भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने म्युचुअल फंडों के टोटल एक्सपेंस रेशियो (टीईआर) में बदलाव लाने की रूपरेखा साझा की है और इससे निवेशकों द्वारा चुकाए जाने वाले शुल्कों में कमी आ सकती है। गुरुवार को जारी एक परामर्श पत्र में, नियामक ने ऐसा नया टीईआर ढांचा बनाने का प्रस्ताव रखा है जिसमें कुल खर्च पर सीमा हरेक परिसंपत्ति वर्ग में म्युचुअल फंडों की कुल परिसंपत्तियों से जुड़ी होगी, जबकि मौजूदा व्यवस्था में अधिकतम खर्च किसी योजना में प्रबंधित होने वाली कुल परिसंपत्तियों पर आधारित है।
इसके अलावा, नियामक ने लेनदेन लागत, ब्रोकरेज और जीएसटी जैसे शुल्कों को टीईआर में शामिल करने की योजना बनाई है। परामर्श पत्र में कहा गया है, ‘ऐसा पता चला है कि ब्रोकरेज और लेनदेन लागत से जुड़ी कुछ योजनाओं का खर्च निर्धारित अधिकतम टीईआर सीमा से भी ज्यादा है। इसकी वजह से निवेशक टीईआर सीमा के मुकाबले दोगुने से ज्यादा चुका रहे हैं।
अब प्रस्ताव रखा गया है कि ब्रोकरेज और लेनदेन खर्च को टीईआर सीमा में शामिल किया जा सकेगा।’ इसके परिणामस्वरूप, जहां अधिकतम टीईआर सीमा में इक्विटी योजनाओं के लिए कुछ बढ़ाने का प्रस्ताव है और निवेशकों द्वारा चुकाया जाने वाला कुल शुल्क घट जाएगा, क्योंकि टीईआर से ज्यादा कोई शुल्क नहीं वसूला जाएगा। नियामक ने इक्विटी योजनाओं के लिए टीईआर सीमा 2.55 प्रतिशत पर निर्धारित की है, जबकि मौजूदा सीमा 2.25 प्रतिशत है। वहीं डेट के लिए अधिकतम टीईआर स्लैब 2 प्रतिशत से घटाकर 1.2 प्रतिशत किया गया है।
नियामक के अनुसार, नई इक्विटी आधारित योजनाओं के निवेशकों द्वारा चुकाया जाने वाला कुल शुल्क मौजूदा समय में औसत तौर पर 2.78 प्रतिशत है, जो अतिरिक्त शुल्कों की वजह से 2.25 प्रतिशत की निर्धारित सीमा से ज्यादा है। परामर्श पत्र में खुलासा किया गया है कि नया खर्च ढांचा निवेशकों द्वारा चुकाए जाने वाले शुल्कों में 4.55 प्रतिशत तक की कमी लाने में मददगार हो सकता है। वित्त वर्ष 2022 में, एमएफ उद्योग ने सक्रिय योजनाओं के प्रबंधन के लिए 30,806 करोड़ रुपये का कुल शुल्क प्राप्त किया था और प्रस्तावित मॉडल पर यदि अमल होता है तो यह आंकड़ा घटकर 29,404 करोड़ रुपये बैठता है।
नियामक ने स्वीकार किया है कि अतिरिक्त खर्च (खासकर लेनदेन लागत और ब्रोकरेज शुल्क) को शामिल किए जाने की वजह से फंडों पर बोझ पड़ता है, लेकिन उसका कहना है कि नया कदम यूनिटधारकों से वसूले जाने वाले शुल्कों में जरूरी पारदर्शिता लाने के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण है। नियामक ने फंडों को अच्छे प्रदर्शन के मामले में ज्यादा शुल्क वसूलने का भी प्रस्ताव रखा है। सेबी ने कहा है कि यदि किसी योजना का प्रदर्शन सांकेतिक प्रतिफल से ज्यादा अच्छा रहता है तो फंडों को ज्यादा प्रबंधन शुल्क वसूलने की अनुमति होगी।