भारतीय रिजर्व बैंक के बाद अब आयकर विभाग की ओर से कंपनियों और बैंकों को विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स में हुई हानि का खुलासा करने को कहा गया है। वर्ष
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, बैंकों और कंपनियों को विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स में हुई हानि और भारत व विदेशों में उनकी शाखाओं के व्यापार ढांचे का खुलासा करने के लिए बुलाया गया था। इस प्रक्रिया का मकसद डेरिवेटिव्स में हुई हानि पर कर के प्रभाव का आकलन करना था।
हालांकि इस साल कर संग्रह पर इसका बहुत कम प्रभाव पड़ने का अनुमान है
, लेकिन 2008-09 में इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में आयकर अधिकारी कंपनियों और बैंकों की कर और वित्तीय लेखांकन का इंतजार कर रहे हैं। इसके बाद ही मामले की जांच की जाएगी। इस जांच में कंपनियों व बैंकों को हुई वास्तविक हानि का आकलन किया जाएगा और उसी अनुपात में कर योग्य आय के बारे में निर्णय लिया जाएगा।हालांकि इस पर अंतिम रूप से चर्चा संभवत
: अगले वित्तीय वर्ष में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड की ओर से जारी गाइडलाइन के मुताबिक की जाएगी। गौरतलब है कि बैंकों और कंपनियों की ओर से विदेशी व्यापार में होने वाले संभावित जोखिम के मद्देनजर विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स का इस्तेमाल किया जाता है।इनमें लोन और बाँड के जरिए विदेशी मुद्रा अजत की जाती है। इसके अलावा, बैंकों और कंपनियों की ओर से विदेशी बाजार से लोन और बाँड हासिल करने के लिए क्रेडिट डेरिवेटिव्स भी जारी किए जाते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक, ज्यादातर बैंक, जो डेरिवेटिव्स कारोबार में शामिल हुए हैं, उन्होंने अनुमान के आधार पर इस व्यापार में शमिल हुए। इस तरह के कारोबार में अवांछित तरीके से मुद्रा अर्जित की गई है।
उधर, वैश्विक बाजार में उथल–पुथल की वजह से विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स में भी काफी नुकसान हुआ है। कर विभाग इस बात की पड़ताल में लगा है कि बैंक व कंपनियों की ओर से विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स में अपने पोर्टफोलियो के जोखिम को बचाने के लिए प्रवेश किया या फिर पूरी तरह से यह अनुमान पर आधारित था। ऐसे में अनुमान के आधार पर किए गए व्यापार में हुई हानि या लाभ को ध्यान में रखकर कर निर्धारण नहीं किया जाता है। सच तो यह है कि बहुत से भारतीय बैंक व कंपनियों को विदेशी एक्सचेंज डेरिवेटिव्स कारोबार में काफी नुकसान उठाना पड़ा है।