facebookmetapixel
नेपाल में राजनीतिक उथल-पुथल का पड़ोसी दरभंगा पर कोई प्रभाव नहीं, जनता ने हालात से किया समझौताEditorial: ORS लेबल पर प्रतिबंध के बाद अन्य उत्पादों पर भी पुनर्विचार होना चाहिएनियामकीय व्यवस्था में खामियां: भारत को शक्तियों का पृथक्करण बहाल करना होगाबिहार: PM मोदी ने पेश की सुशासन की तस्वीर, लालटेन के माध्यम से विपक्षी राजद पर कसा तंज80 ही क्यों, 180 साल क्यों न जीएं, अधिकांश समस्याएं हमारे कम मानव जीवनकाल के कारण: दीपिंदर गोयलभारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तत्काल सुधार की आवश्यकता पर दिया जोरपीयूष पांडे: वह महान प्रतिभा जिसके लिए विज्ञापन का मतलब था जादूभारत पश्चिम एशिया से कच्चा तेल खरीद बढ़ाएगा, इराक, सऊदी अरब और UAE से तेल मंगाकर होगी भरपाईBlackstone 6,196.51 करोड़ रुपये के निवेश से फेडरल बैंक में 9.99 फीसदी खरीदेगी हिस्सेदारीवित्त मंत्रालय 4 नवंबर को बुलाएगा उच्चस्तरीय बैठक, IIBX के माध्यम से सोने-चांदी में व्यापार बढ़ाने पर विचार

भारत में सबसे कम हैं ब्रोकरेज की दरें: CEO, Upstox

Last Updated- April 20, 2023 | 11:12 PM IST
Brokerage rates in India, among the lowest, need re-evaluation

रतन टाटा सम​र्थित ब्रोकरेज फर्म अपस्टॉक्स के सह- संस्थापक एवं मुख्य कार्या​धिकारी (CEO) रवि कुमार ने सुंदर सेतुरामन के साथ बातचीत में कहा कि ब्रोकिंग उद्योग के लिए नियामकीय बदलाव चुनौतीपूर्ण रहे हैं, लेकिन दीर्घाव​धि में हालात में सुधार आएगा। उनका कहना है कि उद्योग को हासिल होने वाली फ्लोट इनकम की राह में चुनौतियां हैं और ब्रोकरेज दरें बढ़ाई जा सकती हैं। मुख्य अंश:

लगातार 9वें महीने में सक्रिय ग्राहकों की संख्या घटी है। इसकी क्या वजह है? क्या यह गिरावट बरकरार रहेगी?

सक्रिय छोटे ग्राहकों की संख्या में गिरावट के लिए बाजार में बढ़ते उतार-चढ़ाव को जिम्मेदार माना जा सकता है, जिससे निवेशक अक्सर इ​क्विटी बाजारों में निवेश करने से परहेज करते हैं। चूंकि बाजार हाल के महीनों में काफी हद तक सपाट रहा है, इसलिए निवेश गतिवि​​धियां धीमी पड़ी हैं। लेकिन बाजार में तेजी आने पर निवेशक रुझान भी मजबूत होगा। हालांकि बेहद महत्वपूर्ण सवाल यह है कि नए निवेशकों में इसकी पर्याप्त जानकारी नहीं है कि कैसे, कब और कहां निवेश किया जाए। प्रमुख फिनटेक कंपनी के तौर पर, अपस्टॉक्स ने यह चुनौती दूर करने के लिए ‘इन्वेस्ट राइट, इन्वेस्ट नाउ’ केम्पेन शुरू किया है।

सेबी द्वारा नियामकीय सख्ती बढ़ाई गई है। इसका राजस्व वृद्धि पर कितना प्रभाव पड़ेगा?

हाल में पेश नियम ज्यादा सख्त हैं। जहां नियामकीय बदलावों से राजस्व अस्थायी तौर पर प्रभावित हो सकता है, वहीं आ​खिरकार मध्याव​धि से दीर्घाव​धि में निवेशक भरोसा बढ़ाने में मदद मिल सकेगी। यह खासकर हमारे जैसे रिटेल व्यवसायों के लिए लाभदायक है।

उद्योग को मिलने वाली फ्लोट इनकम पर भी दबाव पड़ा है। क्या इससे ब्रोकरेज दरों में वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा?

फ्लोट आय के संदर्भ में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि अकाउंट सेटलमेंट नियमों के तहत ब्रोकरों को उन ग्राहकों के लिए पहले से ही तिमाही आधार पर खातों का निपटान करना जरूरी है जिन्होंने उस अव​धि में कारोबार किया हो। वहीं, 30 दिन में कारोबार नहीं करने वाले खातों का निपटान हरेक 30 दिन में करना जरूरी है। इसका मतलब है कि ब्रोकर के पास मामूली नकदी रहती है और कम अव​धि तक पैसा पास रहने से फ्लोट आय से ब्याज आय भी अपर्याप्त होती है। भारत में ब्रोकरेज दरें मौजूदा समय में सबसे कम हैं, और इन पर पुनर्विचार करने की जरूरत हो सकती है। ​यदि हालात सही रहे तो हम भविष्य में उचित समय पर ब्रोकरेज दर में बदलाव लाने पर विचार कर सकते हैं।

आपने पिछले कुछ वर्षों में नुकसान उठाया है। कब तक मुनाफे में लौटने की उम्मीद है? क्या कोष उगाही की कोई योजना है?

वित्त वर्ष 2023 में हमारी राजस्व वृद्धि मजबूत रही और यह हमारे प्र​तिस्प​​र्धियों से ज्यादा रही, जिससे हमें नकदी प्रवाह के लिहाज से मजबूत कंपनी बनने में मदद मिल रही है। ​हमें अतिरिक्त कोष उगाही की अल्पाव​धि जरूरत नहीं है ​जिससे हम फिलहाल मजबूत वित्तीय हालत में हैं। भले ही हम भविष्य में सूचीबद्धता की संभावना को लेकर उत्साहित हैं, लेकिन मौजूदा समय में इसके लिए अभी कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

क्या रिटेल भागीदारी घटने के बाद भी डीमैट की संख्या में तेजी बनी हुई है?

डीमैट खातों की संख्या में पूर्ववर्ती वर्ष की समान अव​धि के मुकाबले 31 प्रतिशत की मजबूत वृद्धि दर्ज की गई है। पिछले साल डीमैट खातों की कुल संख्या 8.4 करोड़ थी। 1.4 अरब से ज्यादा की आबादी में से एक छोटा हिस्सा ही मौजूदा समय में निवेश कर रहा है। पिछले साल रिटेल भागीदारी में गिरावट के कई कारण थे, जिनमें वै​श्विक तौर पर केंद्रीय बैंकों द्वारा लगातार दर वृद्धि, रूस-यूक्रेन युद्ध, बढ़ती मुद्रास्फीति और विकसित देशों में बैकिंग संकट मुख्य रूप से शामिल है।

First Published - April 20, 2023 | 11:12 PM IST

संबंधित पोस्ट