विश्लेषकों का मानना है कि संवत 2080 में एनएसई पर 46 प्रतिशत और 43 प्रतिशत की शानदार तेजी दर्ज करने वाले मिडकैप और स्मॉलकैप सूचकांकों की रफ्तार संवत 2081 में सुस्त पड़ सकती है। आंकड़ों से पता चलता है कि तुलनात्मक तौर पर सेंसेक्स और निफ्टी में इस अवधि में क्रमशः 26 और 29 प्रतिशत की तेजी दर्ज की गई।
विश्लेषकों के अनुसार जब तक दुनियाभर, खासकर पश्चिम एशिया में भूराजनीतिक हालात और कच्चे तेल की कीमतें नियंत्रण में बनी रहेंगी, संपूर्ण बाजार धारणा संवत 2081 में सकारात्मक रहेगी। इसके अलावा,विश्व के केंद्रीय बैंकों की नीतियों,अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव का परिणाम और भारत में कॉरपोरेट आय वृद्धि पर बाजार की नजर लगी रहेगी।
उनकी सलाह है कि इसे ध्यान में रखते हुए निवेशकों को अपने निवेश योग्य अधिशेष का अधिकांश हिस्सा लार्जकैप शेयरों में लगाना चाहिए और मिडकैप और स्मॉलकैप के भीतर चुनिंदा शेयरों पर ध्यान देना चाहिए। उनका मानना है कि लार्जकैप में जोखिम कम और लाभ बेहतर दिखाई देता है।
जियोजित फाइनैंशियल सर्विसेज में मुख्य निवेश रणनीतिकार वी के विजयकमार ने कहा, ‘भारतीय इक्विटी में तेजी का मुख्य वाहक बाजार में निरंतर घरेलू नकदी का प्रवाह रहा है जो विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) की बिकवाली की भरपाई कर रहा है। घरेलू पूंजी से बाजार को समर्थन मिलता रहेगा लेकिन ऊंचे मूल्यांकन के कारण तेजी सीमित हो सकती है। अल्पावधि से मध्यम अवधि में निफ्टी के 25,000 के स्तर के आसपास बने रहने की संभावना है।’
शेयरखान बाई बीएनपी पारिबा में कैपिटल मार्केट स्ट्रैटजी के प्रमुख और वरिष्ठ उपाध्यक्ष गौरव दुआ के अनुसार ताजा गिरावट के बाद भी बीएसई स्मॉलकैप सूचकांक अभी भी पिछले 12 महीनों की आय के आधार पर निफ्टी के मुकाबले 40-45 प्रतिशत ऊपर कारोबार कर रहा है। दुआ ने कहा, ‘पिछले अनुभवों से पता चलता है कि स्मॉलकैप/माइक्रोकैप शेयरों में 17-18 महीने की तेजी के बाद गिरावट का रुझान रहता है। ऐतिहासिक तौर पर स्मॉलकैप सूचकांक 15-25 प्रतिशत तक गिरे हैं और इसमें भी कुछ खास शेयरों में ज्यादा गिरावट देखी गई है। इसलिए हुए हम निवेशकों को सितंबर 2024 के शुरू से ही स्मॉल/माइक्रोकैप में निवेश घटाने का सुझाव दे रहे हैं।’
चिंताजनक संकेत
विश्लेषकों ने कहा कि बाजारों के लिए एक और चिंता की स्थिर मुद्रास्फीति और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा फिलहाल दरों को स्थिर रखने का कदम है। उनका मानना है कि मांग की स्थिति अनिश्चित बनी हुई है और लंबे समय तक बारिश और बाढ़ ने सितंबर 2024 तिमाही में वृद्धि को प्रभावित किया है।
प्रभुदास लीलाधर में शोध प्रमुख अमनीश अग्रवाल का मानना है कि ग्रामीण मांग में धीरे धीरे सुधार आ रहा है तथा ग्रामीण आय में सुधार के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में वृद्धि, खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में वृद्धि, प्याज के निर्यात की अनुमति तथा चावल के निर्यात पर मूल्य सीमा हटाने जैसी हाल में की गई पहलों से कृषि आय में मजबूती आएगी। उनका मानना है कि इन बदलावों से आने वाले महीनों में खाद्य मुद्रास्फीति बढ़ सकती है।