इस साल की मार्च तिमाही में घरेलू संस्थागत निवेशकों (मुख्य रूप से म्युचुअल फंड और बीमा कंपनियां) ने एनएसई में सूचीबद्ध कंपनियों में स्वामित्व के मामले में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को पीछे छोड़ दिया। प्राइम डेटाबेस के अनुसार देसी संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) के पास मार्च तिमाही में 17.62 फीसदी हिस्सेदारी थी, जो दिसंबर 2024 तिमाही में 16.89 फीसदी थी। एफपीआई स्वामित्व 17.22 फीसदी रहा। प्राइम डेटाबेस के 2009 में डेटा ट्रैकिंग शुरू करने के बाद से यह पहला मौका है जब डीआईआई ने एफपीआई को पीछे छोड़ा है।
डीआईआई के निवेश की कीमत 71.76 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई जो एफपीआई के मुकाबले 2 फीसदी ज्यादा है। एक दशक पहले मार्च 2015 में इन दोनों के स्वामित्व का अंतर 1,032 आधार अंकों पर पहुंच गया था जिसमें डीआईआई के निवेश की कीमत एफपीआई के आधे के बराबर थी। तब से एफपीआई ने भारतीय इक्विटी में अपनी हिस्सेदारी लगातार कम की है।
प्राइम डेटाबेस समूह के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया ने कहा, कई सालों से एफपीआई भारतीय बाजार में सबसे बड़े गैर-प्रवर्तक शेयरधारक श्रेणी रहे हैं, जिनके निवेश निर्णयों का बाजार की दिशा पर बहुत बड़ा असर पड़ता है। अब ऐसा नहीं है।
डीआईआई के साथ-साथ खुदरा (किसी कंपनी में 2 लाख रुपये तक की हिस्सेदारी वाले व्यक्ति) और एचएनआई (2 लाख रुपये से अधिक निवेश करने वाले) अब उनकी भरपाई की भूमिका निभा रहे हैं। इनकी हिस्सेदारी 31 मार्च 2025 तक 27.10 फीसदी के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई है। हालांकि एफआईआई एक महत्त्वपूर्ण घटक बने हुए हैं, लेकिन भारतीय पूंजी बाजार पर उनकी पकड़ कम हो गई है।
भारतीय म्युचुअल फंडों ने भी मार्च तिमाही में उपलब्धि हासिल की और एनएसई की सूचीबद्ध फर्मों में उनकी हिस्सेदारी 10.35 फीसदी पर पहुंच गई। यह पहला मौका है जब उनका आंकड़ा दो अंकों में पहुंचा है।
ट्रेडजिनी के मुख्य परिचालन अधिकारी त्रिवेश डी ने कहा, ऐतिहासिक रूप से एफपीआई ने अपने निवेश और निकासी के साथ बाजार की गतिविधियों को खासा प्रभावित किया है। लेकिन उनका दबदबा कम हो रहा है। म्युचुअल फंड, बीमा कंपनियों और व्यवस्थित निवेश योजनाओं (एसआईपी) के माध्यम से खुदरा निवेशकों समेत डीआईआई वैश्विक अस्थिरता के खिलाफ स्थिरता प्रदान कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि स्थानीय स्वामित्व बढ़ने से बाजार में अस्थिरता कम हो रही है। चूंकि सीधे तौर पर आम लोग और एचएनआई ज्यादा भागीदारी कर रहे हैं। इसलिए भारतीय निवेशकों के पास बाजार का स्वामित्व जा रहा है जिससे एफपीआई के बाहर निकलने को लेकर अतिसंवेदनशीलता कम हो रही है। एफपीआई के विपरीत (जो अचानक वापस जा सकते हैं) डीआईआई अधिक स्थिर होते हैं। यह अक्टूबर 2024 में स्पष्ट हुआ जब घरेलू निवेशकों ने एफपीआई की 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की बिकवाली की भरपाई की जिससे बाजार में उथल-पुथल रुक सकी।