पिछले तीन हफ्तों से कच्चे तेल की कीमतों में ज्यादा बदलाव नहीं देखा गया है। WTI क्रूड करीब 60 डॉलर और ब्रेंट 65 डॉलर प्रति बैरल के आसपास टिका हुआ है। हालांकि, पिछले एक महीने में 2% और तीन महीने में 3.5% की बढ़त हुई है, लेकिन अभी भी सालाना आधार पर 15% नीचे है। अब हालात तेजी से बदल सकते हैं क्योंकि यूक्रेन ने नवंबर में रूस की रिफाइनरियों पर लगातार ड्रोन हमले किए हैं।
सिर्फ नवंबर में ही पांच बड़े हमले हुए हैं, जिससे रूस की करीब 38% रिफाइनिंग क्षमता प्रभावित हुई है। मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट मोहम्मद इमरान के मुताबिक, इन हमलों की वजह से क्रीमिया में पेट्रोल डीजल की कमी, रूस के निर्यात में 17 प्रतिशत की गिरावट और फरवरी से अब तक पेट्रोल की कीमतों में 9.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यानी रूस पर दबाव बढ़ रहा है और इससे दुनिया में तेल की सप्लाई घट सकती है।
पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बावजूद रूस से चीन और भारत दोनों ही ऊर्जा खरीद रहे हैं। चीन अब अमेरिकी पाबंदियों को नजरअंदाज करते हुए रूसी एलएनजी आयात बढ़ाने के लिए अपनी खुद के खास जहाजों की टीम तैयार कर रहा है।
वहीं भारत भी सस्ते तेल का फायदा उठाने का मौका नहीं छोड़ रहा है। Kpler के आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर में भारत ने फिर से रूस से तेल खरीद बढ़ाई है, जो पहले कम हो गई थी। अनुमान है कि नवंबर के मध्य तक भारत रोजाना करीब 15 से 19 लाख बैरल तेल रूस से खरीदेगा, लेकिन दिसंबर में यह घटकर करीब 2.5 से 3.5 लाख बैरल प्रतिदिन रह सकता है। इसकी वजह यह है कि भारतीय रिफाइनर अब अमेरिका, मध्य पूर्व और अफ्रीका जैसे देशों से भी तेल खरीदने की तैयारी कर रहे हैं।
OPEC+ ने 2 नवंबर को बताया कि दिसंबर में तेल उत्पादन में करीब 1.37 लाख बैरल प्रतिदिन की बढ़ोतरी की जाएगी। लेकिन 2026 की पहली तिमाही में यह बढ़ोतरी रोक दी जाएगी। OPEC+ अप्रैल से अब तक दुनिया के कुल तेल उत्पादन में करीब 3 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर चुका है। वहीं अमेरिका का तेल उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर है, जो 13.65 मिलियन बैरल प्रति दिन तक पहुंच गया है। हालांकि, अमेरिकी तेल भंडार 5.3 प्रतिशत, पेट्रोल 4.3 प्रतिशत और डिस्टिलेट 8.8 प्रतिशत अपनी सामान्य औसत से कम हैं। मोहम्मद इमरान का कहना है कि 2026 में भी तेल बाजार में 0.5 से 0.7 मिलियन बैरल प्रति दिन की अतिरिक्त सप्लाई बनी रह सकती है।
चीन में फैक्ट्रियों की रफ्तार धीमी हो गई है, इसलिए उम्मीद की जा रही है कि सरकार कुछ नए राहत कदम उठा सकती है, लेकिन ये पिछले साल जितने बड़े नहीं होंगे। अक्टूबर में चीन का निर्यात कम हुआ है, खासकर अमेरिका, यूरोप और जापान जैसे विकसित देशों को जाने वाला निर्यात घटा है। अच्छी बात यह है कि अब कीमतों में गिरावट रुकती दिख रही है। अक्टूबर में महंगाई दर यानी सीपीआई 0.2 प्रतिशत रही, जो सितंबर के -0.3 प्रतिशत से बेहतर है। इसका मतलब है कि चीन में डिफ्लेशन यानी लगातार गिरती कीमतों का दौर अब खत्म होता नजर आ रहा है।
मोहम्मद इमरान कहते हैं, अभी तेल बाजार थोड़ा कमजोर चल रहा है क्योंकि 2026 में तेल की ज्यादा सप्लाई होने की उम्मीद है। हालांकि, रूस पर हो रहे हमले और तेल की सप्लाई में रुकावट से कीमतों को कुछ समय के लिए सहारा मिल सकता है। रिफाइनिंग से होने वाला मुनाफा फिलहाल अच्छा है, लेकिन इसका कारण मांग बढ़ना नहीं बल्कि सप्लाई को लेकर चिंता है। अगर आने वाले दिनों में भू-राजनीतिक तनाव बढ़ता है तो WTI क्रूड की कीमत 63 से 65 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती है।
(डिस्क्लेमर: यह लेख मिराए एसेट शेयरखान के रिसर्च एनालिस्ट मोहम्मद इमरान की राय पर आधारित है।)