स्टॉक लेंडिंग ऐंड बारोइंग(एसएलबी) स्कीम संस्थागत कारोबारियों को लगता है रास नहीं आ रही है।
स्कीम अपने पहले हफ्ते में उन बड़े घरेलू संस्थागत निवेशकों को आकर्षित नहीं कर सकी, जिनका लिस्टेड कंपनियों में सबसे ज्यादा एक्सपोजर होता है। स्टॉक मार्केट के जानकारों के मुताबिक एलआईसी को इसमें हिस्सा नहीं लेने देना इस स्कीम की अच्छी शुरुआत न होने की सबसे बड़ी वजह रही है।
घरेलू बाजार में एलआईसी सबसे बड़े निवेशकों में से एक है। एलआईसी का पोर्टफोलियो करीब 40 अरब डॉलर का है। जानकारों का कहना है कि जिस संस्थागत निवेशक का बाजार की ब्लू चिप कंपनियों में इतना बड़ा एक्सपोजर हो, उसे इसमें शामिल करने से रोकना सही संकेत नहीं है।
सेबी ने घरेलू म्युचुअल फंडों को इस स्कीम के तहत कारोबार करने की मंजूरी दी है, लेकिन बीमा कंपनियां फिलहाल खुद को इसमें हिस्सा लेने की सरकारी मंजूरी मिलने का इंतजार कर रही हैं। एलआईसी के अलावा भी कई और सरकारी बीमा कंपनियों का बाजार में अरबों का निवेश है। ब्रोकरों का मानना है कि पिछले हफ्ते इस स्कीम में एलआईसी के अलावा कई म्युचुअल फंडों ने भी इसमें हिस्सा नहीं लिया है।
एक ब्रोकिंग फर्म के रिसर्च एनालिस्ट के मुताबिक इस स्कीम की देखरेख करने वाले अब भी इस स्कीम की बारीकियों को ठीक करने में लगे हैं और निवेशक भी फिलहाल समझने की कोशिश कर रहे हैं कि उन पर मार्जिन का कितना दबाव पड़ेगा, क्योकि इसके तहत मार्जिन ज्यादा पड़ेगा और यह उनके सौदों की लागत को प्रभावित कर सकता है।
एनएसई के पास उपलब्ध आंकडों के मुताबिक पिछले हफ्ते के पांच कारोबारी सत्रों में इस स्कीम के तहत केवल आठ सौदे हुए हैं। रिलायंस इंडस्ट्रीज, स्टेट बैंक और रिलायंस नैचुरल ही ऐसे काउंटर रहे जिनमें कुछ हलचल दिखी। इसी तरह बीएसई में भी इसके तहत चुनींदा शेयरों में ही कारोबार देखा गया।
बाजार के जानकारों का कहना है कि इस स्कीम के तहत मार्जिन ज्यादा होने की वजह से ही कई फंड इससे दूरी बनाए हुए हैं। एसएलबी स्कीम के तहत इन कारोबारियों को अपने सौदे की वैल्यू का करीब 140 फीसदी मार्जिन के रूप में देना होता है।
यही नहीं मार्जिन मार्क टु मार्केट होने की वजह से 140 फीसदी पर सीमित भी नहीं रहता। मार्जिन वैल्यू एट रिस्क मार्जिन, ईएलएम और मार्क टु मार्केट मार्जिन की किस्म का हो सकता है। स्टॉक एक्सचेंजों के लोगों को उम्मीद है यह स्कीम धीरे धीरे जोर पकड़ने लगेगी।