Stock Markets in the times of war: युद्ध जैसी प्रतिकूल परिस्थितियां लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स के लिए काफी मुनाफा कमाने वाली हो सकती हैं। एनालिस्ट्स का मानना है कि निवेशकों के लिए यह समय अपनी पसंदीदा कंपनियों के शेयर सस्ते रेट में खरीदने का अच्छा मौका हो सकता है। बशर्ते उनके पास रिस्क लेने की क्षमता हो। हालांकि, निवेशकों को पहले यह वैल्यूएशन करना होगा कि क्या यह भू-राजनीतिक घटनाक्रम (geopolitical developments) स्थानीय स्तर तक ही सीमित रहेगा या वैश्विक आकार लेगा।
पहले भी युद्ध जैसी कई घटनाएं हुईं हैं, जिसपर मार्केट का रिएक्शन देखना काफी दिलचस्प होगा। डेटा से पता चलता है कि बाजार आमतौर पर किसी भी नकारात्मक घटना या अनिश्चितता की आशंका में अधिक अस्थिरता (heightened volatility) के साथ रिएक्ट करते हैं, लेकिन समय के साथ जैसे-जैसे स्थिति स्पष्ट होती है, शेयर बाजार में तेजी और ज्यादा रफ्तार पकड़ने लगती है।
भू-राजनीतिक जोखिम भी इससे अलग नहीं हैं। ऐतिहासिक रूप से देखा गया है कि इक्विटी बाजार यानी शेयर मार्केट भू-राजनीतिक जोखिम (geopolitical risks) के समय में ज्यादा तेजी से रिएक्ट करते हैं, लेकिन जल्द ही फिर से स्टेबल हो जाते हैं।
उदाहरण के लिए, 1990 में कुवैत पर ईरान ने हमला किया। आक्रमण के दौरान बाजारों में तेज गिरावट आई थी और उस समय कच्चे तेल की कीमतें दोगुनी हो गई थीं। हालांकि, चार महीने के भीतर शेयर बाजार अपने पीक लेवल पर वापस आ गए थे।
भारत में भी 1999 के मध्य में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध के दौरान बाजार में तेज गिरावट देखी गई थी। हालांकि, बाजारों ने तेजी से वापसी की जब यह स्पष्ट हुआ कि यह युद्ध अधिक समय तक नहीं चलेगा।
पिछले कुछ कारोबारी सत्रों में पश्चिम एशिया में भू-राजनीतिक तनाव (geopolitical tensions in West Asia) बढ़ने के कारण भारत समेत ग्लोबल मार्केट पर दबाव पड़ा। इससे ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमत में 5% की तेजी आई और यह लगभग 75 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई।
इंडिपेंडेंट मार्केट एनालिस्ट अंबरीश बालिगा के अनुसार, ‘युद्ध जैसी घटनाएं लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स के लिए खरीदारी का मौका देती हैं। लेकिन यह समझना जरूरी है कि क्या चल रहा यह संघर्घ कम समय के लिए यानी अस्थायी है या स्थिति और ज्यादा खराब होगी। यहां तक कि इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध के दौरान भी बाजारों में शुरुआती गिरावट आई थी। लेकिन, जब निवेशकों ने समझा कि घटनाएं स्थानीय स्तर पर ही सीमित रहेंगी तो जल्दी ही मार्केट की वापसी हुई। अब भी निवेशक युद्ध से ज्यादा इस बात की चिंता कर रहे हैं कि यह युद्ध लोकल लेवल पर सीमित रहेगा या नहीं। अगर स्थिति नियंत्रण में रहती है, तो बाजार अगले कुछ दिनों में वापसी कर सकते हैं।’
आने वाले कुछ सप्ताह बाजारों के लिए चुनौती भरे हो सकते हैं क्योंकि वे विधानसभा चुनावों के नतीजों, सितंबर तिमाही (Q2-FY25) के फाइनेंशियल रिजल्ट्स, भारतीय रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति (RBI Monatery policy) और ग्लोबल लेवल पर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के परिणाम और कच्चे तेल की कीमतों की दिशा पर नजर रखेंगे।