Debt Fund: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा रीपो रेट (Repo Rate) में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती कर इसे 6% करने के बाद, म्युचुअल फंड एक्सपर्ट्स का मानना है कि डेट म्युचुअल फंड निवेशकों को अब उन कैटेगरी की ओर रुख करना चाहिए जो गिरती ब्याज दरों के माहौल में फायदा देती हैं। इनमें डायनामिक बॉन्ड फंड्स, मीडियम टू लॉन्ग ड्यूरेशन फंड्स और हाई-क्वालिटी कॉरपोरेट बॉन्ड फंड्स शामिल हैं।
मिरे असेट इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स (इंडिया) के फिक्स्ड इनकम चीफ इन्वेस्टमेंट ऑफिसर (CIO) महेंद्र कुमार जाजू कहते हैं, “RBI ने प्रमुख नीति दर रीपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती की है और साथ ही अपने रुख को ‘उदारवादी’ (Accommodative) बना लिया है। इससे फिक्स्ड इनकम मार्केट्स में सकारात्मक गति जारी रहने का रास्ता साफ हो गया है। हालांकि टैरिफ को लेकर दुनियाभर में जो घटनाएं हो रही हैं, उससे कुछ जोखिम बना हुआ है, लेकिन RBI ने आगे और दरों में कटौती के संकेत दिए हैं। मौद्रिक नीति की घोषणा के तुरंत बाद बॉन्ड यील्ड में थोड़ी बढ़ोतरी देखी गई क्योंकि इससे पहले ही दरों में काफी नरमी आ चुकी थी, लेकिन आगे यील्ड में और गिरावट आने की संभावना है।”
उन्होंने आगे कहा कि ऐसे अनिश्चित माहौल में लगता है कि केंद्रीय बैंक एक बार फिर वही महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रहा है, जैसी उसने कोविड काल के दौरान निभाई थी। यह संकेत देता है कि आने वाले समय में फिक्स्ड इनकम निवेश के लिए माहौल अनुकूल बना रह सकता है।
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आनंद राठी वेल्थ लिमिटेड के एक्जिक्टिव डायरेक्टर अर्जुन गुहा ठाकुरता ने कहा, बॉन्ड मार्केट ने इस कदम की पहले से ही उम्मीद कर ली थी। पिछले तीन महीनों में 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड (G-sec) की यील्ड 7 जनवरी 2025 को 6.76% से घटकर अब 6.60% पर आ गई है। इसी अवधि में रीपो रेट और सरकारी बॉन्ड यील्ड के बीच का अंतर 0.26% से बढ़कर 0.60% हो गया है। ऐतिहासिक रूप से, रीपो रेट और 10-वर्षीय सरकारी बॉन्ड के बीच औसतन 1.135% का स्प्रेड रहा है। यह संकेत देता है कि बाजार पहले से ही इस पूरे साल में 100 बेसिस पॉइंट तक की कुल कटौती की उम्मीद कर रहा है। इसका मतलब यह है कि रेट कट साइकल का बड़ा हिस्सा पहले से ही मौजूदा बॉन्ड कीमतों और लॉन्ग ड्यूरेशन डेट फंड्स की NAV में शामिल हो चुका है।”
लॉन्ग ड्यूरेशन म्युचुअल फंड्स: लॉन्ग ड्यूरेशन फंड्स ब्याज दरों में बदलाव के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। BPN Fincap के डायरेक्टर ए के निगम कहते हैं, लॉन्ग ड्यूरेशन फंड्स पर ब्याज दरों में बदलाव का असर ज्यादा तेजी से पड़ता है, जिसकी वजह से इनके NAV (नेट एसेट वैल्यू) में ज्यादा उतार-चढ़ाव देखने को मिल सकता है। आमतौर पर, जब ब्याज दरें घटती हैं तो ये फंड बेहतर रिटर्न देते हैं।
ठाकुरता कहते हैं, लॉन्ग ड्यूरेशन डेट फंड्स को ब्याज दरों में गिरावट से फायदा होता है। चूंकि ये फंड्स लंबी अवधि के बॉन्ड्स में निवेश करते हैं, इसलिए जब ब्याज दरें घटती हैं, तो बॉन्ड की कीमतों में बड़ा उछाल आता है और इससे इनके एनएवी (NAV) में भी तेज बढ़ोतरी होती है। हालांकि, इस बार की 25 बेसिस पॉइंट की कटौती पहले से ही अपेक्षित थी और बॉन्ड यील्ड्स में इसका असर पहले ही शामिल हो चुका था। इसलिए इसका ज्यादातर फायदा पहले से ही फंड के NAV में दिख रहा है।
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शॉर्ट ड्यूरेशन म्युचुअल फंड्स: निगम बताते हैं कि शॉर्ट ड्यूरेशन फंड्स पर ब्याज दरों में बदलाव का कुछ असर पड़ सकता है, लेकिन यह असर लॉन्ग-ड्यूरेशन डेट फंड्स की तुलना में कम होता है। ठाकुरता ने कहा, “शॉर्ट ड्यूरेशन डेट फंड्स पर ऐसे बदलावों का असर कम होता है। इन फंड्स में शामिल बॉन्ड जल्दी मैच्योर हो जाते हैं, इसलिए ब्याज दरों में कटौती का सकारात्मक असर ज्यादा समय तक नहीं टिकता। इसके अलावा, इन फंड्स में किए जाने वाले नए निवेश संभवतः कम यील्ड पर होंगे, जिससे लॉन्ग टर्म में रिटर्न सीमित रह सकते हैं।
लिक्विड फंड्स: कम अवधि वाले होने के कारण लिक्विड फंड्स पर ब्याज दरों में बदलाव का असर बहुत कम होता है। ये फंड्स ट्रेजरी बिल्स और कमर्शियल पेपर जैसे शॉर्ट-टर्म इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश करते हैं, जिससे ये अपेक्षाकृत स्थिर रहते हैं और बाजार की उतार-चढ़ाव वाली स्थिति में भी ज्यादा प्रभावित नहीं होते।
PGIM इंडिया म्युचुअल फंड में फिक्स्ड इनकम के हेड पुनीत पाल ने कहा, “RBI का वर्तमान रुख विकास को समर्थन देने वाला है और उसने तरलता प्रबंधन (liquidity management) को लेकर एक सक्रिय रुख अपनाया है।”
निगम कहते हैं, ब्याज दरों में गिरावट के दौर में लॉन्ग ड्यूरेशन डेट फंड्स में निवेश करना एक बेहतर स्ट्रैटेजी हो सकती है, क्योंकि इससे पूंजी वृद्धि (capital appreciation) का लाभ मिल सकता है। दरअसल, जब ब्याज दरें घटती हैं, तो पहले से जारी उच्च यील्ड वाले बॉन्ड्स ज्यादा आकर्षक हो जाते हैं, जिससे उनकी कीमतें बढ़ती हैं। ऐसे बॉन्ड्स को होल्ड करने वाले डेट फंड्स की एनएवी (NAV) में भी बढ़ोतरी देखने को मिलती है। इसलिए गिरती ब्याज दरों के माहौल में लॉन्ग ड्यूरेशन डेट फंड्स निवेशकों के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं।
पाल निवेशकों को शॉर्ट टर्म और कॉरपोरेट बॉन्ड फंड्स में निवेश जारी रखने की सलाह देते हैं, जिनका पोर्टफोलियो ड्यूरेशन अधिकतम 4 वर्षों तक हो। साथ ही, डायनामिक बॉन्ड फंड्स में शॉर्ट टर्म स्ट्रैटेजी के साथ निवेश किया जा सकता है। निवेश करते समय निवेश का समय 12-18 महीनों का होना चाहिए। 1 वर्ष तक की अवधि वाले मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट्स का रिटर्न जोखिम और रिवार्ड के दृष्टिकोण से आकर्षक लग रहा है, निवेशक इस सेगमेंट पर भी ध्यान दे सकते हैं। अगले एक महीने के दौरान 10-वर्षीय बॉन्ड यील्ड 6.25% से 6.50% के दायरे में रह सकती है।