम जल्द चुनावों से आएगा क्योंकि बाजार को चुनावों केसमय इस बात की आशा होती है कि अगली सरकार में गठबंधन सहयोगियों की संख्यां कम होगी और आर्थिक सुधार तेजी से किए जा सकेंगे। इधर एशियाई शेयर बाजारों ने अमेरिका के वित्तीय संकट से उबारने केलिए वित्तीय संस्थानों को दिए जा रहे 700 अरब डॉलर की सहायता राशि के सीनेट द्वारा पास कर दिए जाने पर कोई खास उत्साह नहीं दिखाया है। बुधवार को जापान, दक्षिण कोरिया, हांग कांग और आस्ट्रेलिया के शेयर बाजार गहराते संकट के मदद्देनजर तेजी से गोता लगाया। कुछ विष्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी सरकार द्वारा वित्तीय संस्थानों को दी जा रही सहायता के पुनर्समीक्षा से शेयरधारकों का इसके प्रति उत्साह कमा है।

First Published - October 2, 2008 | 9:17 PM IST

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