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साफ्टवेयर पार्क : आखिर मिली और राहत

Last Updated- December 06, 2022 | 9:04 PM IST

वित्त मंत्री पी चिदंबरम द्वारा महंगाई को काबू में करने के अतिरिक्त प्रावधानों को जोड़ने के बाद पिछले हफ्ते संसद के निचले सदन ने वित्त विधेयक को मंजूरी दे दी है।


वित्तीय विधेयक को मंजूरी देने से पहले वित्त मंत्री ने प्रस्तावित राजकोषीय प्रावधानों के परिप्रेक्ष्य में अपनी बात सदन के समक्ष रखी। सदन में एसटीपीआई (सॉफ्टवेयर पार्क)के संदर्भ में टैक्स में 31 मार्च 2010 तक जो रियायत को बढ़ाया गया है उससे जुड़े सनसेट क्लॉज के बारे में बहस हुई।


सनसेट क्लॉज को बढ़ाने के बारे में मंत्री महोदय ने जो बातें कहीं उनसे दो चीजें साफ होती हैं। पहली बात तो यह कि राजकोषीय जिम्मेदारी की रिपोर्ट के क्रियान्वयन के साथ कर में रियायत को धीरे-धीरे खत्म किया जाएगा। दूसरी बात यह कि अगले साल के आम बजट तक इस मामले में कोई भी देरी किसी अनिश्चितता की स्थिति को ही पैदा करेगी, क्योंकि अगले साल चुनाव होने हैं और तब तक बजट नहीं हो पाएगा।


अब एक साल के लिए इसमें चाहे जितनी भी छूट मिले सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) और सूचना प्रौद्योगिकी आधारित सेवाएं (आईटीईएस) देने वाली कंपनियों ने इसका खुले दिल से स्वागत किया है। इस मामले में मुझे जो बात परेशान करती है वो ये कि कर मे रियायत के प्रावधान साल दर साल के हिसाब से तय किये जाते हैं।


अगर इस पर बहुत सूक्ष्मता से सोचा जाए तो लगता है कि आर्थिक वृद्धि के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए  इस बेहद संभावनाओं वाले उद्योग के उचित विकास के लिए नीति निर्माताओं का दृष्टिकोण सही नहीं है। राजकोषीय प्रोत्साहन और वृद्धि सरकार की कर में रियायत और कर प्रोत्साहन की जो नीति ने  केलकर टास्क्फोर्स की संस्तुतियों के बाद ही आकार लिया है, हालांकि इसमें भी यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि इसके  क्रियान्वयन के लिए कौन सा तरीका अपनाया जाएगा।


इसके लिए बिना किसी योजना वाला तरीका अपनाया गया तो जो भी कंपनियां इसमें निवेश करने की सोच रही हैं वे अब इससे मुंह मोड़ सकती हैं। दूसरी बात ये कि जो कंपनियां  इस उद्योग में काम कर रही हैं, उनकी वृद्धि भी प्रभावित होगी।


मुझे इसी बात का डर है कि टैक्स बढ़ाने से  इन कंपनियों की विस्तार योजनाएं और मुनाफे पर असर पड़ना तय है, नतीजतन पूरे सेक्टर के प्रभावित होने की पूरी आशंका बरकरार है। यही लगता है कि हम जिस नीति के  साथ वृद्धि को प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रहे हैं, उसमें कहीं न कहीं सही दिशा का अभाव है।


नीति में निरंतरता


एसटीपीआई इकाईयों के  लिए कर में छूट में हमारी कर नीति में अनियमितता को दर्शाता है। पिछले बजट (2007) में वित्त मंत्री ने एसटीपीआई इकाइयों के  लिए न्यूनतम वैकल्पिक कर (मिनिमम अल्टरनेटिव टैक्स, एमएटी) में छूट को वापस ले लिया था।


नई व्यवस्था के  तहत इन इकाइयों को कर में छूट की अवधि समाप्त होने तक आवश्यक एमएटी का भुगतान करना तय किया गया। इस बात का शुक्र मनाना चाहिए कि विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) के  मामले में सरकार ने इस कानून को लागू नहीं किया नहीं तो अगर सेज और आई टी कानून में संशोधन करके यदि इसमें भी एमएटी को लागू कर दिया जाता तो स्थिति मुश्किल हो सकती थी।


इस बात को लेकर प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद, वित्त मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय में जो बहस चल रही है, उसके  खत्म होने के  आसार नजर नहीं आ रहे हैं। पिछले बजट में जम्मू कश्मीर में औद्योगिक इकाई लगाने के  लिए 2012 तक कर में रियायत की घोषणा की गई थी।


हालांकि कई अन्य पिछड़े राज्यों को इसमें शामिल  नहीं किया गया था, यहां तक की देश के  पूर्वोत्तर हिस्से को भी इसमें जगह नहीं दी गई थी। राजनीतिक होने की वजह से इस प्रस्ताव की काफी आलोचना हुई थी। इससे हमारी राजकोषीय नीति में पेंच दिखाई पड़ते हैं।


कर संग्रह


सरकार के बजटीय घाटे की राजकोषीय जिम्मेदारी को आंशिक रूप से प्राप्त करने के लिए जो राजकोषीय छूट दी जाती है, वापस उसी ओर लौटते हैं। इसके ताजा आंकड़े तो इसी बात की तस्दीक करते हैं कि पूरी छूट की उम्मीद पूरी नहीं हो सकती। आंकड़े बताते हैं कि सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात में कर का अनुपात पिछले तीन वर्षों से बढ़ने पर ही है। प्रत्यक्ष करों में अपर्याप्त संग्रह लोक वित्त के मोर्चे पर भारत की वृद्धि में बाधा रही है। हालांकि इसमें बहुत उल्लेखनीय परिवर्तन भी देखने को मिले हैं।


वर्ष 1990-91 में यह जहां 19 फीसदी था वहीं प्रत्यक्ष कर संग्रह अब आकर 50 फीसदी तक हो गया है। सरकार के तेल और खाद्यान्न पर दी जाने वाली सब्सिडी भी राजकोषीय घाटे में अहम भूमिका अदा करती है। कुछ आंकड़े इस बात को सिद्ध करते हैं कि लंबे समय तक कर में छूट कुछ उभरते हुए उद्योगों के लिए बढ़िया रहती है।


दूसरी ओर आईटी और आईटीईएस पर अप्रत्यक्ष करों के व्यापक दायरे की बात करें, तो यह अप्रत्यक्ष करों पर गौर करने का एक और मामला बन जाएगा। कस्टमाइज्ड सॉफ्टवेयर उत्पादों सेवा कर की लेवी के अलावा राज्य सरकारों द्वारा बिक्री पर लगाया जाने वाला मूल्य वर्धित कर (वैल्यू एडेड टैक्स) आई टी और आईटीईएस उद्योग द्वारा दिए जाने वाले कर में पर्याप्त रूप से बढोतरी कर सकती है।


उद्योग द्वारा स्वैच्छिक कर देने का अनुपात कर न देने के अनुपात से ज्यादा है। वैसे प्रत्यक्ष कर संग्रह रोजगार सृजन में योगदान करता है।राजकोषीय छूट और प्रोत्साहन के लिए  सही दिशा में एक स्थिर और सतत नीति की गुंजाइश है। यह बहुत ही संवेदनशील मामला है।


इसमें अगर कोई भी गलत कदम उठाया गया तो यह तेजी से बढ़ते एक उद्योग की रफ्तार पर ब्रेक लगा देगा। कर नीति को सालाना बजट का हिस्सा नहीं होना चाहिए और मेरा खुद का यह मानना है कि नये कर प्रावधान बड़े परिवर्तनों को तय करेंगे।


लेखक बीएमआर में सहयोगी हैं और उनके विचार निजी हैं।

First Published - May 5, 2008 | 12:40 AM IST

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