मूडीज की तरफ से सॉवरिन रेटिंग घटाए जाने के बावजूद रुपये में मजबूती दर्ज हुई और बॉन्ड के प्रतिफल में गिरावट आई क्योंकि बाजार ने रेटिंग घटाए जाने पर ध्यान नहीं दिया।
करेंसी डीलरों ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने मुद्रा बाजारों में हस्तक्षेप किया और द्वितीयक बाजार से शायद कुछ बॉन्डों की खरीदारी की। अभी लगता है कि भारतीय रिजर्व बैंक रुपये को मजबूत नहीं होने दे रहा है। केंद्रीय बैंक रिलायंस जियो व भारती एयरटेल की हिस्सेदारी बिक्री से आई रकम को अवशोषित कर रहा है। 22 मई को समाप्त हफ्ते में आरबीआई का मुद्रा भंडार 3 अरब डॉलर की बढ़ोतरी के साथ 490 अरब डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। अगर केंद्रीय बैंक ने रकम के प्रवाह को अवशोषित न किया होता तो रुपया अपने मौजूदा स्तर 75.36 प्रति डॉलर से ऊपर गया होता। सोमवार को रेटिंग डाउनग्रेड होने से पहले रुपया 75.54 प्रति डॉलर पर बंद हुआ था। 10 वर्षीय बॉन्ड का प्रतिफल 5.79 फीसदी पर बंद हुआ, जो एक दिन पहले 5.82 फीसदी रहा था।
दिलचस्प रूप से रुपया 36 मुद्रा के निर्यात प्रतिस्पर्धी बास्केट में ज्यादा कीमत वाला दिख रहा है (आधार वर्ष 2004-05) जबकि छह अहम वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले इसकी कीमत कम दिख रही है (आधार वर्ष 2017-18, जो वास्तविक व प्रभावी विनिमय दर के आकलन के लिए है)। 36 मुद्राओं के बास्केट आधार वर्ष 2017-18 का इस्तेमाल कर रहा है क्योंकि आधार वर्ष का सार्वजनिक तौर पर खुलासा नहीं हुआ है। वास्तविक व प्रभावी विनिमय दर (आरईईआर) किसी मुद्रा की सापेक्षिक ताकत की माप अन्य मुद्रा से करता है, जिसके साथ उसका कारोबार होता है। अप्रैल में आरईईआर की वैल्यू (आधार वर्ष 2017-18) में छह मुद्राओं के बास्केट में 92.10 फीसदी थी। आधार वर्ष 2004-05 के मुताबिक हालांकि रुपये का आरईईआर 118.98 बैठता है। अगर 100 को उचित वैल्यू माना जाए तो 100 से ज्यादा के मूल्यांकन को ज्यादा वैल्यू माना जाता है जबकि 100 से कम को कम वैल्यू। ऐसे में आधार वर्ष के बदलाव के साथ रुपये की सापेक्षिक स्थिति विवादास्पद संकेत दे रहे हैं।