MF vs FPI ownership trends: पिछले एक साल में, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPIs) भारतीय शेयरों के नेट सेलर रहे हैं और उन्होंने अपने कुल AUC यानी एसेट अंडर कस्टडी का लगभग 2.5% हिस्सा बेच दिया है। इसके विपरीत, म्युचुअल फंड्स (MFs) नेट बायर्स रहे हैं और उन्होंने अपने AUC में लगभग 12% का इजाफा किया है। एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग के एक एनालिसिस से पता चलता है कि म्युचुअल फंड्स और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक दोनों ने सबसे ज्यादा निवेश कंज्यूमर पर फोकस करने वाले सेक्टर्स में किया है, जबकि फाइनैंशियल और निवेश-संबंधित सेक्टर्स में उनकी हिस्सेदारी सबसे कम रही है।
सितंबर 2018 से, म्युचुअल फंड्स (MFs) और विदेशी निवेशकों (FPIs) दोनों ने ऑटो, फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और कंज्यूमर सर्विसेज जैसे उपभोक्ता-केंद्रित सेक्टर्स में निवेश को प्राथमिकता दी है। जबकि फाइनैंस, कैपिटल गुड्स और पावर यूटिलिटीज सेक्टर्स में सबसे कम निवेश देखा गया है। वहीं, आईटी सर्विसेज, केमिकल और टेलीकॉम जैसे सेक्टर्स में म्युचुअल फंड्स और विदेशी निवेशकों की इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजीज में अंतर देखा गया है।
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म्युचुअल फंड्स ने लगातार भारतीय शेयरों में निवेश बढ़ाया है और पिछले साल अपने कुल AUC में लगभग 12% का इजाफा किया है। म्युचुअल फंड्स ने मेटल और माइनिंग, पावर यूटिलिटीज, ऑयल एंड गैस, एफएससीजी, रियल एस्टेट और आईटी सर्विसेज सेक्टर्स में जोरदार खरीदारी की है। वहीं, केमिकल्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, हेल्थकेयर, फाइनेंशियल सर्विसेज, ऑटो और अन्य सर्विसेज सेक्टर्स में कम खरीदारी हुई।
वहीं, दूसरी तरफ विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक भारतीय शेयरों के नेट सेलर रहे हैं और उन्होंने अपने कुल AUC का लगभग 2.5% हिस्सा बेच दिया। सबसे ज्यादा बिकवाली ऑयल एंड गैस, आईटी सर्विसेज, पावर यूटिलिटीज, सीमेंट, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स, ऑटो और एफएमसीजी सेक्टर्स में देखी गई। इस बीच, केमिकल्स, टेलीकॉम और सर्विसेज सेक्टर्स में विदेशी निवेशकों ने कुछ खरीदारी भी की।
एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग के विश्लेषकों का मानना है कि विदेशी निवेशकों का भारतीय शेयर बाजार में बिक्री का दौर अब लगभग खत्म हो गया है।
ब्रोकिंग फर्म ने एक नोट में कहा कि यह रुझान फाइनैंशियल सेक्टर्स के पक्ष में बदल सकता है, क्योंकि इन सेक्टर्स का मूल्यांकन आकर्षक है और इनमें कम निवेश हुआ है। अगर FPI की बिक्री में उलटफेर होता है, तो इससे फाइनैंशियल, कैपिटल गुड्स, पावर यूटिलिटीज, रियल एस्टेट, हेल्थकेयर और टेलीकॉम जैसे सेक्टर्स को लाभ हो सकता है।