देश के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र का बैंक एसबीआई लगातार कर्ज दे रहा है लेकिन यह लाभ के लिये पर्याप्त नहीं है।
मार्च 2008 की तिमाही में कर्ज देने की ग्रोथ 24 फीसदी रही साथ ही इसमें रिटेल पोर्टफोलियो की हिस्सेदारी 20 फीसदी है। लेकिन बैंक केनेट इंट्रेस्ट मार्जिन में 0.1 फीसदी की गिरावट आई और यह 2.8 फीसदी केस्तर पर आ गया।
इस गिरावट की वजह बैंक का ब्याज दरों का एक्रुएल करना रहा। इसकी कुछ बहुत वजह फरवरी 2008 में प्रधान ब्याज दर में कटौती करना और बैंक के बांड पोर्टफोलियो का तेजी नीचे की ओर जाना रहा। बैंक के कुल जमा में बचत और मौजूदा खातों का अनुपात बढ़ा। दिसंबर 2007 के 41.1 फीसदी की तुलना में इस तिमाही में यह अनुपात 43 फीसदी रहा।
इसका यह भी परिणाम रहा कि बैंक के पूर्व-प्रक्रियागत लाभ में मात्र 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। पेंशन प्रावधानों के लिये बैंक को 500 करोड़ का राइटबैक देना पड़ा। करों की देनदारी के बाद यह लाभ कम रहा।बैंक के लिये परेशान करने वाली बात उसके परिसंपत्ति की गुणवत्त्ता का बिगड़ना रहा। बैंक केनॉन-परफॉरमिंग लोन में भी 21 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई। अब यह 3.4 फीसदी के ग्रास एनपीएल के साथ 1.78 फीसदी पर है।
बैंक केनॉन-परफॉरमिंग लोन सिर्फ रिटेल सेक्टर की ही हिस्सेदारी नही रही बल्कि कृषि और छोटे एवं मझोले उद्योगों को दिये गये ऋणों ने भी अच्छा प्रदर्शन नही किया। अपनी परिसंपत्तियों की गुणवत्त्ता को बरकरार रखना बैंक के क्रेडिट कार्ड पोर्टफोलियो के लिये भी एक चुनौती होगा।
बढ़ती महंगाई में ब्याज की दरों के ऊंचा रहने से वित्त्तीय वर्ष 2008 में एसबीआई का लोन ग्रोथ 20 फीसदी केधीमे स्तर पर हो सकेगा। उच्च प्रावधानों की आवश्यकताओं और नीचे एनपीएल कवरेज की वजह से बैंक की लागत बढ़ सकती है। बैंक का एनपीएल इस समय दिसंबर के 47 फीसदी केस्तर से कम होकर 42 फीसदी पर है। इसीतरह नेट इंट्रेस्ट मार्जिन के भी धीमे रहने के आसार हैं।
बैंक की अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिये नई शाखाओं की संख्या बढ़ाने के फैसले से भी बैंक के लागत ऊंची रह सकती है। मौजूदा बाजार मूल्य 1,779 रुपये के स्तर पर एसबीआई के स्टॉक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय के 1.7 गुना के स्तर पर हो रहा है लेकिन वित्तीय वर्ष 2010 में अनुमानित आय से इसका स्तर 1.5 गुना कम है।
डीएलएफ-मुनाफे की ओर
वित्तीय वर्ष 2008 की मार्च तिमाही में देश के सबसे बड़े अधिसूचित रियल एस्टेट डेवलपर डीएलएफ के संचित राजस्व 20 फीसदी बढ़कर 4,307 करोड़ रुपये हो गया। हालांकि नेट प्रॉफिट सिर्फ 1.5 फीसदी बढ़कर 2,177 करोड़ रुपये रहा। इसकी वजह ऊंचे कर्ज केस्तर पर कंपनी केब्याज दर के भुगतान में 37 फीसदी की बढ़त भी रही।
कंपनी की लाभ प्राप्त करने की क्षमता भी प्रभावित हुई और उसका ऑपरेटिंग प्रॉफिट मार्जिन में पांच फीसदी की गिरावट आई और यह 64.6 फीसदी पर आ गया। इसकी वजह कंपनी का मध्यम आय की हाउसिंग प्रॉपर्टी पर फोकस करना रहा। कंपनी नें इस तिमाही में ज्यादा मध्यम आय की परिसंपत्तियों की बिकवाली की और फर्म को प्राप्त कुल राजस्व में इन परिसंपत्तियों की हिस्सेदारी 12 फीसदी रही।
इसके बावजूद कंपनी की प्रमोटर ग्रुप की कंपनी डीएलएफ एसेट लिमिटेड को बिक्री काफी कम रही और यह दिसंबर के स्तर 53 फीसदी की तुलना में काफी कम होकर 42 फीसदी पर रहा। डीएएल को वाणिज्यिक परिसंपत्तियां बेचना कंपनी के लिये ज्यादा लाभ प्रदान करने वाला रहा है।
डीएलएफ की बिक्री से प्राप्त लाभ में डीएएल की हिस्सेदारी 40 फीसदी है लेकिन यह अनुमानित स्तर से कम है। विश्लेषकों का मानना है कि इस माहौल के बने रहने के आसार हैं क्योंकि कंपनी की डीएएल को बिक्री आगे भी ढीली रहेगी।
कंपनी की ऊंचे राजस्व पर ज्यादा निर्माण गतिविधियों की वजह से इस तिमाही में उसकी प्राप्तियों में 1,430 करोड़ की बढ़त देखी गई। डीएएल की प्राप्तियां वित्तीय वर्ष 2008 से स्थिर हैं लेकिन अन्य राजस्व प्राप्तियों में 5,500 करोड़ का इजाफा हुआ या कंपनी के कुल राजस्व में नॉन डीएएल राजस्व की सालाना भागेदारी 60 फीसदी है।
डीएलएफ के पास 750 मिलियन का लैंड बैंक है और इसमें 60 मिलियन अभी निर्माण की प्रक्रिया में है।
फर्म का मुख्य फोकस ऑफिस सेगमेंट पर है जिसकी हिस्सेदारी 62 फीसदी है। लेकिन कंपनी रेजीडेंशियल सेगमेंट की हिस्सेदारी को 18 फीसदी से बढ़ाने के बारे में विचार कर रही है। क्योंकि कंपनी के मध्यम आय वाले प्रोजेक्ट को कलकत्ता,इंदौर और चेन्नई जैसे शहरों में काफी सफलता मिली है।
कंपनी के स्टॉक का मौजूदा बाजार मूल्य 705 रुपये है और विश्लेषकों का मानना है कि वित्तीय वर्ष 2009 में 675 से 700 रुपये पर कंपनी की नेट एसेट वैल्यू निचले स्तरों पर रहेगी।