दरों में बढ़ोतरी की चिंताओं, बॉन्ड प्रतिफल और कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के बीच निवेशक जोखिम से बचकर दांव लगा रहे हैं, जिसके कारण आज लगातार तीसरे कारोबारी सत्र में भारतीय बाजार धड़ाम हो गए। ज्यादातर वैश्विक बाजारों में कारोबार कमजोर रहा, लेकिन भारत का प्रदर्शन एशिया में सबसे खराब रहा। यूरोपीय केंद्रीय बैंक (ईसीबी) के आक्रामक रुख ने चौंकाया है, जिसके बाद यूरोपीय बाजार भी दो फीसदी से अधिक लुढ़क गए।
चौतरफा चिंता के बीच आज बेंचमार्क सेंसेक्स 1,346 अंक या 2.3 फीसदी तक लुढ़क गया। बाद में उसने कुछ भरपाई की और सत्र के अंत में सूचकांक 1,023 अंक या 1.75 फीसदी गिरकर 57,621.2 पर बंद हुआ। नैशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी सत्र के आखिर में 302 अंक या 1.73 फीसदी फिसलकर 17,213.6 पर बंद हुआ। यह 24 जनवरी के बाद सबसे बड़ी गिरावट है, जिसमें निवेशकों ने 2.9 लाख करोड़ रुपयेे की संपत्ति गंवा दी।
अमेरिका में अनुमान से अधिक मजबूत आंकड़ों से चिंता पैदा हुई है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व पर ब्याज दरों में अनुमान से अधिक बढ़ोतरी का दबाव होगा। ओमीक्रोन के मामलों के बावजूद अमेरिकी अर्थव्यवस्था में पिछले महीने 4,67,000 रोजगार बढ़े। तेल की कीमतें लगातार सातवें सप्ताह चढऩे के बाद सोमवार को थोड़ी नरम पड़ीं। ब्रेंट क्रूड की कीमतें इस साल 20 फीसदी से ज्यादा चढ़कर करीब 95 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच चुकी हैं। मांग में सुधार और आपूर्ति में कटौती की वजह से कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। बहुत से विशेषज्ञों का अनुमान है कि तेल की कीमतें जल्द ही 100 डॉलर प्रति बैरल के पार निकल सकती हैं। बाजार ने न केवल बजट के बाद की पूरी बढ़त गंवा दी है बल्कि इस साल गिरावट में आ गया है। वर्ष 2022 के पहले पखवाड़े के दौरान बाजार 6 फीसदी से अधिक बढ़ा, लेकिन इस तेजी को जारी नहीं रख सका। महंगाई के दबाव के कारण वैश्विक केंद्रीय बैंकों, मुख्य रूप से अमेरिकी फेडरल रिजर्व को नरम मौद्रिक नीति से पलटने का संकेत देना पड़ा है।
ब्याज दरों में बढ़ोतरी पर अनिश्चितता के कारण बाजार में उठापटक पैदा हुई है। वर्ष 2022 के 25 कारोबारी सत्रों में से 13 सत्रों में सेंसेक्स एक फीसदी से अधिक घटबढ़ के साथ बंद हुआ है। विश्लेषकों ने कहा कि अब निवेशक दशकों में सबसे अधिक मौद्रिक सख्ती की संभावनाओं से जूझ रहे हैं। इसके अलावा अमेरिका में महंगाई की रिपोर्ट इस सप्ताह आने के आसार हैं। यह 7 फीसदी से ऊपर रहने के आसार हैं, जो चार दशकों में सबसे अधिक है। दुनिया भर में केंद्रीय बैंकों के सामने चुनौतीपूर्ण स्थतियां हैं क्योंकि महामारी के बाद आर्थिक सुधार और महंगाई में बढ़ोतरी से उन पर प्रोत्साहन उपायों को समाप्त करने का दबाव बढ़ रहा है। इन प्रोत्साहन उपायों की बदौलत ही 2020 में मार्च के अंत से जोखिम वाली परिसंपत्तियों में उछाल आया है।
अमेरिका में 10 वर्षीय बॉन्ड का प्रतिफल 1.91 फीसदी पर अपने करीब 2 साल के सर्वोच्च स्तर पर है। तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से चिंताएं पैदा हुई हैं कि आरबीआई को इस सप्ताह ही दरों में बढ़ोतरी करनी होगी।