ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंडों के निवेश के फैसलों की निगरानी करने वालों को बुधवार को दी गई छूट के जरिये अतिरिक्त जवाबदेही से कुछ राहत मिली है। लेकिन यह राहत सीमित है और विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसी समितियों में सेवा देने से जुड़े कुछ मसले अभी भी बरकरार हैं।
बाजार नियामक सेबी ने बुधवार को अपनी बोर्ड बैठक में कहा था कि यह ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंडों की निवेश समितियों को स्वतंत्रता प्रदान करेगा। इसमें कहा गया था, बोर्ड ने सेबी (ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड्स) नियमन 2012 के संशोधन को मंजूरी दी ताकि निवेश समिति के सदस्यों को कुछ निश्चित राहत दी जा सके।
खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर विवेक मिमानी ने कहा, नियामक शायद यह छूट उन्हें दे रहा है जो कम से कम 70 करोड़ रुपये निवेश कर रहे हैं क्योंंकि यह अपेक्षाकृत ज्यादा प्रगतिशील रहने की संभावना है। इससे ऐसे निवेशकों के साथ वाली फंडों की निवेश समिति को मदद मिलने की उम्मीद है। पर उन फंडों के लिए दायित्व बना रह सकता है जहां कम आवंटन वाले निवेशक हैं। उन्होंने कहा, ज्यादा प्रतिबद्धता स्वीकार करने वाले फंडों के लिए यह कुछ निश्चित सीमा तक स्पष्टता मुहैया कराता है।
जे. सागर एसोसिएट्स के प्रधान सहायक सलिल शाह ने कहा कि इस छूट से पहले निवेश समिति के सदस्य फंड मैनेजर के साथ निवेश के फैसलों पर समान रूप से जिम्मेदार होते थे। उन पर यह सुनिश्चित करने की जवाबदेही डाली गई कि फंड का निवेश एआईएफ नियमन और अन्य फंड दस्तावेजों के अनुपालन के साथ किया गया है। हालांकि सेबी की बोर्ड बैठक में तय छूट से यह बोझ कम होने की संभावना है जहां हर निवेशक 70 करोड़ रुपये से ज्यादा निवेश करता है और छूट का अनुरोध करता है।
शाह के मुताबिक, फेमा से जुड़े कुछ मसलों का निपटारा होना अभी बाकी है, जिसका असर ऐसी समितियों के कुछ सदस्यों पर पड़ा था।
कुछ प्रवासी समिति में अपने नॉमनी की नियुक्ति कर रहे थे जिसकी वजह से नियंत्रण से जुड़े फेमा के कुछ निश्चित प्रावधानों पर सेबी की नजर गई। सेबी ने आरबीआई और केंद्र सरकार से इस पर राय मांगी और स्पष्टीकरण आने तक प्रवासी सदस्यों से जुड़े सभी आवेदन को रोककर रखा है। इसका मतलब यह हुआ कि फेमा के तहत नियंत्रण की परिभाषा का विस्तार कर इस पहलू को सख्त बनाया जाएगा। इसके परिणामस्वरूप निवेश के साथ कीमत के नियम, क्षेत्रीय सीमा और अन्य शर्तें लागू हो सकते हैं। उन्होंंने कहा, अभी इसका समाधान नहीं निकाला गया है।
सेबी की सितंबर में हुई बोर्ड बैठक के मिनट्स से पता चलता है कि इससे विदेशी व प्रवासी पर असर पड़ा। इसमें कहा गया है, एआईएफ के वैसे आवेदन पर जहां निवेश समिति को निवेश के फैसले लेने के लिहाज से सशक्त बनाया गया है वहां विदेशी या एनआरआई बाहरी सदस्य के तौर होंगे और ऐसे आवेदन का निपटारा सरकार और आरबीआई से स्पष्टीकरण मिलने के बाद होगा।
सितंबर 2020 में ऑल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंडों ने 1.6 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया है। यह एक साल पहले के आंकड़े के मुकाबले एक तिहाई ज्यादा है। इस मामले में कुल प्रतिबद्धता चार लाख करोड़ ररुपये के पार निकल गई है।