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सूचीबद्घ फर्मों के फ्री फ्लोट शेयरों की समीक्षा

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 2:18 AM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने स्टॉक एक्सचेंजों के साथ मिलकर सूचीबद्घ कंपनियों में वास्तविक फ्री फ्लोट का पता लगाने के लिए पहल शुरू की है। फ्री या पब्लिक फ्लोट लोगों द्वारा कंपनी के शेयरों के संबंध में इस्तेमाल किया जाने वाला टर्म है। ये शेयर किसी तरह की बाधा या लॉक-इन अवधि से मुक्त होते हैं।
सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने कहा, ‘हम यह पता लगा रहे हैं कि न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता और वास्तविक फ्लोट क्या है। क्या 25 प्रतिशत न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता का वास्तव में 25 प्रतिशत फ्री फ्लोट से मतलब है।’ वह उद्योग संगठन फिक्की द्वारा आयोजित पूंजी बाजार कॉन्फ्रेंस में बोल रहे थे। यह कदम उन चिंताओं के बीच उठाया गया है कि कुछ खास विदेशी फंडों ने कई सूचीबद्घ शेयरों में फ्री फ्लोट का बड़ा हिस्सा हासिल कर लिया है, जिससे शेयर कीमतों में हेरफेर को बढ़ावा मिल रहा है। हालांकि त्यागी का कहना है कि यह बदलाव किसी एक खास शेयर के खिलाफ नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘यह किसी एक कंपनी से जुड़ा नहीं है, न ही हमने फ्री फ्लोट बढ़ाने की कोई योजना बनाई है।’ सभी सूचीबद्घ कंपनियों को कम से कम 25 प्रतिशत सार्वजनिक शेयरधारिता बनाए रखने की जरूरत है। भारतीय संदर्भ में, गैर-प्रवर्तक शेयरधारिता को अक्सर पब्लिक फ्लोट के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है। उन्होंने कहा, ‘सार्वजनिक शेयरधारिता बाजार में तरलता बढ़ाती है। इससे बेहतर कीमत वसूली और संभावना को बढ़ावा मिलता है। कुछ फ्री फ्लोट संस्थागत शेयरधारकों के अधीन होते हैं, जो उन्हें परिपक्वता तक बनाए रखते हैं। एक्सचेंजों के साथ बातचीत में हम यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे हैं कि फ्री फ्लोट क्या हो।’
विश्लेषकों का कहना है कि इस अध्ययन या समीक्षा का बाजार पर व्यापक असर दिख सकता है।
एक विश्लेषक ने नाम नहीं बताने के अनुरोध के साथ कहा, ‘ऐसी कई कंपनियां होंगी, जिनमें कागज पर पब्लिक फ्लोट 25 प्रतिशत है, लेकिन वास्तविक फ्लोट 10 प्रतिशत भी नहीं हो सकता है। ये देखना जरूरी है कि सेबी ऐसे मामलों में क्या करेगा।’
हालांकि सेबी मौजूदा समय में फ्री फ्लोट निर्धारित करने के लिए प्रवर्तक और गैर-प्रवर्तक धारिता पर ध्यान देता है, लेकिन एमएससीआई, बीएसई और एनएसई की इकाइयों के अलग अलग दृष्टिकोण हैं। उदाहरण के लिए वे फ्री फ्लोट के संदर्भ में लॉक-इन या किसी तरह के अवरोध वाले शेयरों पर विचार नहीं करते, भले ही वे सार्वजनिक स्वामित्व वाले हों। ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए है कि अपने सूचकांकों पर ध्यान देने वाले फंडों के पास निवेश की पर्याप्त संभावना होती है।
कमजोर खुलासा मानक
इस बीच, सेबी प्रमुख ने खुलासे के कमजोर मानकों को लेकर भारतीय उद्योग जगत को फटकार लगाई है। उन्होंने कहा, ‘कई कंपनियों द्वारा खुलासों का अभाव है। सालाना रिपोर्टों जैसे खुलासों में जहां सभी विवरण भरे जाते हैं, वहीं कई मामलों में वे चेक-बॉक्स एक्सरसाइज जैसे दिखते हैं। यह स्वीकार्य नहीं है। दस्तावेज भी वित्तीय परिणाम, की तरह महत्वपूर्ण होते हैं। सालाना रिपोर्टों, कॉरपोरेट प्रशासिक रिपोर्टों और अन्य दस्तावेजों को समान गुणवत्ता स्तर की जरूरत होती है।’

First Published : July 29, 2021 | 12:09 AM IST