निवेश की लगातार आवक और शेयर बाजार में तेजी के चलते म्युचुअल फंडों (एमएफ) की इक्विटी प्रबंधनाधीन परिसंपत्तियां (एयूएम) पहली बार 50 लाख करोड़ रुपये के पार चली गई हैं। अक्टूबर के अंत तक इक्विटी परिसंपत्तियां 50.6 लाख करोड़ रुपये थीं, जो दो साल से कुछ ज्यादा समय में दोगुनी हो गई हैं। इस उपलब्धि से पता चलता है कि इक्विटी बाजार में भागीदारी के लिए म्युचुअल फंड सबसे पसंदीदा माध्यम हैं। म्युचुअल फंडों की हिस्सेदारी में यह उछाल बढ़ते निवेशक आधार और व्यवस्थित निवेश योजनाओं (एसआईपी) के माध्यम से निरंतर निवेश के कारण आई है।
एडलवाइस एमएफ की एमडी और सीईओ राधिका गुप्ता ने कहा, यह उपलब्धि दर्शाती है कि कैसे म्युचुअल फंड परिवारों के लिए शेयर बाजारों में भागीदारी करने के सबसे भरोसेमंद और कुशल तरीकों में से एक बन गए हैं। यह वृद्धि निवेशकों का भरोसा बनाने में हमारे फंड वितरकों के दशकों के प्रयासों के बल पर हुई है। नियामकों ने भी यह सुनिश्चित किया है कि म्युचुअल फंड एक पारदर्शी और सुसंचालित माध्यम बने रहें।
कैलेंडर वर्ष 2025 (अक्टूबर तक) में ऐक्टिव इक्विटी म्युचुअल फंड योजनाओं में 2.9 लाख करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश हुआ है। 2023 में निवेशकों ने 3.9 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था जो 2022 की तुलना में दोगुना से भी ज्यादा है।
एसआईपी निवेश (जिसमें बाजार में गिरावट के कारण 2025 की शुरुआत में दुर्लभ गिरावट आई थी) अब हर महीने नई ऊंचाइयों को छू रहा है। अक्टूबर में एसआईपी के जरिये 29,529 करोड़ रुपये का निवेश हासिल हुआ।
इक्विटी योजनाओं में कम निवेश आने के बावजूद म्युचुअल फंडों की शुद्ध इक्विटी खरीद नए शिखर को छूने की ओर अग्रसर है। अक्टूबर के अंत तक उनकी शुद्ध इक्विटी खरीदारी 4 लाख करोड़ रुपये थी। इसकी तुलना में 2024 में शुद्ध खरीदारी 4.3 लाख करोड़ रुपये रही थी। म्युचुअल फंडों के पास अब भारत के कुल बाजार पूंजीकरण की करीब 11 फीसदी हिस्सेदारी है।
विशेषज्ञों के अनुसार म्युचुअल फंडों के बढ़ते दबदबे का घरेलू बाजार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। उनका कहना है कि म्युचुअल फंडों और अन्य संस्थागत निवेशकों की बढ़ती खरीद शक्ति ने बाजार को विदेशी निवेश पर अपेक्षाकृत कम निर्भर बना दिया है।
प्राइम डाटाबेस समूह के प्रबंध निदेशक प्रणव हल्दिया ने कहा, भारतीय बाजार और भी अधिक आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं। वह दिन दूर नहीं जब अकेले म्युचुअल फंडों की हिस्सेदारी विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) से अधिक होगी।
उन्होंने कहा, पिछले दो वर्षों में म्युचुअल फंडों और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के स्वामित्व का अंतर लगभग आधा होकर 5.78 फीसदी रह गया है। 31 मार्च, 2015 को यह अंतर अपने चरम 17.15 फीसदी पर था जिसमें एफआईआई की हिस्सेदारी 20.71 फीसदी और म्युचुअल फंडों की केवल 3.56 फीसदी थी।
प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों से पता चलता है कि म्युचुअल फंडों की इक्विटी हिस्सेदारी में 10 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी 15 महीनों में हुई है जो 30 लाख करोड़ रुपये से 40 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने में लगे समय का करीब दोगुना है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह धीमी वृद्धि कम मार्क-टू-मार्केट लाभ के कारण है। म्युचुअल फंडों की इक्विटी हिस्सेदारी में बदलाव दो कारकों पर निर्भर करता है – शुद्ध निवेश और अंतर्निहित परिसंपत्तियों के मूल्य में बदलाव।