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टीके के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता

Last Updated- December 11, 2022 | 7:21 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि किसी भी व्यक्ति को कोविड​​-19 रोधी टीकाकरण के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। न्यायालय ने केंद्र से इस तरह के टीकाकरण के प्रतिकूल प्रभाव के आंकड़ों को सार्वजनिक करने के लिए कहा है। न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बी आर गवई के पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत शारीरिक स्वायत्तता और अखंडता की रक्षा की जाती है। पीठ ने सुझाव दिया कि जब तक कोविड संक्रमितों की संख्या कम है तब तक सार्वजनिक क्षेत्रों में टीका नहीं लगवाने वालों पर कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उपलब्ध सामग्री और विशेषज्ञों के विचारों के आधार पर वर्तमान कोविड-19 टीका नीति को स्पष्ट रूप से मनमाना और अनुचित नहीं कहा जा सकता है। पीठ ने कहा, ‘संख्या कम होने तक, हम सुझाव देते हैं कि संबंधित आदेशों का पालन किया जाए और टीकाकरण नहीं कराने वाले व्यक्तियों के सार्वजनिक स्थानों में जाने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाए। यदि पहले से ही कोई प्रतिबंध लागू हो तो उसे हटाया जाए।’ पीठ ने यह भी कहा कि टीका परीक्षण आंकड़ों को अलग करने के संबंध में, व्यक्तियों की गोपनीयता के अधीन, किए गए सभी परीक्षण और बाद में आयोजित किए जाने वाले सभी परीक्षणों के आंकड़े अविलंब जनता को उपलब्ध कराए जाने चाहिए।
अदालत ने राष्ट्रीय टीकाकरण तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के पूर्व सदस्य डॉ. जैकब पुलियेल द्वारा दायर एक याचिका पर फैसला सुनाया जिसमें कोविड​​-19 टीकों और टीकाकरण के बाद के मामलों के नैदानिक ​​परीक्षणों पर आंकड़ों के प्रकटीकरण के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी। बच्चों के टीकाकरण के मुद्दे पर पीठ ने कहा कि विशेषज्ञों की राय पर कोई और अनुमान लगाना उचित नहीं है और टीकाकरण वास्तव में वैश्विक मानकों और व्यवस्थाओं का पालन करता है। पीठ ने कहा, ‘बच्चों के टीकों पर, केंद्र द्वारा देश में बच्चों के टीकाकरण के लिए लिया गया निर्णय वैश्विक मानकों के अनुरूप है, हम केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देते हैं कि बच्चों के लिए पहले से ही नियामक प्राधिकरणों द्वारा अनुमोदित परीक्षण के चरणों के प्रमुख निष्कर्ष जल्द से जल्द सार्वजनिक किए जाएं।’
केंद्र ने पहले स्पष्ट किया था कि उसने कोविड-19 टीकों को अनिवार्य नहीं बनाया है और केवल यह कहा है कि टीकाकरण 100 प्रतिशत होना चाहिए। टीका निर्माता भारत बायोटेक लिमिटेड और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने याचिका का विरोध किया था और कहा था कि याचिका, अभूतपूर्व वैश्विक महामारी के बीच सार्वजनिक हित में होने का दावा करते हुए, एक निजी मकसद की जासूसी करने और वैक्सीन हिचकिचाहट और सार्वजनिक उन्माद पैदा करने का प्रयास करने के लिए अनुकरणीय लागत के साथ खारिज करने के योग्य है।    

First Published - May 3, 2022 | 12:38 AM IST

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