बाजार को ऊंचे स्तर पर बने रहने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। एमके ग्लोबल फाइनैंशियल सर्विसेज के प्रबंध निदेशक प्रकाश कचोलिया ने एक ईमेल इंटरव्यू में पुनीत वाधवा को बताया कि बाजार में तेजी का बड़ा हिस्सा स्मॉल एवं मिडकैप (एसएमआईडी) क्षेत्र से जुड़ा हो सकता है, जहां आय तेजी से सुधर रही है और जहां उचित कीमतों की गुंजाइश भी है। बातचीत के मुख्य अंश:
एक वर्ष के नजरिये से बाजारों पर आपकी क्या राय है?
एक वर्षीय नजरिये से हमारा अंदाज है कि बाजारों में रिटर्न सुस्त रहेगा। जहां आय वृद्धि मजबूत रह सकती है, वहीं मौजूदा कीमतें बढ़ी हुई लगती हैं, जिनमें कभी भी गिरावट आ सकती है। निवेशक अपने पोर्टफोलियो में कुछ नकदी बनाए रख सकते हैं। अच्छे प्रदर्शन में बड़ा हिस्सा स्मॉल एवं मिडकैप सेगमेंट का हो सकता है जहां आय में सुधार भी ज्यादा तेजी से आ रहा है और कुछ की कीमतें उचित भी हैं। बाजार में किसी तरह की गिरावट को अच्छी गुणवत्ता के शेयर खरीदने के मौके के तौर पर देखा जाना चाहिए।
एक साल पहले की तुलना में छोटे निवेशक अभी बाजार को किस नजरिये से देख रहे हैं?
छोटे निवेशक अपने निवेश आवंटन को लेकर ज्यादा सतर्क बन गए हैं और कमाई के लिए कई तरह की निवेश योजनाओं का फायदा उठा रहे हैं। कई निवेशक अब परिसंपत्ति आवंटन के लिए सलाहकारों की भी मदद ले रहे हैं, जिससे निवेश के ज्यादा मजबूत और भरोसेमंद दृष्टिकोण का पता चलता है। जहां इक्विटी, वायदा एवं विकल्प और ट्रेडिंग का आकर्षण बना हुआ है, वहीं सतर्कता बरतना भी जरूरी है। मैं निवेशकों को बेहद सतर्कता के साथ इन जोखिमपूर्ण सेगमेंटों पर दांव लगाने की सलाह दूंगा।
विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) कीमतों की ज्यादा चिंता किए बगैर कब से भारतीय शेयरों में निवेश बढ़ाने पर जोर दे सकते हैं?
कई एफआईआई भारत में हाल की तेजी का लाभ उठाने से चूक गए क्योंकि वे ऊंची कीमतों को लेकर चिंतित थे। उन्होंने कैलेंडर वर्ष 2024 में इक्विटी में करीब 17 अरब डॉलर मूल्य की बिकवाली की। हमारा मानना है कि जब अमेरिकी फेडरल रिजर्व दरें घटाना शुरू करेगा तो विदेशी निवेशक भारत में ज्यादा तेजी से निवेश शुरू कर देंगे।
क्या सेबी नियमन में ज्यादा सख्ती कर रहा है?
हमारे बाजार के विकास एवं वृद्धि को सुनिश्चित करने के लिए, खासकर इसके आकार को देखते हुए सेबी के लिए समय समय पर नियमों में बदलाव करना और सुधार लाना जरूरी है। दक्षिण कोरिया का एक ऐतिहासिक उदाहरण लिया जा सकता है, जहां 2011-12 में डेरिवेटिव अनुबंध की विशेषताओं में बदलाव के कारण कारोबार में 40-50 प्रतिशत की गिरावट आई थी।
दांवबाज महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लेकिन हमें बाजार में ऑप्शन विक्रेताओं के रूप में लॉटरी टिकट बेचने वालों की जरूरत नहीं है। इसलिए हस्तक्षेप जरूरी है। हालांकि, किसी भी नियामकीय परिवर्तन को धीरे-धीरे लागू किया जाना चाहिए ताकि बाजार उनके प्रभावों को झेल सके। यदि सेबी के नए प्रस्तावों पर पूरी तरह से अमल होता है तो हम डेरिवेटिव सेगमेंट की कारोबार में 20 प्रतिशत की गिरावट देख सकते हैं।
क्या आपको लगता है कि लागत बढ़ने से ब्रोकिंग फर्मों के मार्जिन पर दबाव बढ़ेगा?
महामारी के बाद पूंजी बाजार की संरचना में बड़े बदलाव हुए हैं। भारतीय निवेशकों के पास अब पहले से कहीं ज्यादा पैसा है जो ब्रोकिंग उद्योग के लिए वरदान साबित हुआ है। हमारा अंदाज है कि यह रुझान बरकरार रहेगा जो डीमैट खाताधारकों की बढ़ती संख्या से स्पष्ट होता है। इसके अलावा, नए आईपीओ से निवेश पोर्टफोलियो को ताकत मिल रही है जिससे अप्रत्यक्ष रूप से ब्रोकिंग क्षेत्र को लाभ हो रहा है।