भारतीय बाजार अमेरिका के वित्त्तीय बाजार में चल रहे संकट से तेजी से प्रभावित हो रहा है।
इन कारणों की वजह से आईसीआईसीआई बैंक के शेयर में भी मंगलवार को दिन भर के कारोबार के दौरान 10 फीसदी की गिरावट आई। इसकी सिर्फ वही वजह नहीं है कि बैंक का लीमन ब्रदर्स में सीनियर बांड के रूप में आठ करोड़ डॉलर का एक्सपोजर है जिससे निवेशक परेशान हो रहे हैं।
यह 1.5 अरब डॉलर के बाजार पूंजीकरण वाली कंपनी के शेयरों में गिरावट के पर्याप्त कारण नहीं है। इसकी ज्यादा वजह लगातार खराब होता क्रेडिट माहौल और एक संभावना है कि दूसरे बैंकों का भी ऐसा ही एक्सपोजर खराब हो सकता है।
भारत के घरेलू बाजार में इन कंपनियों के छुटपुट कारोबार ही है,इसलिए बाजार इससे बहुत ज्यादा परेशान नहीं होगा। लेकिन यह बैंकों के अच्छा समय नहीं है क्योंकि क्रेडिट ग्रोथ लगातार कम हो रही है और डेलिक्वेंसीज लगातार बढ़ती जा रही हैं।
जून 2008 की तिमाही में बैंकों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। ग्रोथ से लाभ की ओर सिफ्ट करने के लिए बैंकों को कई तरीकों से कीमत चुकानी पड़ रही है। उदाहरण के लिए नेट इंट्रेस्ट मार्जिन में 0.45 फीसदी का सुधार आया और यह बढ़कर 2.4 फीसदी पर पहुंच गया जबकि फी इनकम में 37 फीसदी की शानदार बढ़त दर्ज की गई।
हालांकि इस साल बढ़त पर दबाव रहने की संभावना है और इसके अतिरिक्त डेलिक्वेंसीज भी बढ़कर 200 करोड़ के करीब पहुंच गई हैं। कुछ मामलों में यह एक अच्छी चीज है कि बैंक इस चुनौतीपूर्ण क्रेडिट माहौल में आक्रामक ढंग से कर्ज नहीं बांट रहे हैं। जून की तिमाही में कंसॉलिडेटेड लोन बुक सिर्फ 20 फीसदी सालाना आधार पर बढ़ी।
फंडों की भारी कीमत जो करीब दो फीसदी के करीब है वह काफी ऊंची है और इससे बैंकों को काफी खराब के्रडिट रिस्क का सामना करना पडेग़ा। आईसीआईसीआई बैंक अपने रिर्सोसेज आधार को ऊंची लागत वाले होलसेल डिपॉजिट से सस्ते कासा ( मौजूदा एवं बचत खाता) में बदल रही है। इसके लिए बैंक संरचनात्मक सुधार पर फोकस कर रहा है।
इससे बैंक पर आगे फंडिंग कॉस्ट में बढ़ोतरी होने पर कम असर पड़ेगा विशेषकर जब ब्याज दरें लगातार बढ़ रही हों। यदि इससे कासा का अनुपात मौजूदा स्तर से बढ़कर करीब 28 फीसदी के स्तर पर पहुंच सकता है। मौजूदा बाजार मूल्य 565 रुपए पर शेयर का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से महज एक गुना पर हो रहा है और यह सस्ता है। हालांकि अभी बाजार में मंदी का समय समाप्त होनें में वक्त लग सकता है।
होटल-हो सके तो टल
आखिर क्या विदेशी पर्यटक इन सर्दियों में भारत आ रहे हैं? अमेरिका में चल रहे वित्त्तीय संकट और धीमी पड़ती जापान और यूरोप की अर्थव्यवस्था के बीच ऐसा नहीं लग रहा है। इसके साथ ही घरेलू अर्थव्यवस्था भी अपनी गति खो रही है।
कंपनियां अब पांच स्टार होटलों के बाहर भी आयोजन करना सीख रहीं हैं। क्रिसिल के विश्लेषकों का मानना है कि होटलों के लिए इस छुट्टी के माहौल में ऑक्यूपेंसी बनाए रखना मुश्किल होगा और ऑक्यूपेंसी में करीब 70 फीसदी तक गिरावट आ सकती है।
हालांकि यह पिछले साल में अक्टूबर से दिसंबर के बीच 73 से 74 फीसदी की औसत ऑक्यूपेंसी से ज्यादा गिरावट नहीं दिखती है। लेकिन यदि कोई लोअर रूम टैरिफ में प्रवेश करता है तो होटलों के लाभ पर जबरदस्त दबाव होगा क्योंकि कीमतें अभी भी काफी ऊंचीं हैं। होटल चेन के लिए गोवा, आगरा और जयपुर में भी दरों के बढानें में मुश्किल होगी।
बैंगलोर में एआरआर चार्ट में पहले ही गिरावट देखी जा रही है जैसी कि पुणे और हैदराबाद में अक्टूबर 2007 में गिरावट देखी गई थी। जबकि पर्यटकों का आगमन करीब 13 फीसदी बढ़ा। नवंबर और दिसंबर में इस संख्या में पर्याप्त बढ़त दर्ज की गई और दर्ज की गई बढ़त 21 फीसदी थी। इस साल यह चलन अलग हो सकता है जबकि रूम की क्षमता में भी बढ़त नहीं दिख रही है।
बिजनेस यात्रा और पर्यटकों को संख्या दोनों में कमी से आक्यूपेंसी पर दबाव पड़ने की संभावना है। क्रिसिल का अनुमान है कि पिछले जहां नवंबर और दिसंबर में एआरआर में क्रमश: 14 और 21 फीसदी की बढ़ोतरी हुई वहीं इस साल महज पांच फीसदी की बढ़त होने की संभावना है। यह सिर्फ बढ़ी हुई महंगाई के लिए ही पर्याप्त है और वास्तविक रूप से एआरआर में गिरावट होने की संभावना है।
होटलों का 70 फीसदी राजस्व अक्टूबर और मार्च के बीच आता है इसलिए इस वित्त्तीय साल का दूसरा भाग होटलों के लिए मुश्किल समय है। मौजूदा बाजार मूल्य 73 रुपए पर इंडियन होटल्स के शेयरों का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 11 गुना के स्तर पर हो रहा है और यह मौजूदा चुनौतीपूर्ण वैश्विक माहौल को देखते हुए महंगा है।