देसी इक्विटी में विदेशी निवेश को लेकर मुश्किल भरे दिन जल्द ही पीछे छूट जाने की संभावना है, ऐसा विश्लेषकों का मानना है। उन्हें उम्मीद है कि भारत समेत उभरते बाजारों में विदेशी निवेशक लौटेंगे क्योंकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व समेत वैश्विक केंद्रीय बैंक महंगाई पर लगाम कसने के लिए ब्याज दरों में बढ़ोतरी के मामले में अब कम आक्रामक हो गए हैं।
राबोबैंक इंटरनैशनल के वरिष्ठ अमेरिकी रणनीतिकार फिलिप मारे ने हालिया नोट में कहा, फेड चेयरमैन जीरोम पॉवेल बुधवार की 75 आधार अंक बढ़ोतरी के बाद रफ्तार धीमी करना चाहते हैं। फेडरल ओपन मार्केट कमेटी सितंबर में शायद 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी करना चाहती है, जिसके बाद बाकी दो बैठकों में 25-25 आधार अंक।
हालांकि दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं में हो रहे घटनाक्रम को देखते हुए विश्लेषक विदेशी संस्थागत निवेशकों की तरफ से रुक-रुककर हो रही निकासी के खिलाफ सतर्क कर रहे हैं।
सेंट्रम पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज के मुख्य निवेश अधिकारी अनिल सरीन ने कहा, हमें नहीं लगता कि हालिया खरीदारी कंपनियों की आय या भारतीय बाजारों के मूल्यांकन के कारण हुई है बल्कि अमेरिकी घटनाक्रम के चलते। वहां अब मामला महंगाई से मंदी की संभावना की ओर चल पड़ा है, जो उम्मीद जगा रहा है कि फेड की ब्याज बढ़ोतरी और नकदी कटौती धीरे-धीरे कम हो जाएगी। इससे अमेरिकी इक्विटी को सुधारने और भारतीय बाजारों की बेहतरी में मदद मिलेगी। अगर ऐसा हुआ तो हम साफ तौर पर कह सकते हैं कि बुरे दिन पीछे रह गए हैं।
अक्टूबर 2021 से भारतीय बाजारों से 30अरब डॉलर से ज्यादा की निकासी के बाद भारतीय इक्विटी से एफआईआई की निकासी जुलाई में पिछले महीनों के मुकाबले कम हो गई।
इस बीच, बाजारों में तेज गिरावट देखने को मिली और एसऐंडपी बीएसई सेंसेक्स और निफ्टी-50 अक्टूबर 2021 की अपनी-अपनी ऊंचाई से 7-7 फीसदी नीचे आ गए। ज्यादातर वैश्विक सूचकांकों की स्थिति खराब रही और एसऐंडपी 500 मंदी के दौर में आ गया और इस अवधि में उसमें 20 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई।
क्रेडिट सुइस वेल्थ मैनेजमेंट के विश्लेषकों के मुताबिक, विदेशी निवेशकों की तरफ से लगातार हो रही बिकवाली ने भारतीय शेयरों में विदेशी स्वामित्व नौ साल के निचले स्तर 19.4 फीसदी पर ला दिया, जो 10 साल के औसत 20.2 फीसदी से कम है।
मॉर्गन स्टैनली के मुताबिक, सबसे ज्यादा एफपीआई बिकवाली टेक्नोलॉजी सेक्टर में देखने को मिली है। एफपीआई जून तिमाही में अंडरवेट हो गए। वे कंज्यूमर डिस्क्रिशनरी व इंडस्ट्रियल पर भी अंडरवेट हो गए।
दूसरी ओर, म्युचुअल फंड लगातार 16 महीनों से भारतीय इक्विटी के शुद्ध खरीदार बने हुए हैं। इसके परिणामस्वरूप म्युचुअल फंडों का स्वामित्व 8.3 फीसदी की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया है और यह 10 साल के औसत 5.7 फीसदी से ज्यादा है। रिपोर्ट ये यह जानकारी मिली।
फिस्डम प्राइवेट वेल्थ के मुख्य कार्याधिकारी अभिजित भावे ने कहा, अल्पावधि में डॉलर इंडेक्स में नरमी और डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 80 या इसके आसपास रहने का अनुमान सकारात्मक अवधारणा में इजाफा करेगा। चूंकि वैश्विक महंगाई कम हो रही है और केंद्रीय बैंकों की ब्याज दरों पर आक्रामकता घट रही है, ऐसे में अगली दो तिमाहियों में एफआईआई निवेश जोर पकड़ने का अनुमान है।