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टाटा मोटर्स: सफर बाकी है

Last Updated- December 05, 2022 | 5:11 PM IST

ट्रक और कार निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स द्वारा जगुआर और लैंड रोवर के अधिग्रहण को लेकर बाजार ज्यादा उत्साहित नहीं दिख रहा है।


ऐसा इसलिए क्योंकि प्रधान ऑटोमोटिव समूह, जिसमें जगुआर, लैंड रोवर, वोल्वो और ऐस्टन मार्टिन जैसे ब्रांड शामिल हैं, ने वर्ष 2007 के कर-पूर्व लगभग 33 अरब रुपए के लाभ में 1.9 अरब रुपए का घाटा दर्ज किया है।टाटा मोटर्स, जो 32,371 करोड़ रुपए की कंपनी है, इन महत्वपूर्ण ब्रांडों के लिए 2.3 अरब रुपए की भारी रकम का भुगतान कर रही है। ये ब्रांड टाटा मोटर्स के सवारी वाहन के संपूरक हैं।


लेकिन, समय के साथ-साथ व्यवसाय को बनाए रखने के लिए और अधिक खर्च करने की आवश्यकता होगी और उन्हें नए रूप में ढालने का काम उतना आसान नहीं होगा। फोर्ड को भी अपने व्यवसाय को चलाने में कठिन दौर से गुजरना पड़ा था जब यूनियनों की वजह से समस्याएं हुई थी और फोर्ड सफल नहीं हुई थी।लैंड रोवर के अतिरिक्त, जो वास्तव में एक अच्छा सौदा है, यह जगुआर है जिसके बारे में समझा जाता है कि यह वित्तीय स्थिति को प्रभावित कर सकता है।


टाटा मोटर्स को मिल रही तकनीकों के लाभ भी शीघ्र दिखने संभव नहीं होंगे यद्यपि कंपनी के पास आईपीआर होगा।फिएट के साथ हुए सौदे की बदौलत टाटा मोटर्स को कुछ अच्छी तकनीकें उपलब्ध हो पाएंगी, खास तौर से डीजल कारों के लिए। ऐसे मुकाम पर टाटा मोटर्स को जगुआर और लैंड रोवर को खरीदने की आवश्यकता नहीं थी।


इस सौदे से टाटा मोटर्स की बैलेंस शीट पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा जो अभी लगभग 1.4 गुना लाभ प्रदर्शित कर रहा है। इस सौदे के लिए लिए गए 3 अरब डॉलर के ऋण का साफ  मतलब है ब्याज भी उच्चतर होगा। मार्च 2007 के अंत तक कंपनी द्वारा लिया गया उधार लगभग 9,000 करोड़ रुपए का था जिसमें अपरिवर्तित विदेशी करेंसी बॉन्ड भी शामिल थे।


पूंजीगत खर्चे पर कंपनी प्रति वर्ष 3,500 करोड़ रुपए का खर्च करती है और अनुमान है कि वित्त वर्ष 2008 में यह 3,200 करोड़ रुपए और वित्त वर्ष 2009 में 3,700 करोड़ का नकदी प्रवाह अर्जित करेगी।टाटा मोटर्स के स्टॉक का प्रदर्शन पिछले एक साल में बड़ा खराब रहा है क्योंकि कमर्शियल वीइकल उद्योगों में मंदी है और कारों की बिक्री भी ठीक नहीं चल रही है।


ऐसा अनुमान है कि टाटा मोटर्स की समेकित आय वर्ष 2008 में 35,400 करोड़ रुपए और शुध्द लाभ 2,400 करोड़ रुपए का होगा।679 रुपए के मूल्य पर कंपनी के स्टॉक का कारोबार आगामी आय के 13 गुना पर किया जा रहा है और आर्थिक मंदी के रुख को देखते हुए इसके  पूर्ववत प्रदर्शन की आशा की जानी चाहिए।


स्टील निर्माता: स्थानीय बिक्री अप्रभावित


स्टील निर्माताओं जैसे 34,488 करोड़ रुपए की कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) और जेएस डब्ल्यू स्टील ने निर्यात को नियंत्रित किया है।लेकिन इससे इनके कारोबारी आंकड़ों पर शायद ही फर्क पड़ेगा क्योंकि घरेलू मांग की मजबूती बरकरार है। वित्त वर्ष 2008 के प्रथम नौ महीनों में 46 लाख टन स्टील का निर्यात किया गया था।


इसके अलावा, यह मुख्य रूप से केवल ऐच्छिक तात्कालिक बिक्री है इसमें किसी प्रकार का करार समाहित नहीं था जिसे अब समाप्त किया जा रहा है और कुल निर्यात में इसकी हिस्सेदारी कम थी। परिचालन मार्जिन, जो 32-40 प्रतिशत के  दायरे में है, में कम नहीं होगी तो इसमें इजाफा भी नहीं होगा।


ऐसा इसलिए क्योंकि निर्यात ज्यादा लाभदायक हो सकता है क्योंकि निर्यात के विरुध्द ये स्वाभाविक हेज जैसे हैं और कभी कभार दीर्घावधि के करार भी मिल जाते हैं, और अगर विनिमय दर निर्यातकों के पक्ष में रहा तो फायदा ही होता है।लौह अयस्क और इस्तेमाल होने वाले कोयले की कीमतो में वृध्दि स्टील निर्माताओं के लिए चिंता का विषय है।


सेल अपने 140 लाख टन के सालाना उत्पादन का मुश्किल से तीन प्रतिशत निर्यात करता है। इस वर्ष के आरंभ से इसके शेयर की कीमत में आई 29 प्रतिशत की गिरावट के बाद वर्तमान मूल्य 200 रुपए है जिसका कारोबार वित्त वर्ष 2009 की अनुमानित आय के मुकाबले 9 गुना पर किया जा रहा है।जेएसडब्ल्यू कुल बिक्री के लगभग एक तिहाई का निर्यात करता है जिसमें 15-20 प्रतिशत स्पॉट कॉन्ट्रैक्ट हैं।


हालांकि, उच्चतर लागत मूल्य से जेएसडब्ल्यू के मार्जिन पर दवाब बन सकता है। 836 रुपए के वर्तमान मूल्य पर इसके स्टॉक का कारोबार आगामी आय के सात गुना पर किया जा रहा है।साल की शुरूआत से इसके शेयर की कीमत में लगभग 37 प्रतिशत की कमी आई है और आने वाले समय में इसका प्रदर्शन अच्छा नहीं हो सकता है।

First Published - March 27, 2008 | 11:15 PM IST

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