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निकट भविष्य में FIIs तय करेंगे बाजार की दिशा: हरीश कृष्णन

2025 की पहली छमाही में बाजार में भारी गिरावट के बाद सुधार देखा गया। पिछले एक साल में भारतीय कंपनियों की आय वृद्धि धीमी रही है। अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में सुधार की उम्मीद है।

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पुनीत वाधवा   
Last Updated- July 16, 2025 | 9:00 AM IST

अमेरिका और अन्य देशों के बीच व्यापार सौदा होने के साथ साथ भूराजनीतिक तनाव घटने की उम्मीद से हाल में बाजार धारणा सुधरी है। आदित्य बिड़ला सनलाइफ ऐसेट मैनेजमेंट कंपनी के सह-मुख्य निवेश अधिकारी और इक्विटी प्रमुख हरीश कृष्णन ने एक ईमेल साक्षात्कार में पुनीत वाधवा को बताया कि उन्होंने वित्त, उपभोग और संसाधनों में अपना निवेश बढ़ाया है, जबकि पूंजीगत वस्तु और रियल एस्टेट में घटाया है। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:

बाजारों के लिए नए कारक क्या हैं?

बाजार कारोबारियों का ध्यान व्यापार समझौतों की रूपरेखा और पिछले छह महीनों में 10 प्रतिशत की गिरावट के बाद डॉलर सूचकांक की स्थिति पर केंद्रित रहने की संभावना है, साथ ही उपभोग और कॉरपोरेट आय को बढ़ावा देने के लिए नए नीतिगत उपायों पर भी उनकी नजर बनी रह सकती है। पिछले तीन महीनों में वैश्विक बाजारों में मजबूत तेजी को देखते हुए व्यापार से जुड़ा कोई भी नीतिगत बदलाव, हाल के महीनों में सुधरी धारणा को प्रभावित कर सकता है।

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क्या अप्रैल के निचले स्तर से तेजी दर्ज करने के बाद बाजार अब ठहराव के दौर में आ गए हैं?

कैलेंडर वर्ष 2025 की पहली छमाही में बाजार में भारी गिरावट के बाद सुधार देखा गया। पिछले एक साल में भारतीय कंपनियों की आय वृद्धि धीमी रही है। हालांकि, हमें अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में सुधार की उम्मीद है, जिसे भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती, सरकार द्वारा लक्षित कर राहत और आने वाले महीनों में व्यापार वार्ता पूरी होने से मदद मिलेगी। हालांकि अल्पावधि में बाजार में कुछ समेकन संभव है, फिर भी हम मध्यावधि से दीर्घावधि में भारतीय इक्विटी को लेकर उत्साहित हैं।

उभरते बाजारों (ईएम), खासकर भारत में निवेश प्रवाह के लिए आपका क्या नजरिया है?

डॉलर सूचकांक में स्थिरता उभरते बाजारों में निवेश की दिशा तय करेगी। अमेरिकी प्रशासन व्यापार में प्रतिस्पर्धात्मकता हासिल करने के लिए डॉलर को कमजोर करने पर आमादा दिख रहा है, भले ही वह पूंजी प्रवाह का नेतृत्व करने से पीछे हट जाए। अगर ऐसा होता है, तो उभरते बाजार में नए सिरे से निवेश देखने को मिल सकता है। उभरते बाजारों का एक बड़ा हिस्सा होने के नाते भारत को इस तरह के किसी भी पुन: आवंटन से लाभान्वित होगा। वैश्विक बाजार पूंजीकरण में इसका हिस्सा लगभग 4 प्रतिशत से कम है, जो मोटे तौर पर वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में उसकी भागीदारी के अनुरूप है। अगले दशक में, वैश्विक जीडीपी में भारत का हिस्सा दोगुना होने की उम्मीद है और बाजार पूंजीकरण भी इसी रफ्तार से बढ़ सकता है।

पिछले छह से आठ महीनों में आपने अपने पोर्टफोलियो में क्या बदलाव किया है?

हमने वित्त, उपभोग और संसाधनों में अपना निवेश बढ़ाया है, जबकि पूंजीगत वस्तु और रियल एस्टेट में कटौती की है। हम आम तौर पर समय के साथ निवेश से पूरी तरह से जुड़े रहे और ज्यादा नकदी रखने से बचते रहे हैं। आदित्य बिड़ला सन लाइफ बैलेंस्ड एडवांटेज फंड जैसे हमारे ऐसेट एलोकेशन उत्पादों में, सितंबर 2024 में शुद्ध इक्विटी निवेश 54 प्रतिशत था, जो अक्टूबर की शुरुआत में घटकर 38 प्रतिशत रह गया। फिर हमने जून के मध्य तक इक्विटी आवंटन बढ़ाकर 78 प्रतिशत कर दिया और पिछले महीने मुनाफावसूली के बाद यह लगभग 70 प्रतिशत पर रह गया।

एफआईआई, घरेलू संस्थागत निवेशक या खुदरा निवेशक, अगले साल बाजारों पर किसकी पकड़ ज्यादा मजबूत रहने की संभावना है?

मौजूदा समय में ये तीनों समूह खरीदार हैं, जबकि प्रमोटर और निजी इक्विटी मुख्य विक्रेता हैं। लेकिन कुछ हद तक एफआईआई मूल्यांकन के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनके पास निवेश करने के लिए अन्य भौगोलिक क्षेत्र भी होते हैं। इसलिए, अगर मूल्यांकन अब काफी बढ़ता है, तो हमें उम्मीद है कि एफआईआई अल्पावधि में बाजार के रिटर्न को
प्रभावित करेंगे।

First Published : July 16, 2025 | 9:00 AM IST