भारतीय शेयर बाजार को लेकर अब प्रमुख वित्तीय वर्गों में ज्यादा चर्चा नहीं हो रही है और माना जा रहा है कि अदाणी समूह विवाद की वजह से भारतीय बाजार का आकर्षण धीमा पड़ा है।
जूलियस बेयर में एशियाई मामलों के शोध प्रमुख मार्क मैथ्यूज ने पुनीत वाधवा के साथ बातचीत में कहा कि दुर्भाग्यवश ऐसा गलत कारणों से हो रहा है। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
कैलेंडर वर्ष 2023 के शेष समय में वैश्विक इक्विटी बाजारों के प्रदर्शन को आप किस नजरिये से देखते हैं?
केंद्रीय बैंकों, खासकर अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा मौद्रिक सख्ती की वजह से 2022 में दुनियाभर में इक्विटी बाजारों में गिरावट आई। एसऐंडपी 500 सूचकांक की आय वृद्धि के लिए इस साल अनुमान शून्य है और शायद यह जल्द ही नकारात्मक दायरे में पहुंच जाएगा। अभी भी हमें इस पर विचार करना होगा कि नकारात्मक आय वृद्धि वाले वर्ष भी ऐसे समय से गुजरे हैं जब शेयर बाजार चढ़े हैं। बाजार हमेशा आगे देखता है। 2022 में, उसने 2023 में मंदी के बारे में सोचा था। इस साल यह अगले साल सुधार की उम्मीद कर रहा है।
कुछ विश्लेषक इस साल के अंत में फेडरल रिजर्व द्वारा दर कटौती का अनुमान जता रहे हैं?
फेड फंड्स रेट मौजूदा समय में 4.75 प्रतिशत पर है और हम 2023 की पहली छमाही के दौरान इसके इसी स्तर पर रहने का अनुमान जता रहे हैं और पूरे वर्ष के लिए यह 4.25 प्रतिशत के आसपास रह सकती है। जहां तक अन्य केंद्रीय बैंकों का सवाल है, मौद्रिक सख्ती पीछे छूट चुकी है। बैंक ऑफ कनाडा पिछले साल दर वृद्धि शुरू करने वाले प्रमुख केंद्रीय बैंकों में पहला था, और उसने अब दर वृद्धि में विराम लगाने का संकेत दे दिया है। हम इसे दूसरों के लिए एक संकेत के तौर पर देख सकते हैं। इसमें भारतीय रिजर्व बैंक शामिल है, जिसके संबंध में हमारा मानना है कि वह पहली छमाही में दर वृद्धि की रफ्तार धीमी करेगा।
अगले कुछ महीनों के दौरान डॉलर सूचकांक का प्रदर्शन कैसा रह सकता है?
पिछले साल सितंबर से दिसंबर की अवधि विश्व युद्ध-2 के बाद से अमेरिकी डॉलर के लिए मजबूत तेजी के बाजारों में से एक थी। ब्याज दर में नरमी आने से हमें यह नहीं मानना चाहिए कि पहले जैसी मजबूती लौट रही है। शेयर और बॉन्ड, दोनों में अब तक आई तेजी पूरे वर्ष बनी रहेगी। यदि हमारा यह अनुमान सही है कि दरें चरम पर पहुंच गई हैं और अब नीचे आएंगी, तो लंबी अवधि के बॉन्डों में कमजोर गुणवत्ता वाले बॉन्डों की तुलना में ज्यादा तेजी आएगी।
क्या निवेशकों को इक्विटी से बॉन्डों की ओर रुख करना चाहिए?
इक्विटी में, क्षेत्र के दिग्गजों की पहचान करना अभी भी संभव नहीं है। वर्ष के शुरू में रक्षात्मक तौर पर निवेश करने की सलाह दी गई थी और इस साल अब तक की वृद्धि 10 प्रतिशत और वैल्यू 3 प्रतिशत से कम है।
क्या अगले कुछ महीनों के दौरान भारत के बजाय पूंजी प्रवाह चीनी बाजारों की तरफ बना रहेगा?
कोष प्रवाह से संकेत मिलता है कि चीनी इक्विटी की विदेशी खरीदारी दीर्घावधि निवेशकों के बजाय शॉर्ट-कवरिंग से जुड़ी हुई है। यह स्पष्ट है कि चीन ने कोविड को पीछे छोड़ दिया है और अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए काफी कोशिश की जा रही है।
क्या अदाणी समूह घटनाक्रम ने विदेशी निवेशकों के लिए भारत को पिछली सीट पर पहुंचा दिया है?
हां, यह सही है क्योंकि भारतीय शेयर बाजार प्रमुख वित्तीय केंद्रों में बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं माना जा रहा है। दुर्भाग्यवश ऐसा गलत कारणों से हो रहा है। लेकिन जो निवेशक भारत को जानते हैं उन्हें यह समझना होगा कि यह बाजार काफी बड़ा और विविधीकृत है और इसकी आबादी काफी ज्यादा और युवा भी है।
भारतीय बाजार के लिए आपकी निवेश रणनीति कैसी है?
भले ही भारतीय बाजार ने इस साल की शुरुआत कमजोरी के साथ की है, लेकिन हम इस बाजार को पसंद करते हैं। हिंडनबर्ग-अदाणी समूह मामला आखिरकार पुरानी खबर बनेगा, और बाजार इस सच्चाई पर ध्यान देगा कि भारत ने इस साल मजबूत आय वृद्धि दर्ज की है, जो दुनिया के कई अन्य देशों से अलग है। हम भारतीय इक्विटी बाजारों पर उत्साहित हैं और पिछले साल मार्च से सकारात्मक रुख अपनाए हुए हैं। इस साल हम चार प्रमुख थीमों पर ध्यान दे रहे हैं – बैंकिंग, वित्तीय सेवा एवं बीमा, निर्माण, ग्रामीण बाजार।