Hiren Ved, Director And Chief Investment Officer At Alchemy Capital Management | Photo: Kamlesh Pednekar
अल्केमी कैपिटल मैनेजमेंट के निदेशक एवं मुख्य निवेश अधिकारी हिरेन वेद ने पुनीत वाधवा के साथ बातचीत में कहा कि भारत के इक्विटी बाजार, संपत्ति प्रबंधन एवं परिसंपत्ति प्रबंधन उद्योग अच्छे दौर में हैं। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
इक्विटी बाजार परिदृश्य पर आपका क्या नजरिया है?
भारत के इक्विटी बाजार, पूंजी प्रबंधन और परिसंपत्ति प्रबंधन उद्योग अच्छी स्थिति में हैं। दशकों में पहली बार, औसत निवेशक इक्विटी को एक गंभीर परिसंपत्ति वर्ग के रूप में देख रहा है और वह अपनी बचत को शेयर बाजार में निवेश कर रहा है। जब मैंने 1990-91 में इक्विटी बाजार में प्रवेश किया था तो तब कुछ कम लोग का निवेश में दिलचस्पी रखते थे। हर्षद मेहता घोटाले से चीजें काफी बदल गई थीं, लेकिन अब काफी वक्त बीत गया है। आज निवेशक ज्यादा जागरूक हैं और इक्विटी में दीर्घावधि फायदे समझते हैं। हालांकि भारत में सिर्फ 5-6 प्रतिशत घरेलू बचत ही मौजूदा समय में इक्विटी में आ रही है। मेरा मानना हैकि यह दो अंक में पहुंच जाएगी। डिजिटल प्लेटफॉर्मों और ऑनलाइन ब्रोकरों की वजह से इक्विटी बाजारों तक पहुंच आसान हुई है, जिससे स्थानीय ब्रोकरों या पारंपरिक शाखाओं की जरूरत दूर हो रही है। अब, शिक्षा के माध्यम से निवेशक में उत्साह पैदा करने से हटकर डिजिटल चैनलों के माध्यम से आसान क्रियान्वयन को सक्षम करने पर ज्यादा ध्यान केंद्रित किया गया है।
निवेशक ज्यादा जागरूक हैं और डिजिटल ट्रेडिंग तक पहुंच आसान हुई है, जिसे देखते हुए उन्हें अभी भी सलाहकार फर्मों की जरूरत क्यों बनी हुई है? ये कंपनियां इस चुनौती को किस तरह से देख रही हैं?
लोग अक्सर आमने-सामने बैठकर मार्गदर्शन लेना पसंद करते हैं, चाहे बैंक प्रतिनिधि से हो या बीमा के बारे में। छोटे शहरों में, निवेशक एसआईपी का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन फिर भी सही म्युचुअल फंड चुनने में मदद की आवश्यकता होती है। उन्नत बाजारों में भी, निर्णय लेने में मार्गदर्शन के लिए पूंजी प्रबंधक और मध्यस्थ महत्वपूर्ण होते हैं। वित्तीय मार्गदर्शन में मानवीय तत्व महत्वपूर्ण रहता है।
हालांकि कई निवेशक स्वयं बटन पर क्लिक करना पसंद करते हैं और फिर उनका काम पूरा हो जाता है। आप अब खुद से सीखे हुए विश्लेषक हैं?
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म की ओर रुझान जारी रहेगा, विशेषकर युवा निवेशकों के बीच, जो स्वयं प्रबंधन को प्राथमिकता देते हैं। हालांकि अधेड़ उम्र और बुजुर्ग निवेशकों को अक्सर अधिक सहायता की आवश्यकता होती है। ऑनलाइन निवेश की ओर कदम बढ़ाते समय, अपनाने की गति अलग-अलग होती है, और छोटे शहरों में रहने वाले कई लोग जो स्थानीय भाषा बोलते हैं, उन्हें अंग्रेजी वित्तीय शब्दावली चुनौतीपूर्ण लगती है। अधिकांश शैक्षिक सामग्री अंग्रेजी में होती है, इसलिए इन समुदायों तक पहुंचने के लिए स्थानीय भाषागत समर्थन और कुछ हद तक व्यक्तिगत मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। वास्तविक जुड़ाव में डिजिटल उपकरण और स्थानीय संचार दोनों शामिल होंगे।
क्या निवेशक जल्द कमाई करने के जोश में परिसंपत्ति सृजन की कला खो रहे हैं?
कई निवेशक अब शेयर बाजार को मूल्यवाद अवसर के तौर पर देखते हैं, हालांकि कई निवेशक अभी भी तुरंत लाभ की तलाश में रहते हैं, जिसके कारण वायदा और विकल्प कारोबार में इजाफा हुआ है। कई निवेशक दीर्घावधि रणनीतियों पर अमल करने से पहले तुरंत लाभ कमाने के प्रयोग करते हैं। एक सफल मॉडल को समझने और परखने की क्षमता जरूरी है, चाहे यह खेल, राजनीति, व्यवसाय या निवेश के क्षेत्र में हो। राकेश ‘बिग बुल’ झुनझुनवाला जैसे रोल मॉडल नए निवेशकों को प्रोत्साहित करते हैं और शेयर बाजार के बारे में उनकी जोखिम की धारणा को कमाई के वैध माध्यम के विकल्प के तौर पर तब्दील करते हैं। कई निवेश ऐप सफल निवेशकों, जैसे राधाकिशन दमानी, रेखा झुनझुनवाला, आशीष कचोलिया और विजय केडिया के पोर्टफोलियो को प्रदर्शित करते हैं, तथा लोगों को पर्याप्त पूंजी सृजन के उदाहरणों से प्रेरित करते हैं। इससे शेयर बाजार की धारणा को जोखिम भरे जुए से बदलकर पूंजी सृजन के वैध विकल्प में बदलने में मदद मिलती है।
क्या आप मानते हैं कि भारत का इक्विटी कराधान उचित है?
शुरू में, सरकार ने इक्विटी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कर नीतियों का इस्तेमाल किया, जैसे कि शून्य दीर्घावधि पूंजीगत लाभ कर और म्युचुअल फंड के लिए कर लाभ। इसका उद्देश्य पूंजी की किल्लत वाली अर्थव्यवस्था में ज्यादा निवेशकों को आकर्षित करना था। उदाहरण के लिए, धीरूभाई अंबानी ने खुदरा निवेशकों का एक बड़ा आधार बनाकर रिलायंस इंडस्ट्रीज को आगे बढ़ाया। इन निवेशकों ने उनकी विकास योजनाओं के वित्त पोषण में मदद की। हाल में, ऐंजल टैक्स को हटाने से अधिक जोखिम पूंजी की आवश्यकता का पता चला है। हालांकि, जैसे-जैसे अर्थव्यवस्थाएं परिपक्व होती हैं, सरकारें अक्सर धन के पुनर्वितरण के लिए कर लगाती हैं। विकसित देशों में ऊंचे करों से सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मदद मिलती है, जबकि भारत में, अपने छोटे सामाजिक सुरक्षा जाल के साथ, कर अभी भी अपेक्षाकृत कम हैं। भारत की सामाजिक जरूरतों के बदलने से इसमें बदलाव हो सकता है।