पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवा (पीएमएस) के जरिये धनवान लोगों को उनका पैसा निवेश करने में मदद करने वालों को नए ग्राहक बनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि उनकी प्रक्रिया में अब भी एक भौतिक घटक है।
पोर्टफोलियो प्रबंधकों को अपने ग्राहकों से पावर ऑफ अटॉर्नी (पीओए) नामक दस्तावेज पर हस्ताक्षर कराने होते हैं। अपने ग्राहक के निवेश खाते के धन का प्रबंधन करने की अनुमति दिए जाने के लिए इस दस्तावेज की जरूरत होती है। उद्योग के अधिकारियों के अनुसार इन दस्तावेजों पर असली हस्ताक्षर प्राप्त करने के इस कार्य में खाता खोलने प्रक्रिया के दौरान काफी मशक्त और सात दिन या इससे भी अधिक का समय लगता है। तब जाकर ब्रोकरेज और म्युचुअल फंड ग्राहकों की आसान ऑनलाइन सुविधा शुरू कर पाते हैं। पीएमएस उद्योग करीब 20 लाख करोड़ रुपये की परिसंपत्ति का प्रबंधन करता है। इसका एक बड़ा हिस्सा (14.4 लाख करोड़ रुपये) भविष्य निधि होता है। बाकी पैसा धनवान लोगों का होता है। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने देश में इस विश्वव्यापी महामारी आने से पहले ऐसी योजनाओं में न्यूनतम निवेश को दोगुना करते हुए 50 लाख रुपये कर दिया था।
मोतीलाल ओसवाल एसेट मैनेजमेंट कंपनी एसोसिएट निदेशक और बिक्री एवं वितरण प्रमुख अखिल चतुर्वेदी ने कहा कि उनकी कंपनी खाता खोलने की यह प्रक्रिया पूरी तरह से डिजिटल रूपरेखा में लाने में काफी हद तक सफल रही है। पावर ऑफ अटॉर्नी वाला दस्तावेज ही एकमात्र बचा हुआ हिस्सा रहा है। असली हस्ताक्षर की जरूरत के कारण उस प्रक्रिया में एक सप्ताह या अधिक समय लगता है। उन्होंने कहा कि पावर ऑफ अटॉर्नी पर हस्ताक्षर करना ही अकेला ऐसा हिस्सा है जो भौतिक है।
मुंबई स्थित एमके इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के मुख्य कार्याधिकारी विकास एम सचदेवा ने कहा कि इस भौतिक बाधा को हटाने और इसमें लगने वाले समय को कम करने से उद्योग को बेहतर तरीके से परिसंपत्ति संचित करने में मदद मिल सकती है। उन्होंने कहा कि उद्योग ज्यादा फल-फूल सकता है, क्योंकि अधिकांश लोग सुविधा चाहते हैं।
सितंबर 2020 तक पीएमएस की कुल परिसंपत्ति 19 प्रतिशत बढ़कर 19.1 लाख करोड़ रुपये हो गई है, जबकि वर्ष 2019-20 में यह 16.1 लाख करोड़ रुपये थी। इस अवधि के दौरान म्युचुअल फंड उद्योग की परिसंपत्ति 21 प्रतिशत बढ़कर 26.9 लाख करोड़ रुपये हो चुकी है। वर्ष 2019-20 में यह 22.3 लाख करोड़ रुपये थी।
