डॉलर के मुकाबले आज रुपये में तेज गिरावट को देखते हुए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में हस्तक्षेप करते हुए डॉलर की बिक्री की। डीलरों ने कहा कि इससे भारतीय मुद्रा को अपने सर्वकालिक निचले स्तर पर जाने से रोकने में मदद मिली।
कारोबार की समाप्ति पर डॉलर के मुकाबले रुपया 83.24 पर बंद हुआ। मंगलवार को रुपया 83.21 पर बंद हुआ था। कारोबार के दौरान रुपया 83.27 तक नीचे आ गया था, जो इंट्राडे में ऐतिहासिक निचले स्तर 83.29 से मामूली कम था।
सीआर फॉरेक्स में प्रबंध निदेशक अमित पाबरी ने कहा, ‘आरबीआई बाजार में हस्तक्षेप कर रुपये में उतार-चढ़ाव का प्रबंधन कर रहा है। आरबीआई ने खरीद-बिक्री स्वैप इसलिए किया होगा ताकि वह गिरावट रोक सके और रुपये की तरलता पर कोई असर न हो।’
डीलरों का अनुमान है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने आरबीआई की ओर से 50 करोड़ डॉलर की बिकवाली की है। केंद्रीय बैंक अक्सर विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव को रोकने के लिए हस्तक्षेप करता है मगर रुपये को किसी खास स्तर पर रखने का उसका कोई लक्ष्य नहीं होता है।
अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड के प्रतिफल में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद भारतीय मुद्रा का प्रदर्शन एशियाई बाजारों की मुद्राओं की तुलना में बेहतर रहा है।
अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल 16 साल के उच्च स्तर पर पहुंच गया है। डॉलर के मुकाबले सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली सभी एशियाई मुद्राओं में भारतीय रुपया 5वें स्थान पर रहा।
येस सिक्योरिटीज इंडिया में संस्थागत इक्विटीज रिसर्च में स्ट्रैटजिस्ट हितेश जैन ने कहा, ‘अगर हम अमेरिकी डॉलर की तुलना में अन्य मुद्राओं को देखें तो रुपया अपेक्षाकृत मजबूत बना हुआ है। भारत की वृहद आर्थिक स्थिति सकारात्मक है। दीर्घावधि के लिहाज से वृद्धि परिदृश्य भी अच्छा है। ’ बाजार के भागीदारों का अनुमान है कि डॉलर के मुकाबले रुपया 83.05 से 83.30 के दायरे में कारोबार कर सकता है।
डीलरों ने कहा कि घरेलू आर्थिक परिदृश्य बेहतर रहने से प्रतिकूल वैश्विक परिस्थितयों के बावजूद देसी बॉन्ड बाजार सकारात्मक बना हुआ है। अमेरिकी ट्रेजरी के प्रतिफल में आपूर्ति के दबाव के कारण तेजी आ रही है मगर भारतीय बाजार में भागीदार घरेलू संकेतों पर ध्यान देते हैं।
शुक्रवार को मौद्रिक नीति समिति के निर्णय से पहले डीलर सावधानी बरत रहे हैं और बड़े दांव लगाने से बच रहे हैं। 10 वर्षीय सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल लगभग सपाट 7.24 फीसदी पर बंद हुआ।
सार्वजनिक क्षेत्र के एक बैंक डीलर ने कहा, ‘अमेरिकी यील्ड में वृद्धि मुख्य रूप से आपूर्ति के दबाव के कारण है। अमेरिकी बाजार में 90 फीसदी बॉन्ड की बिक्री आपूर्ति दबाव के कारण हो रही है जबकि 10 फीसदी वृहद आर्थिक हालात की वजह से। लेकिन भारत में अर्थव्यवस्था की स्थिति मजबूत है। ऐसे में फिलहाल हम अमेरिकी यील्ड पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।’
10 वर्षीय अमेरिकी बॉन्ड का यील्ड बढ़कर 4.88 फीसदी पर पहुंच गया है। अमेरिका में ऊंची ब्याज दरें लंबे समय तक बने रहने की वजह से भी बॉन्ड यील्ड में तेजी देखी जा रही है।