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इक्विटी और तेल बाजार अब राहत की सांस ले सकते हैं, क्योंकि रूस में हालात सामान्य होने से कच्चे तेल की कीमतों में बड़ी तेजी की आशंका कमजोर पड़ गई है।
अपनी तेल जरूरतों का करीब 80 प्रतिशत आयात करने वाला भारत पिछले कुछ महीनों से सस्ते रूसी तेल पर निर्भर रहा है। इससे मुद्रास्फीति नियंत्रित बनी हुई है। रूस में मौजूदा घटनाक्रम के बीच भारतीय बाजारों में उतार-चढ़ाव बने रहने का अनुमान जताया गया, विश्लेषकों का मानना है कि मॉनसून की चाल, कोष प्रवाह (FII और घरेलू दोनों) और आगामी कॉरपोरेट आय सीजन पर भी नजर रखे जाने की जरूरत होगी।
विश्लेषकों का कहना है कि वृहद स्तर पर, भूराजनीतिक घटनाक्रम के अलावा, वैश्विक केंद्रीय बैंक की नीतियों और चीन की आर्थिक प्रगति पर भी नजर रखे जाने की जरूरत होगी। मॉस्को के नेतृत्व और प्रिगोझिन (वैगनर समूह के प्रमुख) के बीच टकराव पिछले सप्ताह खुलकर सामने आ गया था।
हालांकि रूसी विद्रोहियों ने मॉस्को की ओर अपने हमले तेज कर दिए थे, लेकिन अब यह कार्रवाई बंद हो गई है, जिससे राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन के सत्ता से हटने का खतरा टलता नजर आ रहा है।
स्वतंत्र तेल बाजार विश्लेषक पॉल हिकिन का मानना है कि रूस में घटनाक्रम का तेल कीमतों पर प्रभाव पड़ने के मुकाबले भूराजनीतिक जोखिम ज्यादा होगा। उनका मानना है कि अल्पावधि में तेल कीमतों में कुछ भूराजनीतिक जोखिम का असर भी जुड़ जाएगा।
हिकिन ने कहा, ‘रूस में घटनाक्रम हमेशा से तेल बाजारों के लिए नकारात्मक रहे हैं, खासकर यूक्रेन पर हमला किए जाने के बाद से। तेल कीमतें तब से 100 डॉलर प्रति बैरल के पार पहुंच गई थीं। ताजा घटनाक्रम तेल बाजारों के लिए ऐसे तूफान के समान हैं, जो जल्द ही शांत हो जाएगा। बाजार अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी ध्यान बनाए रखेंगे, जैसे चीन में घटनाक्रम, उसका आर्थिक सुधार और तेल के लिए मांग पर प्रभाव।’
रूस में ताजा घटनाक्रम की वजह से कच्चे तेल की कीमतें सप्ताह के अंत में 3 प्रतिशत से ज्यादा चढ़कर 74.5 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई थीं। आंकड़ों से पता चलता है कि कैलेंडर वर्ष 2023 में तेल कीमतों में करीब 11 प्रतिशत तक की कमी आई है।
इस बीच, भारत द्वारा रूसी तेल का आयात मई में करीब 19.5 लाख बैरल प्रतिदिन की नई ऊंचाई पर पहुंच गया था।