एक साल पहले भारतीय शेयर बाजार अपने सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गए थे। तब निफ्टी 26,277 और सेंसेक्स 86,000 के करीब पहुंच गया था। तब से दोनों सूचकांक अपने शिखर से 6 फीसदी से ज्यादा नीचे रहे हैं। बीएसई में सूचीबद्ध कंपनियों का एमकैप अब 450.6 लाख करोड़ डॉलर रह गया है जो रिकॉर्ड 478 लाख करोड़ डॉलर से कम है। पिछले हफ्ते यह अंतर करीब-करीब खत्म होने की सूरत बन गई थी और एमकैप भी अपने नए शिखर से 3 फीसदी से भी कम रह गया था।
व्यापक बाज़ार और भी पिछड़ गए हैं। निफ्टी मिडकैप 100 और निफ्टी स्मॉलकैप 100 अपने-अपने उच्चतम स्तर से क्रमशः 7 फीसदी और 11 फीसदी नीचे बने हुए हैं जो एक अस्थिरता वाले साल के दौरान बड़ी कंपनियों की तुलनात्मक मजबूती को दर्शाता है। नई सूचीबद्धता ने भी समग्र बाजार पूंजीकरण को सहारा दिया है।
सूचकांक हालांकि सालाना आधार पर करीब 6 फीसदी नीचे हैं। लेकिन आय वृद्धि के हिसाब से समायोजित करें तो मूल्यांकन कम से कम 10 फीसदी सस्ता है। विश्लेषक मजबूत घरेलू तरलता को स्थिर कारक मानते हैं, जिसने पिछले 12 महीनों में एफपीआई की 2.7 लाख करोड़ डॉलर की निकासी की भरपाई की है।
कई रणनीतिकार अब मौका दिख रहा है। एचएसबीसी के मुख्य एशिया इक्विटी रणनीतिकार हेरल्ड वैन डेर लिंडे ने एक नोट में कहा, हालांकि विदेशी फंडों ने पिछले एक साल में भारत से अच्छी-खासी रकम निकाली है। यह वह दौर था जब बाजार का प्रदर्शन काफी खराब रहा, लेकिन स्थानीय निवेशक मजबूत बने हुए हैं।
आय वृद्धि की उम्मीदें थोड़ी कम हो सकती हैं। लेकिन मूल्यांकन अब चिंता का विषय नहीं है। सरकारी नीतियां लगातार सहायक होती जा रही हैं और ज़्यादातर विदेशी फंडों ने कम पोजीशन ले रखी हैं। हमारा मानना है कि भारतीय शेयर आकर्षक दिख रहे हैं। एचएसबीसी ने भारत की रेटिंग को ‘न्यूट्रल’ से बढ़ाकर ‘ओवरवेट’ कर दिया है।
फिर भी एफपीआई की जारी बिकवाली, अमेरिकी टैरिफ और रुपये में नरमी के बीच व्यापक रुझान कमजोरी दर्शाते हैं। समी मोडक