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कंपनी जगत के रॉयल्टी भुगतान को लेकर चिंता : सेबी का अध्ययन

चार मे से एक मामला ऐसा रहा जिसमें कंपनियों ने अपने शुद्ध लाभ का 20 फीसदी से ज्यादा संबंधित पार्टियों को रॉयल्टी के रूप में भुगतान किया।

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खुशबू तिवारी   
Last Updated- November 14, 2024 | 11:10 PM IST

बाजार नियामक सेबी के हालिया अध्ययन में सूचीबद्ध कंपनियों की तरफ से किए गए रॉयल्टी भुगतान में कुछ चिंताजनक रुझान सामने आए हैं। चार मे से एक मामला ऐसा रहा जिसमें कंपनियों ने अपने शुद्ध लाभ का 20 फीसदी से ज्यादा संबंधित पार्टियों को रॉयल्टी के रूप में भुगतान किया।

सेबी के अध्ययन में वित्त वर्ष 2014 से 10 साल की अवधि में 233 सूचीबद्ध कंपनियों का विश्लेषण किया गया। नियामक को मंजूरी की सीमा से नीचे रॉयल्टी भुगतान के 1,538 मामले मिले। यह सीमा अभी टर्नओवर का 5 फीसदी तय की हुई है। टर्नओवर का 5 फीसदी से ज्यादा रॉयल्टी भुगतान करने पर अल्पांश शेयरधारकों की बहुमत मंजूरी जरूरी है।

रॉयल्टी भुगतान के 1,353 मामले जहां लाभ कमाने वाली कंपनियों के थे, वहीं करीब 185 मामले नुकसान दर्ज करने वाली कंपनियों के रहे। घाटे वाली 63 कंपनियों के रॉयल्टी भुगतान के 185 मामलों के तहत कुल मिलाकर 1,355 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।

इतना ही नहीं, दो में से एक मामला ऐसा रहा जिसमें रॉयल्टी देने वाली सूचीबद्ध कंपनी ने लाभांश नहीं दिया या संबंधित पार्टी को ज्यादा रॉयल्टी चुकाई। इस अध्ययन में कमजोर डिस्क्लोजर, अनुचित भुगतान और ब्रांड इस्तेमाल व तकनीक के लिए अनुचित भुगतान पर भी प्रकाश डाला गया है। सेबी के अध्ययन में कहा गया है कि रॉयल्टी भुगतान के औचित्य और दरों के बारे में सूचीबद्ध कंपनियों ने अपनी सालाना रिपोर्ट में सही कारण नहीं बताए।

प्रॉक्सी एडवाइजरी ने भी असहज रूप से रॉयल्टी के तौर पर बड़े भुगतान को लेकर चिंता जताई है। प्रॉक्सी एडवाइजरी फर्मों की चिंता पर अध्ययन में कहा गया है कि रॉयल्टी और संबंधित भुगतान पर कमजोर डिस्क्लोजर का पर्दा पड़ा रहता है। सूचीबद्ध कंपनियां रॉयल्टी भुगतान में पर्याप्त कारण या औचित्य नहीं बतातीं। साथ ही ऐसे रॉयल्टी भुगतान के बदले उन्हें मिलने वाले रिटर्न के बारे में भी विस्तार से नहीं बतातीं।

प्रॉक्सी सलाहकारों ने कहा है कि कमजोर डिस्क्लोजर रॉयल्टी भुगतान और ऐसे भुगतान के बदले मिलने वाले लाभ पर पर्दा पड़ा रहता है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि कंपनियां ब्रांड के इस्तेमाल के लिए अक्सर बड़ा भुगतान करती हैं जबकि खुद ये कंपनियां विज्ञापन और ब्रांड प्रमोशन पर खासा खर्च करती हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि एमएनसी यानी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के मामले में भारतीय सहायक के शेयरधारकों के पास अन्य देशों की सहायक कंपनियों से वसूली जाने वाली रॉयल्टी की दर के बारे में कम जानकारी होती है।

First Published : November 14, 2024 | 10:55 PM IST