छोटे और मझोले उद्यमों (एसएमई) के आईपीओ को लेकर अप्रत्याशित उन्माद देखने को मिल रहा है और निवेशक इनका हिस्सा बनने के लिए जोर-शोर से लग जाते हैं। आंकड़े खुद कहानी बताते हैं – इस साल सबसे ज्यादा खरीदे गए पांच एसएमई आईपीओ को कुल 65,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की बोलियां मिलीं जबकि ये कंपनियां महज 59.3 करोड़ रुपये जुटाने के लिए उतरी थीं यानी उन्हें 1100 गुना से ज्यादा बोलियां मिलीं।
सबसे ज्यादा आवेदन पाने वाले 10 एसएमई आईपीओ को 733 गुना से लेकर 2,014 गुना तक आवेदन मिले। ये आईपीओ दिसंबर से लेकर अभी तक के दौरान के हैं। सूचीबद्धता पर यानी पहले दिन सबसे कम लाभ 35 फीसदी (मजेंटा) रहा जबकि जीपी इको सॉल्युशंस के शेयर में 394 फीसदी की भारी भरकम बढ़ोतरी दर्ज हुई। रुझान स्पष्ट है – ज्यादातर आईपीओ में सूचीबद्धता के दिन काफी फायदा दिखा। यही बात इस उन्माद को हवा दे रही है।
विज्ञापन फर्म मैक्सपोजर का 7 करोड़ रुपये का आईपीओ जनवरी में आया और उसे कुल मिलाकर 20,000 करोड़ रुपये की बोली मिली। कुछ का कहना है कि एसएमई आईपीओ से जुड़ी रकम जुनून का संकेत नहीं देती, लेकिन आवेदनों की ज्यादा तादाद मांग-आपूर्ति से जुड़ा मसला है।
एक निवेश बैंकर ने कहा कि जब 10 करोड़ रुपये के आईपीओ को 10,000 करोड़ रुपये की बोली मिलती है तो इसका मतलब यह नहीं है कि कंपनी 10,000 करोड़ रुपये जुटा सकती है। यह महज इसका संकेत है कि निवेशक आवंटन को लेकर दौड़धूप कर रहे हैं। आईपीओ आवेदन में आसानी और आवंटन से पहले बैंक खाते से रकम न निकलने के कारण कहा जा सकता है कि निवेशक ग्रे मार्केट प्रीमियम को देखकर इनमें आवेदन कर रहे हैं।
चौंकाने वाली बात यह है कि बड़े पैमाने पर परिचालन न करने वाली कंपनियां भी आईपीओ बाजार में उतर रही हैं। ताजा उदाहरण रिसोर्सफुल ऑटोमोबाइल का है, जो दिल्ली में बाइक के महज दो शोरूम का परिचालन कर रही है लेकिन उसके आईपीओ को 400 गुना आवेदन मिले।
अन्य कंपनी है ब्रोक लाइफकेयर जो गुजरात के भरूच में 25 विस्तर वाला अस्पताल चलाती है। इस तरह के उन्माद ने ऐसे आईपीओ की औचित्य को लेकर न सिर्फ संदेह पैदा किया है बल्कि उनके प्रति निवेशकों के अत्यधिक उत्साह को लेकर भी।
एसएमई आईपीओ की भारी-भरकम मांग ऐसे समय देखने को मिल रही है जब मुख्य प्लेटफॉर्म के लिए आईपीओ का कोई अभाव नहीं था। बड़े आकार वाले आईपीओ को वित्तीय विवरण और कंपनी संचालन आदि को लेकर बेहतर नियामकीय जांच के दौर से गुजरा हुआ माना जाता है।
एसएमई आईपीओ को लेकर निवेशकों का मनोबल कम नहीं हुआ है जबकि बाजार नियामक ने रकम की हेराफेरी, प्रवर्तकों की तरफ से गड़बड़ी और फर्जी वित्तीय विवरण को लेकर कुछ एसएमई के खिलाफ पाबंदी भी लगाई है।
विशेषज्ञों ने कहा कि कुछ तो काली भेड़ होंगी ही, लेकिन एसएमई की सूचीबद्धता के जरिये ने छोटे कारोबारियों के लिए इक्विटी फंड जुटाने का दरवाजा खोल दिया है वरना उनको ऊंची ब्याज दर की उधारी पर निर्भर रहना पड़ता था।
कैपिटलमाइंड के संस्थापक दीपक शेनॉय ने एक्स पर लिखा कि छोटी कंपनियां छोटी रकम जुटा रही हैं। ज्यादातर वेंचर कैपिटलिस्ट 12 करोड़ रुपये के चेक के लिए बैठक भी नहीं करते। यह बेहद काफी छोटा है। ऐसे में एसएमई पर इस तरह की कंपनियां सूचीबद्ध क्यों नहीं हों और वे क्यों न पारदर्शी बनें?
ज्यादा कर्ज लेने या निजी निवेशकों से रकम जुटाने की कोशिश के बजाय सूचीबद्ध बाजार बेहतर हैं क्योंकि निजी निवेशकों का ध्यान सिर्फ रिटर्न और रिटर्न पर ही होता है। दोनों एक्सचेंजों एनएसई व बीएसई में एसएमई के लिए अलग प्लेटफॉर्म हैं। एसएमई की सूचीबद्धता के लिए दोनों के अपने पात्रता मानक हैं।
एनएसई पर जुलाई में एसएमई आईपीओ के जरिये जुटाई गई रकम मुख्य प्लेटफॉर्म का करीब पांचवां हिस्सा थी। एनएसई इमर्ज पर 22 एसएमई आईपीओ के जरिये 1,030 करोड़ रुपये जुटाए गए। बीएसई एसएमई प्लेटफॉर्म के आंकड़ों के मुताबिक कुल 185 एसएमई अब मुख्य प्लेटफॉर्म पर हैं। बीएसई एसएमई पर कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण 67,958 करोड़ रुपये है।