वित्त वर्ष 2024-25 में घरेलू शेयर बाजार में दो छमाहियों में अलग-अलग रुझान नजर आए। पहली छमाही में बाजार ने शानदार प्रदर्शन किया तो दूसरी छमाही में बाजार में भारी गिरावट और अस्थिरता देखी गई।
वित्त वर्ष के पहले छह महीने में सेंसेक्स लगभग 15 प्रतिशत चढ़ा। इस दौरान अस्थिरता भी कम रही और 30 शेयरों वाले सूचकांक में महज 19 कारोबारी सत्र के दौरान 1 फीसदी या उससे अधिक का उतार-चढ़ाव हुआ। इसके विपरीत दूसरी छमाही में आर्थिक अनिश्चितता, कमाई से जुड़ी चिंताओं और वैश्विक चुनौतियों के कारण बिल्कुल अलग तस्वीर नजर आई।
दूसरी छमाही के दौरान सेंसेक्स में 10 फीसदी से अधिक की गिरावट आई। इसके अलावा बाजार में काफी अस्थिरता भी बढ़ी और करीब 26 कारोबारी सत्रों में नफा या नुकसान एक फीसदी या इससे अधिक रहा। बाजार की अस्थिरता के पैमाने इंडिया वीआईएक्स में पहली छमाही में 0.4 फीसदी की गिरावट के बाद दूसरी छमाही में 4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और अब यह 13.3 के स्तर पर है।
यह उथल-पुथल सितंबर के अंत में सेंसेक्स और निफ्टी के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद शुरू हुई। महामारी के बाद इक्विटी में आई तेजी ने कीमतों को ऊंचे स्तर पर पहुंचा दिया जो सितंबर और दिसंबर की तिमाहियों में कंपनियों की आय कमजोर होने के कारण टिक नहीं पाईं। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने गिरावट को और बढ़ाया। पिछले छह महीने में से पांच महीने वे शुद्ध बिकवाल की भूमिका में आ गए।
शुरुआत में यह बिकवाली चीन में पूंजी का दोबारा निवेश करने के कारण हुई जिसमें चीन के आकर्षक मूल्यांकन और वहां की सरकार के प्रोत्साहन उपायों का बड़ा हाथ रहा। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डॉनल्ड ट्रंप की जीत के कारण भी विदेशी पूंजी बाजार से निकली। अमेरिका की व्यापार नीति में संभावित बदलाव की चिंताओं के कारण अमेरिकी बॉन्ड यील्ड बढ़ा और डॉलर में मजबूती आई जिससे एफपीआई ने भारत जैसे उभरते बाजारों से अपने हाथ खींच लिए।
डॉनल्ड ट्रंप के कार्यभार संभालने के बाद व्यापार शुल्क लगाने में तेजी आने के कारण भी निवेशक असहज हुए और उन्होंने जोखिम वाली परिसंपत्तियों के बजाय सोने जैसे सुरक्षित विकल्पों पर विचार करना शुरू कर दिया। पिछले छह महीने में सोने की कीमतों में 15.3 फीसदी की तेजी आई और यह 3,038 डॉलर प्रति औंस हो गया जबकि डॉलर सूचकांक में 2.7 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और यह 103.5 हो गया। 1