कोविड-19 महामारी के बाद निजी क्षेत्र के निवेशों की जब बात आती है तो भारत के सबसे बड़े पूंजी आवंटनकर्ताओं में से एक के रुझान में थोड़ा बदलाव नजर आता है।
40 लाख करोड़ रुपये की भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) निजी क्षेत्र के अपने निवेशों के शेयरों में आवंटन को लगातार कम कर रही थी। यह रुझान हाल के समय में पलटा है। हालांकि, समग्र आवंटन एक दशक पहले की तुलना में निचले स्तर पर बना हुआ है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि एलआईसी के निवेशों में निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 2019 में 14.9 फीसदी के साथ 16 वर्ष के निचले स्तर पर पहुंच गई थी। 2019 के बाद के दो वर्षों में इसमें इजाफा हुआ है। वित्त वर्ष 2020 में यह 15.3 फीसदी और वित्त वर्ष 2021 में यह 15.5 फीसदी रहा था।
उदारीकरण के बाद के आंकड़े दर्शाते हैं कि सर्वाधिक आवंटन 2010 में 25.7 फीसदी रहा था। यह 1990 से 2003 के बीच औसतन 14 फीसदी रहा था। 2004 और 2021 के बीच औसत बढ़कर 19.7 हो गया था। इसमें मोटे तौर पर एक दशक में हुए आवंटन का योगदान अधिक था। 2004 के बाद से आवंटनों में उछाल आई थी।
4 मई को एलआईसी के शेयरों के लिए सार्वजनिक निर्गम के पेशकश दस्तावेजों में उसके निवेशों पर अतिरिक्त जानकारी दी गई थी। रिजर्व बैंक के आंकड़ों से थोड़ा अलग होने के बावजूद ये दस्तावेज इसकी व्यापक तस्वीर पेश करते हैं कि महामारी के दौरान आवंटनों के किस प्रकार से बदलाव हुए।
जब एलआईसी मार्च 2019 और मार्च 2021 के बीच अधिक धन केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों में लगा रहा था तब लगभग हरेक श्रेणी के निवेश के लिए आवंटन में गिरावट देखी गई। इस दौरान इक्विटी आवंटनों में भी कमी आई क्योंकि चढ़ते बाजारों के बीच एलआईसी लाभ दर्ज कर रही थी।
केवल एक अन्य वृहद क्षेत्र में जिसमें बढ़ी हुई आवंटन की स्थिति नजर आई वह थी वेंचर फंडों, म्युचुअल फंडों, वैकल्पिक निवेश फंडों और एक्सचेंच ट्रडेट फंडों की श्रेणी। मार्च 2019 और मार्च 2021 के बीच इन फंडों में आवंटन में 0.26 प्रतिशत अंक का इजाफा हुआ था। केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों में 3.12 प्रतिशत अंकों की वृद्घि नजर आई थी।
इक्विटी बिक्रियों का कुछ उल्लेख एलआईसी की 2020-21 की वार्षिक रिपोर्ट में था।
