बाजार विश्लेषकों का कहना है कि करीब 2 लाख और 10 लाख रुपये के बीच बोलियों के लिए गैर-संस्थागत निवेशकों (एनआईआई) के लिए एक-तिहाई हिस्सा आरक्षित करने के बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के कदम से आईपीओ के दौरान इस श्रेणी में बोलियों में बदलाव देखा जा सकता है।
अब तक, एनआईआई श्रेणी में बोली लगाने वाले अक्सर कम बोली वाले निवेशक 20 करोड़ रुपये से 50 करोड़ रुपये की ऊंची वैल्यू वालों के सामने नहीं टिक पाते हैं। यह खासकर ऐसा मामला था, जब आईपीओ के लिए ग्रे बाजार में प्रीमियम अधिक था और निर्गम बड़े अंतर के प्रीमियम पर सूचीबद्घ होने की संभावना थी। एक-तिहाई आरक्षित कोटे का मतलब है कि 10 लाख रुपये से कम की राशि के लिए एनआईआई बोली के लिए अब आवंटन मिलने की काफी ज्यादा संभावना रहेगी। इसका यह भी मतलब है कि एचएनआई श्रेणी में बोली से संबंधित कुल राशि घट सकती है।
आवंटन का परिदृश्य बदलेगा और यह रिटेल निवेशकों के समान होगा। नए मानकों के अनुसार, एनआईआई श्रेणी के लिए प्रतिभूतियों का आवंटन अधिक अभिदान के मामले में आवेदक के लिए न्यूनतम आवेदन आकार के प्रयास में ‘ड्रॉ ऑफ लॉट्स’ पर होगा। शेष आवंटन आनुपातिक आधार पर किया जाएगा।
सेंट्रम कैपिटल में पार्टनर (ईसीएम) प्रांजल श्रीवास्तव ने कहा, ‘शुरू में, यदि किसी आईपीहो को 100 गुना आवेदन मिलते थे, तो उसका मतलब होता था कि आपको आवेदन आकार का 100वां हिस्सा मिलेगा। ब्याज लागत तब निर्गम भाव में जुड़ती थी और एचएनआई इस आधार पर निवेशित रहते थे कि ग्रे बाजार का प्रीमियम इस कीमत के अनुसान कितना ऊपर जाएगा। अब वे गणनाएं काम नहीं कर सकतीं और फंडिंग के संबंध में इनका नकारात्मक असर पड़ सकता है। इसका मतलब सेबी के लक्ष्यों में से एक पर पड़ सकता है, क्योंकि निवेशकों ने सूचीबद्घता लाभ के लिए शुद्घ तौर पर आईपीओ में अंधाधुंध तरीके से निवेश किया है।’
नियामक के नियम के साथ साथ आरबीआई के अन्य ताजा कदम (एनबीएफसी को 1 अप्रैल से आईपीओ निवेशकों को 1 करोड़ रुपये से ज्यादा की उधारी से रोकने से संबंधित) से उधारी को लेकर अटकल समाप्त होने और अभिदान स्तर प्रभावित होने का अनुमान है।