Hindenburg- SEBI row: कंपनी मामलों के मंत्रालय के आंकड़े से खुलासा हुआ है कि सेबी की चेयरपर्सन माधवी पुरी बुच और उनके पति की तरफ से गठित कंसल्टेंसी फर्म अगोरा एडवाइजरी ऐक्टिव की सूची में है, जो बुच के उस दावे के उलट है जिसमें उन्होंने कहा है कि सेबी की नियुक्ति के बाद यह कंपनी निष्क्रिय बन गई।
हिंडनबर्ग रिसर्च ने इन आंकड़ों को देखा है, जो बताता है कि अगोरा ने वित्त वर्ष 2021 व वित्त वर्ष 24 के बीच 2.54 करोड़ रुपये की आय अर्जित की जबकि पिछले वित्त वर्ष में उसकी आय घटकर महज 14 लाख रुपये रह गई।
बुच को सबसे पहले अप्रैल 2017 में सेबी का पूर्णकालिक सदस्य नियुक्त किया गया था और मार्च 2022 में वह बाजार नियामक की चेयपर्सन बन गईं।
कोछड़ ऐंड कंपनी की पार्टनर समीना जहांगीर ने कहा, निष्क्रिय कंपनी उसे कहा जाता है जिसका कोई सक्रिय परिचालन न हो, हालांकि उसकी कुछ पैसिव आय हो सकती है मसलन सावधि जमाओं या रॉयल्टी से, जो बहुत ज्यादा नहीं हो। कंपनी अधिनियम की धारा 455 के तहत कोई कंपनी एमसीए के पास निष्क्रिय दर्जे के लिए आवेदन कर सकती है, अगर उसका कोई सक्रिय कारोबार या परिचालन न हो और उसने बहुत ज्यादा लेनदेन नहीं किया हो।
कंपनी पंजीयक की तरफ से निष्क्रिय कंपनी घोषित किए जाने के मामले में तय मानक हैं, जिसमें निष्क्रियता की अवधि में बहुत ज्यादा लेनदेन न होना शामिल है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सेबी चेयरपर्सन ने निष्क्रिय शब्द का इस्तेमाल शायद हल्के में यानी अस्पष्ट तौर पर किया होगा, न कि जैसा कंपनी अधिनियम में पारिभाषित है। उनका इरादा यह कहने का था कि कंपनी बहुत ज्यादा सक्रिय परिचालन नहीं कर रही।
सेबी के पूर्व कार्यकारी निदेशक और प्रॉक्सी एडवाइजरी फर्म स्टेकहोल्डर्स एम्पावरमेंट सर्विसेज के संस्थापक जेएन गुप्ता ने कहा, कोई निष्क्रिय कंपनी विगत के काम के लिए राजस्व अर्जित कर सकती है, अगर यह भुगतान किस्तों में किया जा रहा हो या कुछ निश्चित लक्ष्य पूरा होने पर। साथ ही कंपनी पिछले निवेश या जमाओं से भी राजस्व अर्जित कर सकती है। मेरे पास इसकी विस्तृत जानकारी नहीं है, जिसके बारे में सिर्फ सेबी प्रमुख ही स्पष्ट कर सकती हैं।
इस बारे में जानकारी के लिए सेबी और नियामक की चेयरपर्सन बुच को अलग से भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं मिला।
एमसीए की वेबसाइट से पता चलता है कि धवल अगोरा एडवाइजरी के निवेशक हैं। सेबी प्रमुख व उनके पति की तरफ से हिंडनबर्ग के दावे के 15 विंदुओं के खंडन के बाद न्यूयॉर्क की रिसर्च फर्म ने एक बार फिर एक्स पर अपने पोस्ट में कहा है कि भारतीय इकाई अगोरा की 99 फीसदी हिस्सेदारी अभी भी सेबी की चेयरपर्सन के पास है और उसने वित्त वर्ष 22, वित्त वर्ष 23 और वित्त वर्ष 24 के दौरान आय अर्जित की जब वह सेबी की चेयरपर्सन थीं। उसने कंसल्टिंग क्लाइंटों की पूरी सूची जारी करने का आह्वान किया है।