वित्त वर्ष 2024-25 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से रिकॉर्ड 1.54 लाख करोड़ रुपये निकाल लिए हैं। बिज़नेस स्टैंडर्ड के संकलित डेटा के मुताबिक यह अब तक की सबसे बड़ी निकासी है। इससे पहले कोविड-19 की पृष्ठभूमि के बीच वर्ष 2022 में वैश्विक फंडों ने 1.41 लाख करोड़ रुपये निकाले थे। आंकड़ों के मुताबिक विदेशी निवेशकों की भारी बिकवाली के बावजूद वित्त वर्ष 2025 में भारतीय घरेलू निवेशकों ने शेयर बाजार में रिकॉर्ड 6 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया।
उन्होंने शेयर बाजार में गिरावट के दौरान खरीदारी की रणनीति अपनाई यानी जब शेयर बाजार गिरा तो और ज्यादा शेयर खरीदे। आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछले सालों की तुलना में घरेलू निवेशकों ने वित्त वर्ष 2024 में 2 लाख करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2023 में 2.56 लाख करोड़ रुपये का निवेश किया था।
वित्त वर्ष 2025 (अप्रैल से सितंबर) की पहली छमाही के तीन महीने के दौरान विदेशी निवेशकों ने घरेलू शेयरों में पूरे उत्साह से पैसे लगाए। लेकिन शेयरों के भाव बहुत बढ़ जाने और वृद्धि को लेकर सुस्ती की बढ़ती चिंताओं के बीच अक्टूबर 2024 से ही वे शुद्ध बिकवाल बने हुए हैं। इसके अलावा चीन के अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के प्रोत्साहन उपायों और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की जैसे पर तैसे शुल्क लगाने की धमकी से भी भारतीय शेयरों में उनके निवेश के फैसलों पर असर पड़ा।
ऐक्सिस सिक्योरिटीज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष (शोध) राजेश पालवीय ने कहा, ‘कमाई वृद्धि दर का कम होना, वैश्विक अनिश्चितताएं, अमेरिका में बॉन्ड यील्ड के उच्च स्तर पर रहना और अमेरिकी नीति में बदलाव जैसे कुछ प्रमुख कारणों ने एफआईआई को निवेश निकालनो को प्रवृत्त किया।’ पालवीय ने कहा कि अमेरिका की संरक्षणवादी नीतियों के कारण पेंशन और बीमा फंडों ने आक्रामक तरीके से बिकवाली की।
विदेशी निवेशकों के पैसे निकालने के बावजूद निफ्टी50 और सेंसेक्स जैसे बड़े शेयर सूचकांक इस वित्तीय वर्ष में लगभग 4 फीसदी बढ़े हैं। स्मॉलकैप और मिडकैप शेयरों के सूचकांक में लगभग 5 फीसदी का उछाल आया है। हालांकि, विदेशी निवेशकों की बिकवाली के कारण ये सूचकांक अपने उच्चतम स्तर से लगभग 14 फीसदी नीचे आ गए हैं।
विश्लेषक विदेशी निवेशकों की दोबारा वापसी को लेकर सतर्क हैं क्योंकि अब भी घरेलू और वैश्विक स्तर पर कई तरह की अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। लेकिन अगर दुनिया भर में जोखिम कम होता है तो भारत को फायदा हो सकता है, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए वित्त वर्ष 2026 अच्छा रहने की उम्मीद है।
विश्लेषकों का कहना है कि निकट भविष्य में विदेशी निवेशकों का निवेश कई बातों पर निर्भर करेगा जैसे कि कंपनियों की कमाई में वृद्धि, विकास को बढ़ावा देने वाले उपभोग से जुड़े सरकार के कदम और भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से दरों में कटौती। अमेरिका 2 अप्रैल से भारत से आयातित कुछ चीजों पर अतिरिक्त कर लगाएगा, जिससे भारत के निर्यात पर असर पड़ सकता है।