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मिली बाजार से बेईमानी की सजा

Last Updated- December 05, 2022 | 5:32 PM IST

बंबई हाई कोर्ट ने मंगलवार को शेयर दलाल केतन पारेख और हितेन दलाल के अलावा पांच अन्य लोगों को 1992 के 137 करोड़ के प्रतिभूति घोटाले के सिलसिले में कारावास की सजा सुनाई।


इन लोगों को सश्रम एक वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई है।दो अन्य लोगों को छह महीने के कारावास की सजा सुनाई गई।विशेष अदालत के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी.एम. कनाडे ने यह फैसला दिया। हालांकि सभी अभियुक्तों की जमानत की अवधि 31 जुलाई तक मान्य होगी। अदालत ने इन लोगों को आपराधिक षडयंत्र का दोषी पाया।


अभियोजन पक्ष का कहना था कि कैनफिना के धन को कैन बैंक म्यूचुअल फंड के मुंबई स्थित खातों में हस्तांतरित किया गया। कैन बैंक म्यूचुअल फंड ने इसे पारेख और अन्य के खातों में हस्तांतरित कर दिया।


कब-कब लगी बाजार में सेंध


मुंदड़ा घोटाला (1957) : भारतीय शेयर बाजार ने पहली बार 1957 में घोटाले की मार झेली। इसमें कोलकाता के व्यापारी हरिदास मुंदड़ा पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने गलत तरीके से भारतीय जीवन बीमा निगम को शेयर बेचे हैं।
प्रतिभूति घोटाला (1992) : इस घोटाले को ‘बिग बुल’ हर्षद मेहता ने अंजाम दिया था। दरअसल, उन्होंने देश की बैंकिंग प्रणाली की खामियों का फायदा उठाया था। इसके तहत मेहता ने बैंकर रसीद का दुरुपयोग शेयरों की खरीद में किया, जिससे बाजार में अनावश्यक तेजी आ गई।
एमएस शूज घोटाला (1994) : एमएस शूज के मालिक पवन सचदेवा पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपनी कंपनी के फंड का दुरुपयोग कंपनी के शेयरों की खरीदारी में किया। इससे कंपनी के आईपीओ की कीमतों में अनावश्यक तेजी आ गई।
सीआरबी घोटाला (1997) : चैन रूप भंसाली, जो वित्तीय कंपनी और म्युचुअल फंड के कारोबार से जुड़े थे, पर इस घोटाले का आरोप लगा था। खुलासा स्टेट बैंक ने किया था।
मेहता की वापसी (1998) : हर्षद मेहता एक बार फिर चर्चा में आए। इस बार उन पर बीपीएल, वीडियोकॉन इंटरनेशनल और स्टरलाइट इंडस्ट्री के शेयरों की कीमत अनावश्यक रूप से बढ़ाने का आरोप लगा।
वैनिशिंग कंपनी घोटाला (1998) : करीब 600 कंपनियां बाजार से पैसा उगाहने के बाद भाग खड़ी हुईं। उसके बाद सेबी ने इस मामले की जांच की और 80 कंपनियों को ऐसा करने का दोषी पाया।
प्लांटेशन कंपनीज घोटाला (1999) : इसमें कंपनी ने निवेशकों से प्लांटेशन और कृषि से जुड़े अन्य कार्यों के लिए पैसे लिए, लेकिन उन्हें लौटाया नहीं।
केतन पारेख घोटाला (2001) : केतन ने पे ऑर्डर का दुरुपयोग किया था। इस मामले का खुलासा तब हुआ, जब माधवपुरा मकर्ेंटाइल को-ऑपरेटिव बैंक की ओर से जारी पे ऑर्डर बाउंस हो गया।
आईपीओ घोटाला : इसमें ब्रोकरेज कंपनियों ने आईपीओ के दाम अनावश्यक रूप से बढ़ा दिए। सूचीबद्ध होने के बाद आईपीओ का मूल्य नीचे चला गया था।


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मध्यवर्ग की आपाधापी से मिलता है मौका: शेयर बाजार में घोटालों के बढने का एक प्रमुख कारण है, इसमें बढती मध्यवर्ग की दिलचस्पी। बड़ी तादाद में ये वर्ग शेयर बाजार में पूंजी तो लगा देता है लेकिन इसके अनिश्चित चरित्र को समझने में नाकाम रहता है।


कैसे सूंघे घोटाले की बू: आमतौर पर शेयर बाजार में घोटाले उस समय होते हैं, जब बाजार में अचानक अनावश्यक तेजी आ जाती है। दरअसल, ऐसे समय में निवेशक कुछ खास कंपनियों के शेयरों को खरीदने में खूब दिलचस्पी दिखाते हैं, लेकिन उनके पोर्टफोलियो का ध्यान नहीं रखते हैं।


कैसे बचें इस फंदे से: शेयर बाजार में निवेश करने से पहले कंपनी की अंतिम तिमाही के प्रदर्शन को ध्यान में रखना चाहिए, साथ ही कंपनी की पृष्ठभूमि का भी पूरी तरह से अध्ययन करना चाहिए।                  प्रस्तुति : नीलकमल

First Published - April 2, 2008 | 1:37 AM IST

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