पिछले एक साल में भारतीय शेयर बाजारों ने सूचकांक के स्तर पर नगण्य रिटर्न दिया है। नोमूरा में भारत इक्विटी रिसर्च के प्रमुख सायन मुखर्जी ने पुनीत वाधवा को ईमेल साक्षात्कार में बताया कि जोखिम वाला माहौल मिडकैप और स्मॉलकैप शेयरों के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन शेयर विशेष का नजरिया अपनाना सही होगा। संपादित अंश:
2025 का बाजार अब तक शेयर विशेष का ही रहा है। क्या कोई ऐसे मजबूत संकेतक हैं जिससे सभी शेयरों में तेजी आ सके?
पिछले एक साल में भारतीय बाजारों ने अमेरिकी डॉलर के लिहाज से ऋणात्मक 10 फीसदी का रिटर्न यानी घाटा दिया है जो वैश्विक सूचकांकों से कम है। यहां तक कि एनएसई स्मॉलकैप और मिडकैप जैसे व्यापक सूचकांक भी डॉलर के लिहाज़ से पीछे रहे हैं। दो बातों से व्यापक बाजार में तेजी आ सकती है:
1. सरकार के उपभोग प्रोत्साहन के बाद मजबूत आर्थिक गति जो निकट भविष्य में सकारात्मक विकास की बात बन सकती है।
2. विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) का बढ़ता निवेश, खासकर ऐसे समय में जब अन्य इलाकों और तकनीकी शेयरों में तेजी के बाद वैश्विक बाजारों में सुस्ती दिख रही है। घरेलू विकास के बेहतर होते परिदृश्य के साथ-साथ अमेरिकी डॉलर में गिरावट भी एफआईआई को आकर्षित कर सकती है।
क्या मौजूदा स्तरों पर मिड और स्मॉलकैप पर निवेश लायक हैं?
जोखिम भरे माहौल में मिडकैप और स्मॉलकैप आकर्षक हो सकते हैं, लेकिन हम व्यापक निवेश के बजाय शेयर विशेष का नजरिया अपनाने की सलाह देते हैं।
क्या आपने भारत के लिए अपनी इक्विटी रणनीति में बदलाव किया है?
हम निर्यातकों की तुलना में घरेलू और निवेशों की तुलना में उपभोग को प्राथमिकता देना जारी रखे हुए हैं। भारत के आम चुनावों के बाद जुलाई 2024 से हमने उपभोग के पक्ष में नीतिगत बदलाव की उम्मीद की थी। यह इस साल घोषित प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर कटौती में जाहिर होता है। हम फार्मास्युटिकल्स और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) सेवाओं सहित निर्यातकों के प्रति सतर्क बने हुए हैं। हमारा मार्च 2026 का निफ्टी का लक्ष्य 26,140 है, जिसमें 2026-27 के मौजूदा आम सहमत अनुमान से करीब 6 फीसदी का जोखिम मान रहे हैं और एक वर्ष आगे का 21 गुना पीई मान रहे हैं।
भारतीय इक्विटी का कमजोर प्रदर्शन कब तक रहेगा?
निरंतर कमजोर प्रदर्शन का तर्क देना मुश्किल है। अगर तकनीकी शेयरों में तेजी स्थिर रहती है और वैश्विक व्यापक आर्थिक अनिश्चितता बढ़ती है तो भारत बेहतर प्रदर्शन करना शुरू कर सकता है। हालांकि उभरते बाजारों की तुलना में कमजोर प्रदर्शन जारी रह सकता है अगर :
1. तकनीक/आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) में तेजी और निवेशकों का उत्साह बरकरार रहे।
2. अमेरिका-चीन के बीच एक अच्छा व्यापार समझौता निवेशकों को चीन के प्रति अधिक सकारात्मक बना सकता है।
3. अमेरिका के प्रतिकूल नीतिगत कदमों का भारत के सेवा उद्योग पर प्रभाव पड़ता है, जिसके दीर्घकालिक परिणाम हो सकते हैं।
मूल्यांकन और कंपनियों की सुस्त आय के अलावा एफआईआई की भारत को लेकर क्या चिंता है?
उच्च मूल्यांकन और उम्मीद से धीमी वृद्धि मुख्य चिंता है। भारत में वर्तमान में एआई/तकनीकी क्षेत्र में सीमित निवेश की गुंजाइश है। चूंकि निवेशक एआई के दीर्घकालिक असर पर दांव लगा रहे हैं जो तकनीकी शेयरों के प्रदर्शन में दिखता है तो यह भारत (विशेष रूप से आईटी क्षेत्र, जो निर्यात और रोज़गार में प्रमुख योगदान देता है) में संभावित उथल-पुथल का संकेत देता है।
पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) चक्र में उल्लेखनीय वृद्धि न होने से भी एफआईआई निराश हैं। आयकर में कटौती और उत्पादन-संबंधी प्रोत्साहनों सहित नीतिगत समर्थन से अभी तक पूंजीगत व्यय में कोई सुधार नहीं आया है और आर्थिक वृद्धि पर अपेक्षित गुणक प्रभाव नहीं दिखा है।
हालिया नीति कदमों का असर भारतीय कंपनी जगत की आय और उनके मुनाफे पर कब दिखना शुरू होगा?
आम सहमति यह है कि 2025-26 में आय वृद्धि करीब 10 फीसदी रहेगी जो 2024-25 के करीब 9 फीसदी से बढ़कर वित्त वर्ष 27 में करीब 15 फीसदी हो जाएगी। निकट भविष्य में कंपनियों की आय वृद्धि नॉमिनल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि से कम हो सकती है। 2018-19 और 2023-24 के बीच आय करीब 28 फीसदी की सालाना चक्रवृद्धि दर से बढ़ी और आय-जीडीपी अनुपात 2007-08 के उच्च स्तर के करीब पहुंच गया।
वित्त वर्ष 2027 की आय में करीब 6 फीसदी की गिरावट संभव है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) में कटौती जैसे उपायों से वित्त वर्ष 2026 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में उपभोक्ता क्षेत्र की मांग में तेजी की उम्मीद है। यह देखना दिलचस्प होगा कि वित्त वर्ष 2027 में यह गति कैसी रहती है।
आईटी और बैंकिंग शेयरों पर निवेशकों को क्या नजरिया अपनाना चाहिए?
हम आईटी क्षेत्र को लेकर सतर्क बने हुए हैं, जो संरचनात्मक चुनौतियों और अनिश्चित मांग परिदृश्य का सामना कर रहा है। विवेकाधीन मांग बढ़ने पर तेजी संभव है, लेकिन इसकी संभावना सीमित दिखती है। हम बैंकिंग क्षेत्र को लेकर सकारात्मक हैं। उम्मीद है कि शुद्ध ब्याज मार्जिन और परिसंपत्ति गुणवत्ता पर दबाव कम होगा और मूल्यांकन अत्यधिक नहीं होगा। फार्मास्युटिकल्स (जेनेरिक) एक कॉन्ट्रा दांव साबित हो सकता है।