भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कहा है कि वह सभी डेट म्युचुअल फंड कंपनियों के लिए एक नया दिशानिर्देश जारी करेगा। नियामक ने आज को कहा कि इन दिशानिर्देशों के तहत सभी डेट म्युचुअल फंडों के लिए अपनी योजनाओं में जल्द भुनाई जाने वाली परिसंपत्तियों (लिक्विट ऐसेट्स) का कुछ हिस्सा रखना अनिवार्य होगा।
सेबी के चेयरमैन अजय त्यागी ने कहा कि इन दिशानिर्देशों से डेट योजनाओं में तत्काल भुनाई जाने वाली परिसंपत्तियों की हिस्सेदारी बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि इस साल मार्च और अप्रैल में आए संकट की स्थिति में उन्हें इन प्रावधानों के साथ चुनौती का सामना करने में मदद मिलेगी। त्यागी ने एसोसिएशन ऑफ म्युचुअल फंड्स इन इंडिया (एम्फी) की 25वीं सालाना आम बैठक में ये बातें कहीं। फंड प्रबंधकों का मानना है कि अधिक मात्रा में लिक्विड ऐसेट्स रहने से डेट योजनाओं के प्रतिफल पर असर पड़ सकता है, जिससे निवेशकों के लिए ये अधिक आकर्षक नहीं रह जाएंगी। इस बारे में एक डेट फंड प्रबंधक ने कहा, ‘हम बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट जैसी योजनाएं नहीं चलाते हैं और अधिक प्रतिफल पाने के लिए फंड प्रबंधकों को जोखिम लेने ही पड़ते हैं। प्रतिफल कम रहने पर फंड प्रबंधकों को अधिक जोखिम लेना पड़ेगा।’
लिक्विड योजनाओं के लिए फिलहाल कम से कम 20 प्रतिशत लिक्विड परिसंपत्तियों में निवेश करना अनिवार्य है। अन्य डेट योजनाओं के लिए ऐसी अनिवार्यताएं नहीं हैं और वे कंपनियों के बॉन्ड, व्यावसायिक पत्रों और सर्टिफिकेट्स ऑफ डिपॉजिट्स में निवेश करती हैं। जून में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने सुझाव दिया था कि अचानक रकम निकलने के बाद पैदा हुईं परिस्थितियों से निपटने के लिए सुरक्षा के तौर पर डेट म्युचुअल फंडों को कुछ मात्रा में सरकारी बॉन्ड और ट्रेजरी बिल में निवेश करना चाहिए।
एक दूसरे फंड प्रबंधक ने कहा,’कई म्युचुअल फंड कंपनियां इन दिनों लिक्विड ऐसेट्स में निवेश कर रही हैं।’ डेट फंड आम तौर पर अपने पोर्टफोलियो का शून्य से 5 प्रतिशत तक हिस्सा नकदी एवं इसकी समतूल्य परिसंपत्तियों में रखती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके मद्देनजर नियामक ऐसी परिसंपत्तियों के लिए यह सीमा बढ़ा सकता है।
मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स इंडिया में निदेशक (पोर्टफोलियो स्पेशियलिस्ट) धवल कपाडिय़ा का कहना है कि ऐसा लगता है कि सेबी ने उन कारणों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है, जिनसे फ्रैकलिन टेमप्लटन जैसे मामले सामने आए। उन्होंने कहा,’अगर किसी फंड से निवेशक अचानक बड़ी मात्रा में निकासी करने लगते हैं कि 5 से 10 प्रतिशत नकदी सुरक्षा भी काम नहीं आएगी। इसके बजाय सेबी को मौजूदा श्रेणियों की परिभाषाओं पर विचार करना चाहिए और स भी अवधियों के लिए साख परिभाषाएं (क्रेडिट डेफिनिशन) शुरू करनी चाहिए।’ इस समय साख परिभाषाएं केवल क्रेडिट रिस्क फंडों और कॉर्पोरेट बॉन्ड फंडों के लिए ही लागू होती हैं।
सेबी सभी ओपन एंडेड डेट म्युचुअल फंड योजनाओं के लिए दबाव सहने की क्षमता परखने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित कर रही है।