अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के टैरिफ झटके से बचने के लिए विश्लेषक निवेशकों को सलाह दे रहे हैं कि वे संभावित नुकसान कम करने के लिए निर्यात-केंद्रित कंपनियों के बजाय घरेलू कारोबार से जुड़ी कंपनियों के शेयरों पर ध्यान दें। इन सलाह के बावजूद अगस्त में (7 अगस्त को शुरुआती टैरिफ लागू होने के बाद) एफएमसीजी, रियल एस्टेट और निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकिंग शेयरों में सुस्ती बनी रही। हालांकि, ऑटोमोटिव और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स कंपनियों के शेयरों ने गिरावट को नजरअंदाज कर दिया है जिसका कारण मुख्य रूप से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कम करने का सरकार का वादा है।
आईएनवीऐसेट पीएमएस के फंड मैनेजर और पार्टनर अनिरुद्ध गर्ग के अनुसार कई घरेलू-केंद्रित सेक्टरों में इस कमजोर प्रदर्शन का कारण निवेशकों का ‘प्रतीक्षा करो और देखो’ की नीति अपनाना है क्योंकि टैरिफ की घोषणाएं (शुरू में 25 प्रतिशत और उसके बाद 25 प्रतिशत का जुर्माना) ऐसे समय आई हैं जब 2025-26 की दूसरी तिमाही में भारतीय उद्योग जगत ने कमजोर आय दर्ज की है।
गर्ग का मानना है, ‘ऑटोमोटिव, एफएमसीजी और सीमेंट जैसे बुनियादी तौर पर सुरक्षित सेक्टर भी जोखिम में फंसे हैं। त्योहारी मांग के आंकड़ों या मजबूत आय के आंकड़ों जैसे स्पष्ट कारकों के बिना निवेशक आक्रामक रुख अपनाने से हिचक रहे हैं।’
50 प्रतिशत टैरिफ लागू होने के साथ ही बाजार विशेषज्ञ हालिया गिरावट के बावजूद निर्यात-आधारित शेयरों में निवेश बढ़ाने को लेकर आगाह कर रहे हैं। हालांकि सैद्धांतिक रूप से निर्यात-केंद्रित क्षेत्रों से अपने निवेश को घरेलू-केंद्रित कंपनियों में ले जाना निवेशकों के लिए समझदारी भरा कदम है। पर अभी यह बदलाव नहीं हुआ है।
सोविलो इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के फंड मैनेजर संदीप अग्रवाल के अनुसार अमेरिकी टैरिफ नीति की अनिश्चितता को देखते हुए निवेशकों को घरेलू-केंद्रित शेयरों के मामले में भी सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि घरेलू के तर्क ने अभी तक काम नहीं किया है। अग्रवाल बताते हैं, ‘विदेशी संस्थागत निवेशकों की निरंतर निकासी सहित कई दबाव बरकरार हैं। लेकिन लंबी अवधि में फंडामेंटल ही काम करेंगे।’
भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव के बीच 27 अगस्त से लागू नए 50 प्रतिशत टैरिफ एशिया में सबसे ज्यादा टैरिफ में से एक हैं। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनीशिएटिव के एक विश्लेषण के अनुसार इससे परिधान, कपड़ा, इंजीनियरिंग सामान, रत्न एवं आभूषण, झींगा और कालीन जैसे क्षेत्रों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।
गर्ग का कहना है कि निवेशकों को घरेलू बढ़ोतरी से जुड़े शेयरों में अवसरों की तलाश जारी रखनी चाहिए, खासकर उन शेयरों में जो मजबूत नीतिगत या संरचनात्मक अनुकूल परिस्थितियों से लाभान्वित हो रहे हैं। वह कहते हैं, ‘रक्षात्मक शेयरों के अलावा, उभरती तकनीकी फर्म और स्वास्थ्य सेवा कंपनियां मजबूत बढ़त के उदाहरण पेश करती हैं। साल के अंत से पहले बातचीत के जरिये समाधान निकालने से बाजार में कुछ अनिश्चितता कम हो सकती है। इसलिए अस्थायी गिरावट तीन साल के निवेश के लिए पैसा लगाने का आदर्श समय है।’
जीएसटी 2.0 में बदलाव से ऊंचे विवेकाधीन खर्चों में वृद्धि और त्योहारी सीजन की मांग बढ़ेगी। विश्लेषकों का अनुमान है कि घरेलू-केंद्रित क्षेत्रों के शेयरों की रेटिंग में संभावित बदलाव हो सकता है। गर्ग कहते हैं, ‘अल्पावधि सुस्ती अंतर्निहित संरचनात्मक कमजोरी से ज्यादा भावनाओं से जुड़ी है।’
निर्यात-केंद्रित शेयरों में भारी गिरावट आई है और अब इनमें तेजी की संभावना है। लेकिन अग्रवाल चेतावनी देते हैं कि लंबे समय तक अनिश्चितता का लाखों लोगों को रोजगार देने वाले उद्योगों, खासकर कपड़ा उद्योग पर दीर्घावधि प्रभाव पड़ सकता है। अग्रवाल कहते हैं, ‘मैं अभी निर्यात-प्रधान या अमेरिका-आधारित शेयरों में नई पूंजी नहीं डालूंगा। मैं उन कंपनियों पर ध्यान दूंगा जिनमें ये जोखिम नहीं हैं।’
ऐंटीक स्टॉक ब्रोकिंग के विश्लेषकों का मानना है कि जहां कपड़ा क्षेत्र की आय पर ज्यादा अमेरिकी कारोबार की वजह से असर पड़ सकता है, वहीं कुछ सेक्टर जैसे सूचना प्रौद्योगिकी सेवाएं, फार्मास्युटिकल, रसायन, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण सेवाएं और कुछ धातु कंपनियां, पर्याप्त अमेरिकी राजस्व के बावजूद, उत्पाद छूट या अमेरिकी सहायक कंपनियों के माध्यम से संचालन के कारण सीमित प्रभाव का सामना करेंगी।