सीआरआर में कटौती करके 60 हजार करोड़ रुपये की तगड़ी खुराक देने के बाद आरबीआई ने मंदी की मार झेल रहे बाजार को एक बार फिर 20 हजार करोड़ रुपये का एक और इंजेक्शन लगा दिया।
इसके तहत, सरकार का इरादा अल्पकालिक ऋण के जरिए म्युचुअल फंडों में नकदी की जरूरत पूरी करने और उनका भुगतान दबाव को कम करने का है। म्युचुअल फंड उद्योग ने नकदी की सुविधा मांगी थी इसलिए सरकार ने सेबी और आरबीआई से बैठक करने और इस मसले को सुलझाने के लिए कहा था।
केंद्रीय बैंक ने बताया कि यह कर्ज 14 दिन का विशेष रेपो (अल्पकालिक ऋण) नौ फीसदी सालाना की दर से लागू होगा। आर्थिक मंदी के कारण ज्यादातर म्युचुअल फंड को नकदी फंडो में भुगतान के दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
जमाकर्ताओं की ओर से निकासी की मांग बढ़ने के कारण नकदी फंडों का कुल परिसंपत्ति मूल्य नकारात्मक होता जा रहा है। बहरहाल, इस फैसले के बाद अब बैंकों का सर्वोच्च संगठन और म्युचुअल फंड आपसी परामर्श के बाद संयुक्त रूप से उचित दर तय करेंगे, जिस पर बैंक म्युचुअल फंड कंपनियों को ऋण देंगे।
म्युचुअल फंडों को जमा प्रमाणपत्र को गारंटी के तौर पर बैंकों के पास जमा करना होगा। म्युचुअल फंड उद्योग बैंकों से ली गई उधारी के लिए जमा प्रमाणपत्र को ही गारंटी के तौर पर मुहैया कराएंगे।
बकौल वित्त मंत्री
म्युचुअल फंडों को पेश आ रही नकदी की दिक्कतों को देखते हुए ही 20 हजार करोड़ का यह कर्ज मुहैया कराया गया है।
ऐसा लगता है कि विभिन्न सरकारों और केंद्रीय बैंकों ने जिन कदमों की घोषणा की है, उनसे न सिर्फ बाजारों में ज्यादा नकदी आई है बल्कि काफी हद तक भरोसा भी कायम करने में मदद मिली है।
मुझे पूरी उम्मीद है कि अब भारतीय पूंजी बाजार में भी वैसा ही आशापूर्ण रुख दिखेगा, जैसा कि अमेरिकी, यूरोपीय और पूर्वी एशियाई बाजारों में दिखा है।