भारतीय बाजारों में धीरे-धीरे विदेशी निवेश बढ़ने लगा है। इसकी वजह देश में भू-राजनीतिक घटनाक्रम और अमेरिकी शुल्क से जुड़ीं चिंताएं कम होना है। कार्नेलियन ऐसेट मैनेजमेंट के संस्थापक विकास खेमानी ने पुनीत वाधवा को बताया कि वैश्विक निवेशक भारत को अभी काफी हल्का आंक रहे हैं लेकिन अगले पांच से दस वर्षों में स्थिति बदलेगी। मुख्य अंशः
यह पूरी तरह स्पष्ट है कि शुल्क संबंधी मामलों में ज्यादा दम नहीं बचा है। अमेरिका दोबारा से विनिर्माण शुरू नहीं करा सकता और शुल्क से महज महंगाई ही बढ़ेगी। शुल्क संबंधी बातचीत अमेरिकी कंपनियों को बेहतर पहुंच दिलाने की रणनीति है, खासकर चीन में। मुझे लगता है कि अब ये सब बातें पीछे रह गई हैं और इस मसले पर बाजार आगे की घटनाओं को तवज्जो नहीं देगा। अन्य कारकों के कारण बाजारों को सामान्य होने में थोड़ा वक्त लगेगा, तब तक वे एक दायरे में रहेंगे।
अमूमन ब्याज दरों में कमी आने से बाजारों की फिर रेटिंग होनी चाहिए। बैंकिंग, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां और खासकर औद्योगिक क्षेत्र बेहतरीन प्रदर्शन करेंगे। हमें लगता है कि मजबूत फंडामेंटल वाले कई सरकारी बैंकों की फिर से रेटिंग होगी। हाल में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए संघर्ष के कारण रक्षा शेयर फिर फोकस में रह सकते हैं।
पहली बार निवेश करने वालों के लिए सबसे अच्छा विकल्प है, विभिन्न सेक्टरों और बाजार पूंजीकरण में बेहतर विविधता वाला पोर्टफोलियो। इसमें बैंकिंग, वित्तीय सेवाओं और बीमा, विनिर्माण, फार्मास्युटिकल्स, उपभोग एवं सेवा क्षेत्र में भारत की विकास गाथा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। भारत बीते 20 वर्षों से सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला बाजार है और मुझे लगता है कि अगले 20 वर्षों तक यह ऐसा ही रहेगा। अगर आपके पास अच्छा बाजार है तो बेवजह अंतरराष्ट्रीय बाजार पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है।
हमने बीते साल कई बार कहा कि विदेशी निवेश वैश्विक ब्याज दरों का निर्भर करता है। जैसे-जैसे अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दरों को लेकर अनिश्चितता कम होगी, भारत में बड़ी मात्रा में निवेश आएगा। हमें उम्मीद है कि अगले दशक में प्रमुख वैश्विक फंडों में भारत का इक्विटी भार बढ़ेगा और इसके परिणामस्वरूप 1.5 लाख करोड़ डॉलर का निवेश आ सकता है जो भारत के मौजूदा 5 लाख करोड़ डॉलर के बाजार पूंजीकरण के लिहाज से बड़ा आंकड़ा होगा। यह वक्त की बात है। इसी तरह, अगले दशक में घरेलू निवेश भी बरकरार रहेगा। शेयर बाजारों में अभी घरेलू परिवारों का निवेश करीब 5 फीसदी है जो अगले दस वर्षों में 15 फीसदी तक पहुंच सकता है।