जो लोग शेयर बाजारों में सीधे उतरने के जोखिम से बचते हुए म्युचुअल फंडों के जरिए निवेश को अब तक सुरक्षित मानते रहे हैं, उनके लिए भी राहें अब आसान नहीं हैं।
दरअसल, रियल एस्टेट और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की ओर से बढ़ रहे डिफॉल्ट की वजह से म्युचुअल फंड उद्योग पर भी खासा दबाव है। म्युचुअल फंडों के पास फिक्स्ड मेच्योरिटी प्लान (एफएमपी) के तहत करीब 96,520 करोड़ रुपये की संपत्ति है। म्युचुअल फंड उद्योग की औसत संपत्ति लगभग 5.29 लाख करोड़ रुपये की है जिसमें एफएमपी की हिस्सेदारी 15 फीसदी है।
शेयर बाजारों की चाल को भांपते हुए म्युचुअल फंडों ने इस साल की शुरुआत से ही इन क्षेत्रों में निवेश में सावधानी बरत रहे थे। पर डर इस बात का है कि इन क्षेत्रों में जो पैसा पहले से ही लगाया जा चुका है वह मुश्किल में फंस सकता है और कई ऐसे मामलों में तो भुगतान में भी देरी देखने को मिल रही है।
हालांकि म्युचुअल फंड हाउस के प्रमुख यह बात मानने को तैयार नहीं हैं कि निवेशकों का पैसा खतरे में है। वे यह तो मानते हैं कि तरलता की कमी के कारण कुछ मामलों में भुगतान में देर हो रही है, पर इसका मतलब यह नहीं कि निवेशकों का पैसा जोखिम में है।
एक म्युचुअल फंड हाउस के प्रमुख कहते हैं कि यह क्षेत्र थोड़ी बहुत परेशानी में तो है पर अगर समूची प्रणाली की बात करें तो अभी कोई खतरा नहीं है। सूत्रों के मुताबिक रियल एस्टेट की कुछ कंपनियां भुगतान करने में असमर्थ रही हैं और वे कुछ और दिनों की मोहलत मांग रही हैं।
भले ही अभी म्युचुअल फंडों की एफएमपी के मेच्योर होने के बाद उन्हें भुनाने को लेकर कोई खास दबाव नहीं है फिर भी म्युचुअल फंडों ने यह तैयारी कर रखी है कि अगर ऐसी कोई स्थिति आती भी है तो वे उसका सामना कर सकें। खासतौर पर ऐसी कंपनियां जिन्होंने एफएमपी में निवेश किया है, वे अगर अपनी राशि वापस लेती हैं तो फंड इसके लिए तैयार हैं।
म्युचुअल फंड उद्योग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जितनी संपत्ति प्रबंधन के तहत रखी गई है, उसमें से 10 से 15 फीसदी रकम रियल एस्टेट और एनबीएफसी के पेपर में लगी हुई है। पिछले दो सालों के दौरान रियल एस्टेट क्षेत्र से मिलने वाला रिटर्न बाजार की तुलना में एक से दो फीसदी अधिक था।
और यही वजह रही कि कई फंड प्रबंधकों ने अपनी कुल रकम का 60 से 70 फीसदी हिस्सा इसी क्षेत्र में लगा दिया था। पर इस क्षेत्र के प्रदर्शन को देखते हुए अधिकांश फंड प्रबंधकों ने पिछले 8 से 10 महीनों में इन क्षेत्रों से दूरी बनानी शुरू कर दी थी। बड़े निवेशकों द्वारा पैसा वापस खींचने की आशंकाओं ने एफएमपी क्षेत्र पर खासा दबाव बना रखा है।