प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
भारत में मधुमेह का संकट तेजी से बढ़ रहा है और ताजा आंकड़ों के मुताबिक इससे जुड़े शुरुआती मामलों में तेज वृद्धि और व्यापक चयापचय (मेटाबॉलिक) विकारों का पता चलता है। स्वास्थ्य-तकनीकी मंच, जांच केंद्र और डॉक्टरों से मिले ताजा प्रमाण बताते हैं कि अब तक जांच किए गए लगभग आधे भारतीयों में असामान्य रक्त शर्करा का स्तर है जो तेजी से बिगड़ती सार्वजनिक सेहत की आपात स्थिति तथा आजीवन दवा पर बढ़ती निर्भरता के संकेत दे रहा है।
वैश्विक स्तर पर मधुमेह सेहत के लिए एक प्रमुख चिंताजनक स्थिति बनती जा रही है और अनुमान के मुताबिक फिलहाल 58.9 करोड़ वयस्क इस स्थिति के साथ जी रहे हैं और वर्ष 2050 तक यह संख्या बढ़कर 85.3 करोड़ होने की उम्मीद है। भारत में लगभग 10.1 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं और दुनिया भर में यह मधुमेह से दूसरा सबसे बड़ा प्रभावित आबादी वाला देश है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस बढ़ते बोझ को दूर करने के लिए साक्ष्य-आधारित रणनीतियां महत्त्वपूर्ण होंगी जिसमें मधुमेह प्रबंधन में पोषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका शामिल है।
फार्मइजी ने वर्ष 2021 और 2025 के बीच 40 लाख से अधिक जांच और इलाज से जुड़ी रिपोर्ट और 1.9 करोड़ दवा ऑर्डरों का विश्लेषण किया। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, लगभग 30 प्रतिशत एचबीए 1सी जांच मधुमेह की सीमा में आते हैं और बाकी 25 प्रतिशत मधुमेह से पूर्व की स्थिति में नजर आते हैं। कुल मिलाकर, जांच किए गए 50 प्रतिशत से अधिक लोगों में रक्त शर्करा में अनियमितताएं गई और 30 वर्ष की आयु के व्यक्तियों में भी तीव्र वृद्धि शुरू हो गई है। 30 वर्ष से कम उम्र वालों में भी ग्लूकोज बढ़ा हुआ पाया गया।
इस विश्लेषण में देश भर से जुड़े व्यापक रुझान को दर्शाते हैं। महाजन इमैजिंग ऐंड लैब्स ने इस वर्ष 40 वर्ष से कम उम्र के वयस्कों में मेटाबॉलिक और ग्लूकोज की जांच का विश्लेषण किया और यह पाया कि बिना कुछ खाए 38 प्रतिशत ग्लूकोज, 20 प्रतिशत एचबीए1सी और 35 प्रतिशत खाना खाने के बाद की रीडिंग असामान्य थी।
महाजन इमैजिंग ऐंड लैब्स के संस्थापक और अध्यक्ष तथा फिक्की स्वास्थ्य सेवा समिति के अध्यक्ष डॉ. हर्ष महाजन ने कहा, ‘आईसीएमआर के डेटा से पता चलता है कि वर्ष 2017 से 2023 के बीच, युवा भारतीयों में मधुमेह में लगभग 44 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके कई कारण हैं जिनमें आनुवंशिकी, आहार पैटर्न, मोटापा, तनाव और यहां तक कि प्रदूषण भी शामिल है जो शरीर में जलन या सूजन संबंधी बदलाव करता है। मोटापा एक प्रमुख कारक है और जब मोटे व्यक्ति वजन कम करते हैं तब उनके मधुमेह में काफी हद तक सुधार आ सकता है।’
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विशेषज्ञों का कहना है कि युवाओं में बीमारियों का बढ़ना वास्तव में अधिक तनाव वाली शहरी जीवनशैली, प्रोसेस्ड आहार, कम शारीरिक गतिविधि और बीमारियों का पता लगाने के लिए जांच की बढ़ती उपलब्धता का नतीजा है। लैब नेटवर्क ने होमा-आईआर और फ्रुक्टोसामाइन से लेकर लीवर फाइब्रोसिस स्कोर, बॉडी कंपोजिशन एनालिसिस और जीनोमिक रिस्क पैनल जैसे आधुनिक मेटाबॉलिक जांच में भी वृद्धि देखी है जो शुरुआती स्तर पर बीमारियों का पता लगाने की ओर इशारा करता है।
डायग्नॉस्टिक डेटासेट के अनुसार, अधिक रक्त शर्करा के स्तर के साथ अक्सर दूसरी शारीरिक अंग-संबंधी असामान्यताएं भी देखी जाती हैं। फार्मइजी रिपोर्ट करता है कि बढ़े हुए ग्लूकोज वाले लोगों के 90 प्रतिशत में लिपिड प्रोफाइल में गड़बड़ी है और लगभग आधे की किडनी में खराबी दिखती है। वहीं तीन में से एक में लीवर संबंधी असामान्यताएं हैं जबकि चार में से एक को थायरॉइड की परेशानी है जो मधुमेह को एक अलग शर्करा विकार के बजाय कई अंगों की परेशानियों को उजागर करता है।
पुरानी दवाओं पर निर्भरता भी बढ़ रही है। अब फार्मइजी के सभी दवा ऑर्डर में मधुमेह की दवाओं का हिस्सा 34 प्रतिशत है जो वर्ष 2021 में 25 प्रतिशत था। इससे भी अंदाजा मिलता है कि भारतीय घरों में दीर्घकालिक रोग प्रबंधन का बोझ बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, डायग्नॉस्टिक कंपनियां इस तेजी के लिए गतिहीन जीवनशैली, तनाव, बढ़ता मोटापा, खराब खान-पान की आदतें और चयापचय को लेकर कम जागरूकता को जिम्मेदार ठहराती हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि विश्व स्तर पर मधुमेह से पीड़ित वयस्कों की दूसरी बड़ी संख्या भारत में है और देश में लगभग 3 में से 1 वयस्क मधुमेह की कगार पर हो सकते हैं जिनमें से अधिकांश की जांच हो पाता है, जो सार्वजनिक जागरूकता की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
इस बीमारी के आर्थिक प्रभाव के बारे में डायबिटोलॉजी के प्रमुख और वजन घटाने से जुड़े जैंनद्रा हेल्थकेयर और रंग दे नीला पहल के सह-संस्थापक राजीव कोविल ने कहा, ‘मधुमेह एक बड़ा आर्थिक अवरोधक है। यह लोगों, राज्य, बीमा प्रणालियों और कंपनियों से पैसा खींचता है। एक मध्यम वर्ग का मरीज डॉक्टरी सलाह, जांच और दवाओं पर हर साल कम से कम 25,000 रुपये खर्च करता है।’
मधुमेह को लेकर बढ़ती चिंता को देखते हुए, रेडक्लिफ लैब्स ने मधुमेह की रोकथाम, इसका तुरंत पता लगाने और जीवनशैली प्रबंधन पर केंद्रित एक राष्ट्रव्यापी अभियान, लाइफबियॉन्डशुगर शुरू किया।
रेडक्लिफ लैब्स के संस्थापक और सीईओ आदित्य कांडोई कहते हैं, ‘आज हर छह भारतीय परिवारों में से एक मधुमेह से प्रभावित है। 90 प्रतिशत मामले टाइप 2 मधुमेह से जुड़े हैं जिसे रोका जा सकता है। इसलिए इसका समाधान समय पर इसका पता लगाने और इससे जुड़ी जागरूकता में है। कई अध्ययनों से भी अंदाजा मिलता है कि जीवनशैली में बदलाव और शीघ्र इलाज से 70 प्रतिशत पीड़ित लोगों को इस तरह के जोखिम को काफी हद तक कम करने में मदद मिल सकती है। हमारा मानना है कि जागरूकता, सुलभ इलाज नतीजे बदल सकते हैं।’
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इस बढ़ती स्वास्थ्य चुनौती के बीच, कंपनियां नए समाधान की पेशकश कर रही हैं। एबॉट ने एनश्योर डायबिटिज केयर लॉन्च किया है, जो रक्त शर्करा को नियंत्रित करने, कोलेस्ट्रॉल कम करने और शरीर की संरचना में सुधार करने के लिए डिजाइन किया गया और डॉक्टरों द्वारा जांच किया गया पूरक पोषण है।