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बदले हालात में पीई फंड हुए यथार्थवादी

Last Updated- December 07, 2022 | 2:42 PM IST

अब भूतकाल के बेहतर प्रदर्शन को भविष्य में बेहतर प्रदर्शन की गारंटी नहीं माना जा सकता। भारत और वैश्विक प्राइवेट इक्विटी फंड बार-बार निवेशकों इस बात का अहसास करा रहे हैं।


टूटते बाजार और कमजोर मैक्रो इकोनॉमिक्स परिदृश्य के चलते ये फंड बार-बार रिटर्न के लक्ष्य को रिवाइज कर रहे हैं। एक औद्योगिक विशेषज्ञ का कहना है कि पीई फंड भी अब एक निश्चित समयावधि में रिटर्न का लक्ष्य तय करने में बेहद यथार्थवादी हो गए हैं।

मसलन अगर पहले किसी पीआईपीई सौदे में सूचकांक से पांच फीसदी ऊपर रिटर्न आदर्श माना जाता था तो अब यह 2-3 फीसदी पर आ गया है। पहले किसी गैर सूचीबध्द कंपनी में इस तरह के सौदे का लक्ष्य 30-35 फीसदी रिटर्न होता था, लेकिन अब यह लक्ष्य गिरकर 20-25 फीसदी हो गया है। कुल मिलाकर अब 2007 का सुनहरा दौर अब बीते कल की बात हो गई है, जब पीई फंडों में निवेश पर अच्छा-खासा रिटर्न मिला था।

इस मंदी की पहचान सबसे पहले यूटीआई वेंचर ने की थी और वह 50 गुना अधिक रिटर्न देने वाले एक्सेल सॉफ्ट टेक्नालॉजी के सौदे से अलग हो गया था। पीई फंड की कमजोर सेहत का सबसे बड़ा कारण मुद्रास्फीति की ऊंची दर और बढ़ती ब्याज दरें हैं, इनके चलते उन कंपनियों का प्रॉफिट मार्जिन कम हो गया, जिन्होंनें इन फंडों ने निवेश किया था। पहली तिमाही में अधिकांश मिडकैप कंपनियों का उम्मीदों पर खरा न उतरना इसका जीता जागता प्रमाण है। इसके बाद ही पीई फंड मैनेजरों ने यह यथार्थवादी रवैया अपनाया और अपने रिटर्न की लक्ष्य को कम किया।

वर्तमान दौर में पीई फंड को एक्जिट पीरियड के लंबा खिंचने की उम्मीद है। इन फंडों पर अपने संस्थागत और एचएनआई जैसे निवेशकों को रिटर्न देने का दबाव है, इसके चलते इस एक्जिट पीरियड का लंबा खिंचना खासा परेशानी का सबब बनेगा, खासकर ऐसे समय में जब बाजार अभी रिकवरिंग चरण में है। पीई फंड सामान्य 3-5 साल के गेस्टेशन पीरियड की प्रतिक्षा में रहते हैं। फिर वे किसी आईपीओ या फिर किसी रणनीतिक निवेशक को बिकवाली करके इससे बाहर निकल जाते हैं।

लेकिन किसी वेंचर कैपिटल फंड के लिए यह समय काफी लंबा है। आईडीएफसी प्राइवेट इक्विटी के प्रेसीडेंट और सीईओ लुईस मिरांडा ने बताया कि बाजार खस्ताहाल होने के कारण इंटरनल रेट ऑफ रिटर्न कम रहेगा और एक्जिट काल भी लंबा हो जाएगा। ज्ञातव्य है कि अधिकांश पीआईपीई या निजी फंडों में निवेश सौदे 2007 में किये गए थे। आज ये पीई फंड के लिए परेशानी का सबब बन चुके हैं। इसके कुछ निवेश का मूल्यांकन तो काफी कम हुआ है, वहां शेयर सौदे के समय की कीमतों से 50 फीसदी कम पर कारोबार कर रहे हैं।

आईसी-आईसीआई वेंचर की जियोमैट्रिक सॉफ्टवेयर और जनरल अटलांटिक में किया गया निवेश इसका प्रमाण है। बेकन इंडिया एडवाइजर के एमडी दीपक शाहदादपुरी ने कहा कि एक्जिट पीरियड लंबा होगा। कई कंपनियों के लिए आईपीओ की खिड़की बंद हो चुकी है। नतीजतन उनके लिए एक्जिट करना दो साल पहले की तरह आसान नहीं होगा।

First Published - August 1, 2008 | 10:48 PM IST

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